Sunday, September 23, 2007

आसमा से उतारा गया ज़िन्दगी देके मारा गया..... मुन्नी बेगम की कुछ गज़लें!!


आज आपके लिये एक पुरानी अवाज़ लेकर आया हूं. अब हमारे साथी कहने लगेंगे कि क्या भाई कब तक पुरानी यादों में खोये रहेंगे? पर क्या करें मन है कि मानता ही नही, जब से ब्लॉग से जुड़ा हूं तबसे हाल ये है कि हर बार किसी ना किसी के ब्लॉग पर कुछ देख कर कहना पड़ता है कि आपने तो पुरानी याद ताज़ा कर दी..

तो अब मैने भी सोचा कि जो भी हो अपने पास पुरानी यादों का पिटारा जब तक समाप्त नही हो जाता तब तक कुछ तो उन सारी चीज़ों को अपने साथ लेकर चलना ही है क्योकि वो पुरानी यादे तो हमेशा अपने साथ रहेंगी ही. तो आज एक ऐसी ही कुछ फ़ड़कती हुई गज़ल सुनावाई जाय अब आप कहेंगे ये फ़ड़कती हुई का क्या मतलब हुआ भाई?

तो आज मैं बात कर रहा हूं मुन्नी बेगम की. मुन्नी बेगम ने जो भी गाया उस समय की लोकप्रिय शायरी हमेशा उनके साथ रही. एकदम महफ़िली आवाज़,और उनकी गज़लें सुनकर वाकई बार बार कहने को मन करता है जानते हैं क्या? वाह वाह मेरे पास इतना समय नही है कि मैं उन गानो को लिखूं यूनुस भाई अभी बोल उठेंगे कि ये गज़ल अच्छी तो थी पर आप नीचे लिख देते तो आपका क्या जाता, तो अब बिना हील हुज्जत के सुनिये मुन्नी बेगम की ये मस्त गज़ल. इस गज़ल को लिखने वाले हैं इकबाल सफ़िपुरी. गज़ल है आसमं से उतारा गया...



और ये भी गज़ल सुनें और आनन्द लें और वाह वाह करें. गज़ल है लज़्ज़ते गम बढ़ा दीजिये....



मुन्नी बेगम की खासियत भी यही रही है कि हमेशा चलती गज़लों को उन्होने आवाज़ दी है तो इस गज़ल मे भी वो बात है सुनिये: और बताइये मज़ा आया की नहीं . गज़ल है कब मेरा नशेमन एहले चमन..

8 comments:

Yunus Khan said...

बहुत वेरी गुड है भाई । देखिए हम कुछ नहीं कह रहे हैं । अच्‍छा ठुमरी जी मेरा मतलब विमल जी ये बताईये
कि ये कौन सा प्‍लेयर चिपकाया है । कहां से लाये । कैसे चढ़ाते हैं वगैरह वगैरह । वो क्‍या है कि बड़ा स्लिम है
सुंदर है । बॉलीवुड की हीरोईन की तरह ।

इरफ़ान said...

हां भाई, यूनुस भाई को ब्ताएं तो कॉपी पेस्ट मेरे को भी भेजें.

Manish Kumar said...

बहुत बहुत शुक्रिया विमल जी...मैं यूनुस जी वाली बात दोहराना चाहता था पर आपने अपनी पोस्ट में पहले ही हील हुज्जत ना करने की चेतावनी दे रखी है तो कुछ नहीं कहेंगे:)। अभी पहली ग़ज़ल सुनी है बाकी बाद में इत्मिनान से सुनेंगे। बहुत बहुत शुक्रिया इस कलेक्शन को यहं पेश करने का। मुन्नी बेगम की सादगी हमेशा दिल को छूती है। इनकी एक ग़जल को 'हमसे वो दूर दूर रहते हैं' को यहाँ सुनवाया था
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/05/audio-post.html

और हाँ, रब्बी शेरगिल की बुल्ला कि जाणां के हिंदी अनुवाद को प्रस्तुत किया है, जैसा कि आपने गुजारिश की थी। यहाँ देखें
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/09/blog-post_23.html

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी लगी जी ।तीनो गजलें सुन लीं। श्रीमतीजी ने भी सुनी साथ में और धन्यवाद लिखने को बोल है। :)

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी लगी जी ।तीनो गजलें सुन लीं। श्रीमतीजी ने भी सुनी साथ में और धन्यवाद लिखने को बोला है। :)

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी लगी जी ।तीनो गजलें सुन लीं। श्रीमतीजी ने भी सुनी साथ में और धन्यवाद लिखने को बोला है। :)

VIMAL VERMA said...

आप्की सराहना अच्छी लग रही है धन्यवाद, भाई इस नये पतुरिया प्लेयर के लिये सागर चन्द्र नाहर भाई को शुक्रिया, उन्होने प्रमोद जी के ब्लॉग पर इसकी जानकारी दी थी.. और बहुत बढिया है तो नाहर जी का भी मैं शुक्रगुज़ार हूं. इअसके लिये आप सीधे lifelogger.com अप्लोड करके ये काम काम आसानी से कर सकते है, तो ये जानकारी इरफ़ान और यूनुस जी के लिये है और भई मनीषजी आज अभी ही रब्बी को सुनने आपके द्वार हम पहंच रहे हैं चाय तैय्यार रखियेगा.

L.Goswami said...

प्‍लेयर नही आ रहा ...जाने क्यों?

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...