Sunday, February 3, 2008

ब्लॉग जगत एक मिथ्या है....

मौज मिथ्‍या है, मौज पर उबलने वाले मिथ्‍या हैं, गिरी हुई लड़की मिथ्‍या है और उस गिरी हुई पर जो नल खोलकर कीचड़ गिरा रहे हैं वह भी मिथ्‍या ही हैं. हम यूं ही फूलते रहते हैं, सच्‍चाई है ब्‍लॉग में बिरादरी मिथ्‍या है.... जो है गुटबाजी है, आत्‍मप्रशंसा है, और एक दूसरे की पीठ खुजाने का सुख है!!! ये फुरसतिया जी कोई मिथ्या से कम नहीं.. और रेलगाड़ी वाले ज्ञानदत्‍त की तो मत ही पूछिये... ये ब्लॉग जबसे आया है पता नहीं आने के पहले लोग अपनी बात कैसे सम्प्रेषित करते थे. खाली समय करते क्या थे..? मन मुताबिक टिप्‍पणी कैसे पाया जाय का महत्‍वपूर्ण काम हाथ में नहीं रहता था तो हाथ के टाईम का आखिर करते क्‍या थे?... पर नादान लोग ये नहीं जानते कि टिप्पणी भी मिथ्या है..... किसी ने कहा है.... जिनके घर शीशे के होते हैं वो बत्ती बंद करके कपड़ा बदलते हैं.. घर में पत्नी को प्रभावित करने के लिये ब्लॉग पर पत्नी के बारे में चार लाइन ठेल देना भी मिथ्या से कम है भला? अब ज्ञानदत्‍त जी को ही देखिये क्या क्या लिखते रहते हैं. अपनी अफ़सरी पर उनका इतराना , वो तो ठीक है, कुछ मामलों में तो अम्पायर स्टीव बकनर टाईप अंट शंट लिखने के बाद थोड़ा मांड्वाली करते नज़र आते है........कि अभय जी आपको लगी तो नहीं........ ..... अगर लग गई हो तो चिन्ता की कोई बात नहीं रेलवे अस्पताल से टिन्चराइडिन मंगवा सकता हूँ.... अरे अभय बाबू इतना तो रुतबा है इस रेलवे विभाग में.


कभी-कभी लगता है किसी विषय पर लोग दो काम की बात करेंगे, मन में नये विचारों का कोई भाव उपजेगा, तो वह भी ससुर मिथ्‍या ही है!!! अब देखिये ना फ़ुरसतियाजी को रोज़ रोज़ तो पोस्ट लिखते नहीं है.. पर वो भी हिट पाने का लोभ करें ये बात सरासर गलत है.... ब्लॉग के पितामह पिरामिड जाने क्‍या-क्‍या जो ठहरे....पर लिखते क्या हैं मिथ्या... उनके लिखे से किसी को क्या फ़र्क पड़ता है.... पर खलिया उदासी में लेटा मन मानता कहां है ..... सो उन्होने भी कुछ चेप दिया...... कुछ लोगो का आंकलन कर दिया और उनको लगा मज़ा ले लिये पर वो जानते नहीं कि सब मिथ्या है, जैसे भारतीय क्रिकेट टीम की जीत मिथ्या है., अब देखिये ना अनामदास जी ने एक चिन्ता से हमें वाकिफ़ कराया वहीं एक सज्जन और ट्पक पड़े और वो वहीं बाऊंड्री से उन्होंने निदा फ़ाज़ली से वाकिफ़ करा दिया... अभी अनामदास कुछ कहते तो उन्होने अपने से वाकिफ़ करा दिया कि हज़ारों शीर्षक उनकी टांग के नीचे से गुज़र चुका है!.... पर मुख्य मुद्दा खा गये. शैलेन्द्र की लिखी एक लाइन याद आ रही है....



ये गम के और चार दिन

सितम के और चार दिन

ये दिन भी जायेंगे गुज़र,

गुज़र गये हज़ार दिन




देख लीजिये जनवरी का महीना भी बीतै गया... और हम क्या कर रहे है? जिनको हम सुना रहे है.. वही काम भी कर रहे है.....अब आप मेरी बात नहीं माने ये अलग बात है, पर कुछ लोग ब्लॉगजगत पर झंडा गाड़ने पर अमादा हैं कि जभी भी हिन्दी ब्लॉगिग की बात चले तो ससुरा अगर हमारा नाम नही आया तो लानत है....मैं जानता जनता हूं आप मेरे लिखे पर हंस रहे होंगे... तो ये मत समझिये कि आपके वाह वाह की टिप्पणी करने वाला इसलिये आपके पास नही जाता कि आपके लेखन से वो प्रभावित है.... बल्कि वो तो आपको बताना चाहता है कि भाई हम भी हैं दर्ज़ कर लो.... वर्ना क्‍या है कि जो यहां फूल-फूलके प्रशंसा करते और लेते फिर रहे हैं उनको मैं एक बार फिर बता देना चाहता हूं कि भाई लोग, ये ब्लॉग संसार एक मिथ्या है......यहां सब अच्छा दिखना चाहते हैं वो चाहे फ़ुरसतिया जी हों चाहे अभय... चाहे समीर लाल हो चाहे अज़दक.. चाहे एक हिदोस्तान की डायरी वाले सज्जन हों चाहे टूटी भिखरी वाले...... सबसे अनुरोध है टिप्‍पणी वाले माल की नहीं, मुद्दे पर बात करें... या ना करें..........पर इतना ज़रूर है सब को लपड़्झन्ना ना समझे... सबके सीने में कोमल कोमल दिल है! जब दिल से लिखियेगा तो किसी के पोस्ट का उद्धरण दे देकर मौज लेना बेमानी लगेगा.... क्योकि आप तो जनबे करते है सब मिथ्या है.....मिथ्या और माया केहु के हाथ ना आवेगी... बतरस में मज़ा है, ये तो ठीक है पर ज़्यादा हो तो सज़ा है, और सज़ा किसे मंज़ूर है........... गाल बजाने वाले बहुत हैं,गलचौर भी मिथ्या है.... अब हम क्या बताएं बस जानिये!!!!

12 comments:

Unknown said...

ब्लॉग की नश्वरता पर आप का दार्शनिक लेख मुग्ध कर गया.ब्लॉगवीरों की आंख खुले तो न वर्ना तलवार भांजते रहेंगे और लोगों का लहूलुहाल देख कर इतराते रहेंगे.कुल जमा दस-दस लोगों का पांच कुचक्र हो गया है हिंदी ब्लॉग संसार...

अफ़लातून said...

बुनियादी बात कही , विमलजी । ऐसे खुल कर कहेंगे तो 'शरीफ़ लोग उठ कर ,दूर जा कर बैठ जाएंगे' ।

पारुल "पुखराज" said...

moh bhang ho rahaa hai aahista aahista.....pichley dino hindi blog jagat me kuch abhadr tipaadiyon se parichay huaa..aur gaaney ko mun ho uthha........

sarakti jaaye hai rukh se naqaab aahistaa ahistaa

dpkraj said...

बहुत बढिया और विचारणीय लेख
दीपक भारतदीप

अजित वडनेरकर said...

एको ब्रह्म , जगन्मिथ्या
नानक दुखिया सब संसार

अभय तिवारी said...

तो निकल लिए आप सत्य की राह.. बढ़ियाँ है..

अनूप शुक्ल said...

बड़ी ऊंची बात कह दी। यह ही अंतिम सत्य है। बाकी सब मिथ्या है।

Udan Tashtari said...

सत्य वचन, प्रभु!!! बहुत खूब!! वैसे कोई दूर जा कर नहीं बैठेगा,,, मेरे भाई अफलातून की चिंता पर चिंता न करें. :)

Priyankar said...

आपकी 'झूठे रंग न भूल' वाली इस स्थापना से सहमत होना चाहता हूं (अगर जनता होने दे तो).

मुनीश ( munish ) said...

मेहरबानी करके "सस्ता शेर" को अपवाद कहिये चूँकि यही वो मंच है जहाँ कोई महान बनने की कोशिश नहीं करता है ..! हम सब चूँकि पहले से ही महान हैं ....हा ..हा..हो..हो...दहाड़ !!

अनिल रघुराज said...

विमल जी, जबरदस्त लिखा है। सरस्वती उतर आई हैं आपकी लेखनी पर। आज ही अभय के ब्लॉग से इस लेख पर नजर पड़ी। पहले नहीं देख पाया था।

इरफ़ान said...

सच कहा आपने. मैं पहले भी टूटी हुई...पर फटकू की फटफट और रामसनेही-रामपदारथ संवाद के माध्यम से यह बात चुका हूँ.

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...