अब क्या बताया जाय, मुम्बई का ब्लॉगर मीट उधर खत्म हुआ और जब निर्मल आनन्द की रपट आई तो सारे ब्लॉगर पिल पड़े टिपियाने...और बीस पच्चीस टिप्पणी के बाद साथियो की स्याही खत्म हो गई इसीलिये शायद और ज़्यादा टिप्पणी नहीं आ सकी और क्या समझा जा सकता है . और पिछले कुछ समय से ये बात भी नोट की गई है कि पूरे ब्लॉगिया समाज की चिन्ता सिर्फ़ दो विषयो पर ही ज़्यादा केन्द्रित रही है , किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता और दूसरी ब्लॉगर मीट, लगता है सारे लोग इन्ही विषयों का इन्तज़ार कर रहे होते हैं और तब आप टिप्पणी देखेंगे तो लगेगा वाकई सबको इन सब की कितनी सामाजिक चिन्ता रहती है .. पर इसके अलावा कोई ऐसा विषय जिसने खूब टिप्पणिया बटोरी हों मुझे याद नही आती, एक तरफ़ पूरा माहौल बना हुआ है कि एक हज़ार से ज़्यादा चिट्ठे की संख्या पार हो चुकी है और ना जाने क्या क्या पर ज़रा अपने ब्लॉगिया समाज के बेहतरीन चिट्ठे पर जाइये तो लगेगा कि यहां लिखने वाले अधिक है पढने वाले कम और ये भी सम्भव है कि इतने सारे ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी करना आसान भी नहीं है फिर भी देखा तो यही जा रहा है कि अलग अलग बिरादरी बनती जा र्है जो एक दूसरे की तारीफ़ के पुल बांधने में ही लगे रहते हैं .. और बहुसंख्य चिट्ठेकार दूसरों के ब्लॉग पर जाते ही नहीं.. तो टिप्पणी कहां से करेंगे. और जहां तक मुझे लगता है टिप्पणिया किसी भी ब्लॉग के लिये जीवन रक्षक दवाओं की तरह हैं.. इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता कि कुछ अच्छे चिट्ठे भी है जो अपनी पहचान भी बनाने में कामयाब भी हो रहे हैं पर इन सब के बावजूद लोग चिट्ठो की बढती संख्या पर खुशी भी ज़ाहिर की जाती है पर आप किसी भी एग्रीगेटर पर जाकर देख सकते हैं तो सक्रीय चिटठों की संख्या डेढ सौ से ज़्यादा लगती नही .. तो ऐसी सूरत में आप चिट्ठेकार साथियों से लोगों से निवेदन है कि नये ब्लॉग पर जाकर कुछ अच्छे सुझाव ही दिया करें.. तो शायद कुछ चिट्ठों की उम्र बढ जाय.. हां यहां मै एक बात और कह ही दूं, कि ये सारी बाते कह कर मै ये तो एकदम साबित नही करना चाहता कि मै पाक साफ़ हूं...मैने भी इन चिट्ठों के उपवन मे से कुछ फ़ूल चुन लिये है, उन्ही को पूरा पढ़ना मेरे लिये दुरूह होता है... पता नही क्या मै सवाल से भटक गया क्या? मेरी बात आपके समझ में आ रही हो तो कुछ आप भी रास्ता दिखाएं...
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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7 comments:
चिट्ठाकार की तरह कुछ नियमीत टिप्पणीकार भी है. इनका योगदान हिन्दी सेवा नहीं माना जाता.
आपकी टिप्पणीयाँ भी कहीं देखने क नहीं मिलती.
अब क्या बताया जाय, मुम्बई का ब्लॉगर मीट उधर खत्म हुआ और जब निर्मल आनन्द की रपट आई तो सारे ब्लॉगर पिल पड़े टिपियाने...और बीस पच्चीस टिप्पणी के बाद साथियो की स्याही खत्म हो गई इसीलिये शायद और ज़्यादा टिप्पणी नहीं आ सकी और क्या समझा जा सकता है . और पिछले कुछ समय से ये बात भी नोट की गई है कि पूरे ब्लॉगिया समाज की चिन्ता सिर्फ़ दो विषयो पर ही ज़्यादा केन्द्रित रही है , किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता और दूसरी ब्लॉगर मीट, लगता है सारे लोग इन्ही विषयों का इन्तज़ार कर रहे होते हैं और तब आप टिप्पणी देखेंगे तो लगेगा वाकई सबको इन सब की कितनी सामाजिक चिन्ता रहती है .. पर इसके अलावा कोई ऐसा विषय जिसने खूब टिप्पणिया बटोरी हों मुझे याद नही आती, एक तरफ़ पूरा माहौल बना हुआ है कि एक हज़ार से ज़्यादा चिट्ठे की संख्या पार हो चुकी है और ना जाने क्या क्या पर ज़रा अपने ब्लॉगिया समाज के बेहतरीन चिट्ठे पर जाइये तो लगेगा कि यहां लिखने वाले अधिक है पढने वाले कम और ये भी सम्भव है कि इतने सारे ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी करना आसान भी नहीं है फिर भी देखा तो यही जा रहा है कि अलग अलग बिरादरी बनती जा र्है जो एक दूसरे की तारीफ़ के पुल बांधने में ही लगे रहते हैं .. और बहुसंख्य चिट्ठेकार दूसरों के ब्लॉग पर जाते ही नहीं.. तो टिप्पणी कहां से करेंगे. और जहां तक मुझे लगता है टिप्पणिया किसी भी ब्लॉग के लिये जीवन रक्षक दवाओं की तरह हैं.. इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता कि कुछ अच्छे चिट्ठे भी है जो अपनी पहचान भी बनाने में कामयाब भी हो रहे हैं पर इन सब के बावजूद लोग चिट्ठो की बढती संख्या पर खुशी भी ज़ाहिर की जाती है पर आप किसी भी एग्रीगेटर पर जाकर देख सकते हैं तो सक्रीय चिटठों की संख्या डेढ सौ से ज़्यादा लगती नही .. तो ऐसी सूरत में आप चिट्ठेकार साथियों से लोगों से निवेदन है कि नये ब्लॉग पर जाकर कुछ अच्छे सुझाव ही दिया करें.. तो शायद कुछ चिट्ठों की उम्र बढ जाय.. हां यहां मै एक बात और कह ही दूं, कि ये सारी बाते कह कर मै ये तो एकदम साबित नही करना चाहता कि मै पाक साफ़ हूं...मैने भी इन चिट्ठों के उपवन मे से कुछ फ़ूल चुन लिये है, उन्ही को पूरा पढ़ना मेरे लिये दुरूह होता है... पता नही क्या मै सवाल से भटक गया क्या? मेरी बात आपके समझ में आ रही हो तो कुछ आप भी रास्ता दिखाएं...
tippaniyo ke bahane rubru to ho lete hain. yahi kafi hai.
ashok chaudhary, gorakhpur.
आपकी चिन्ताएं वाजिब हैं।
बहुत चिंतित न हों. बस जितना प्रोत्साहन दे पायें उतना कर दिजिये. नहीं से बेहतर रहेगा. :)सभी को इन्तजार रहता है. हमें तो खुद आपका इन्तजार लगा है न जाने कब से. :)
शेर सुनिये आपके लिये:
'बहारें तो हरदम, चमन में रहेंगी,
मगर तुम न होगे तो रौनक न होगी'
:)
मेरी मंशा कम से कम ये नहीं थी की मेरे ब्लॉग पर टिप्पणियों की कमी है, ये ज़रूर है की किसी भी नए ब्लॉग पर जाइये दो नाम तो अवश्य मिलेंगे एक भाई अनूपजी और दूसरे समीर लाल जी , संजय बेगानी जी आपने सही कहा की मैं भी तो कही टिपण्णी करता नही , इसमें सच्चाई तो है पर कम से कम मई अपने ब्लॉग रोल मे जितने पते चिपका रखे है उन्हीं तक जाना मुश्किल होता है. आप सभी को धन्यवाद जो आपने अपने अच्छे सुझाव दिए|
अच्छा है। यह लेख पूना में पढ़ा था। टिप्पणी कानपुर में की जा रही है। उधार चुकता। जीवन रक्षक दवा दे दी। :)
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