Thursday, July 26, 2007

खुफियागिरी कौन कर रहा है, क्‍यों हो रही है?

इस बात को कुछ समय गुज़र चुका है पर पिछले दिनो कान तक यह बात गई थी कि अमरीकी खुफ़िया विभाग गूगल से ये जानना चाह रहा था कि आखिर अंतर्जाल पर लोग सर्च इंजन पर सबसे ज्यादा किस चीज़ की खोज में बेचैन रहते हैं, आज का युवा मन आखिर खोजता-सोचता क्या है? और रुझान आज के दौर में किस तरफ़ है..... बाद में सुनने में आया कि गूगल ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। लेकिन दूसरी ओर यह भी दिख रहा है कि ब्लॉगजगत के लिये गूगल कितना मेहरबान है.. क्या यह मेहरबानी एकदम मासूम है? क्‍या गूगल की ऊपर-ऊपर दिखती मासूम मंशा मे कोई खोट नही? क्या सर्च इंजन पर लोग जिस तरह की जानकारी की तलाश करते रहते है क्या उनकी जानकारी से अलग उन पर निगाह भी रखी जा सकती है? इस विषय पर मैने अब तक किसी का लिखा देखा नहीं तो जानने की उत्‍सुकता ज़रुर है कि क्या ये सम्भव है?

थोड़ी देर ठहर कर ये सोचा जाय कि अपने यहां ब्लॉग पर आखिर किस तरह का लेखन हो रहा है तो ये तो ज़रुर कहा जा सकता है कि ब्लॉग पर वो सब कुछ लिखा जा रहा है जो हमारे समाज में घट रहा है... मतलब ये कि कूड़ा लेखन से लेकर उच्च स्तरीय मसाला तक आपको इन ब्लॉग्स में मिल जायेगा। और अगर इसी बात पर मैं ये कहूं कि ये ‘’चिट्ठे’’ मानव मन का बैरोमीटर हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

मगर भाई, एक बात तो रह ही जाती है कि आखिर अन्तर्जाल से भेद लेकर करना ये तोपखां लोग दुनिया में अखिर करना क्या चाहते हैं? शायद कुछ भी नहीं.. शायद यह मेरे घबराये मन का वहम मात्र हो... बात शायद इतनी ऐसी गम्‍भीर न हो और मैं खामख्‍वाह इस पर सोच कर परेशान हो रहा होऊं.. और आपकी परेशानी बढ़ा रहा होऊं..

आप हो सकता है, इन बातों को पढ कर ये कहें कि जादा पचर पचर करने की ज़रुरत नही है जो भी मन में आता है उसको लिखो। मुद्दा नहीं मिला तो अमरीका को शंका की नज़र से देख के चिट्ठा लिख दिये! कोई और विषय नही मिला क्या? चलिये अब आपने गलती से आकर जब पढ ही लिया है तो मेरी शंका का समाधान करें.. कि मैं आगे से चिन्‍तामुक्‍त होकर ब्‍लॉग लिख सकूं!

मेरे खांव-खांव से मन खिन्‍न हो रहा हो तो चलिए, नीचे छन्‍नुलाल मिश्र और राशिद ख़ान सज्जित हैं... उनका आनंद लेकर मुंह की कड़वाहट दूर कीजिए।

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