Saturday, October 25, 2008

ये कैसी दुनियाँ है.........मन बौरा रहा है

अजीब सी बात है......कि हम संगीत में डूबे रहे.....और इस बीच किसी परिवार ने बहत्तर क्रेडिट कार्ड रखने के बाद भी जीवन लीला समाप्त कर ली ........घर में चार सदस्य थे और सुबह का सूरज देख नही पाये, ये घटना मुम्बई के बोरीवली की है..... हम संगीत सुनते रहे... और इस बीच टाटा ने अपनी नैनों को बंगाल से सरका के गुजरात पहुंचा दी ममता बनर्जी और कम्युनिस्ट हाथ मलते रहे और मोदी गदगद है पर हम हैं कि संगीत सुनते है रहे.. .. इस बीच दुनियाँ में अपनी ही धौंस मे रह रहे अमरीका के बैंक दीवालिया होने लगे...चरमरा गई बुश की अर्थव्यवस्था........खुद तो डूब ही रहे थे ...पर दुनियाँ में जल्दी से धन पाने की होड़ मे लगे लोगों को इस मंदी से तेज़ का झटका लगा रहे हैं और हम हैं कि संगीत में खोये हैं .....बैंक से कर्ज़ ले के हमने भी बनाया था अपना आशियाना,घर का कागज़ बैंक के पास पड़ा है..जब तक कर्ज़ चुका नहीं देता तब तक बैंक के पास मेरा आशियाना रहेगा गिरवी, अब हालत ये है कि हम भी ब्याज के कम होने होने की राह देख रहे हैं इस दर्द से छुटकारा पाने के लिये संगीत सुन रहे हैं ।

मैं अपनी ठुमरी पर कोई भी पोस्ट चढ़ाते समय यही सोचता था कि दुनियाँ में कितना दर्द है.......कभी उड़ीसा में कोई मरता है धर्म के नाम पर तो मुम्बई भी कम है क्या इलाक़े के नाम पर हो रही है मार.....बच्चों कॊ पीटा गया....टैक्सी,ऑटो, और कमज़ोर लोगों पर की गई ज़ोर आज़माईश ..कलेजे में ये खबर बरछी की तरह धंस गई..........हम लाचार है.......क्या कर सकते हैं ?कुछ नहीं, अफ़सोस प्रकट करने और अपना गुस्सा ज़ाहिर करने के सिवाय हम कुछ नहीं कर सकते..... अभी मुम्बई में पिछले दिनों गणपति महोत्सव में बड़ी बड़ी गणेश की मूर्तियाँ दिखी.....खूब जश्न का माहौल था आस पास मोहल्ले खूब गुलज़ार थे गणपति के ख्त्म होने पर लाल बाग के राजा के पंडाल में शुरू हुआ चढा़वे का मुल्यांकन...किसी भक्त ने सोना चढ़ाया तो किसी ने डॉलर..किसी ने रूपया.....किसी ने गहना...इन सब का मुल्यांकन करोड़ो में आंका गया लगता ही नहीं कि हम एक गरीब देश हैं ...
अब आ रही है दीवाली और आर्थिक मंदी की मार अजीब सी है.....अब देखना है कैसी बीतती है दिवाली........लेकिन कुछ घटना जो अभी जुमा जुमा गुज़रीं हैं ......अभी कुछ ही दिनों की तो बात है जब आदमी उमरदार हो जाता था तो मालिक लोग वीआरएस देकर लोगों को घर बिठा देते थे पर इसका क्या करें कि जुमा जुमा जिन्हें एक साल भी नहीं हुए थे नौकरी किये...उनके लिये जेट ने एलान कर दिया कि भाई आप लोग जाँय...हम पचा नहीं पा रहे ..थोड़ा दबाब बना और सब लोग वापस..पर अबकी बार तनख्वाह में कटौती की शर्तों को मानकर फिर से बेचारे लोगों ने हवाई जहाज में उड़ना मंज़ूर कर लिया ......

वैसे भी संस्थाओं में हर कुछ महीने में दो चार की छटनी तो हो ही जाती है और अब इस आर्थिक मंदी के दौर में हम पर अब बिजली गिरने वाली है अब इतने बड़े आर्थिक संकट से मैं अकेले लड़ भी तो नहीं सकता ...तो अब आप ही बताइये कि संगीत सुनने के अलावा और क्या चारा है?

कभी कभी आपको लगता होगा कि दुनियाँ में इतनी सारी घटनाएं घट रही है..पर विमल लाल की ठुमरी पर इसका रंच मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता, तो शायद आप मुगालते में है..कभी अपने पुराने दिनों को याद करता हूं... जब मैं दिल्ली में था इलाहाबाद और आज़मगढ़ मे था पर यहाँ दिल्ली की एक घटना याद आ रही है....एक आयोजन हमने किया उसका नाम हमने रखा "हमारे दौर में" ये वो समय था जब अडवानी रथ पर सवार थे और जब उतरे तो एक कांड हो गया जो आज भी लोगों को याद है..राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद विवाद और इसके विरोध में हम नाटक करते करते हमारी नाटक मंडली अछूती रह न पायी और धीरे धीरे नाटक करते करते हम गीत रचने और और गाने लगे और गाते गाते हम सड़क पर कब आ गये ये पता ही नहीं चला पर लगता है पर तब की बात और थी... .आज बात ही कुछ और है अब हमारे पास खोने के लिये मेरी माँ है बीवी है मेरी बिटिया है, एक दम टिपिकल निम्न मध्यवर्ग टाइप हम हो गये है ........तो अब करें क्या, अब तो हमारे पास संगीत सुनने के अलावा कोई चारा भी तो नही है......दुनियाँ जैसी पहले थी वैसी आज तो नहीं है..वैसे ही संगीत जो पहले था आज नहीं हैं....हम भी पहले जैसे थे वैसे नहीं है .सब कुछ बदल गया है...पर इस बदले हुए रूप में भी हम अपने लिये मोती तलाशते रहते हैं....एक शेर याद आ रहा है मालूम नही ये किसका शेर है आज पता नहीं क्यों याद आ रहा है.....इस शेर को मैने पहली बार अपने अभय तिवारी जब इलाहाबाद के डीजे हास्टल में रहा करते थे तो उनके कमरे की दिवार पर मैने लिखा देखा था


ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ

अपना शहर होता तो घर गये होते

इसी बात पर कुछ जोड़कर लाया हूँ आपके लिये, अगर अच्छा न लगे तो भी अगली बार ज़रूर आईयेगा शायद कुछ अलग सा लगे पर आईयेगा ज़रूर

आज पंकज अवस्थी की कुछ रचनाएं खास आपके लिये ही लेकर आया हूँ पंकज की आवाज़ तो खांटी है ही और सुर का चढ़ाव उतार भी मस्त है.... पंकज अवस्थी उभरते हुए संगीतकार हैं,गाते हैं और संगीत भी देते हैं..भाई हम इनके उज्वल भविष्य की कामना करते हुए इन्हे सुने ज़्यादा मज़ा आयेगा..ये गाने फ़िल्म अनवर से हैं पर मुम्बईया गानों से अलहदा लगते है। ऊपर पंकज के लिंक दिये हैं उसे भी चटका लगा के पंकज के बारे में कुछ और जान सकते है।

तोरे बिन जियरा ना लागे.......



दिलबर मेरा दूर हुआ......


इस गाने को अभी भी समझने की कोशिश कर रहा हूँ अगर आप समझ रहे हों तो बताते जाँय


माफ़ी चाहता हूँ....कोई भी प्लेयर काम शायद कर नहीं रहा तो ऐसी स्थिति में पंकज पर क्लिक करें और वहां भी पंकज को आप सुन सकते हैं.....आपको असुविधा हुई उसका वाकई मुझे खेद है....

Sunday, October 12, 2008

एक आवाज़ अमानत अली साहब की.......

संगीत अकेलेपन का साथी है...और साथ साथ दोस्तों की महफ़िल में संगीत की बैठकी हो तो पूरा का पूरा हुजूम थिरक रहा होता है या अकेले हों तो भी संगीत आपका अच्छा साथी होता ही है,पर इधर बहुत दिनों से कुछ नया सुना भी नहीं है...और अब लगता है गुलाम अली,मेंहदी हसन,लता जी जगजीत सिंह, नैयरा नूर मुन्नी बेगम आदि जितना पहले हमारे करीब थे उतना ही करीब आज भी हैं,मौके बे मौके हम तो इन्हें सुन ही लेते है,अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो आज जो आवाज़ आप सुनेंगे वो आवाज़ अमानत अली खान साहब की है.....इसे सुने आपको भी अच्छा लगेगा...



अभी तो आपने इन्हें सुन लिया पर अगली बार आपको कुछ नई आवाज़ें जिन्हें मैं पसन्द करता हूं,वादा करता हूँ जल्दी ही आपको सुनवाउंगा...

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...