Sunday, October 18, 2009

किरण आहलुवालिया की आवाज़ में कुछ ग़ज़लें


कुछ ही दिन हुए कि एक पुराने गीत को याद करते हुए एक पोस्ट ठुमरी पर चढ़ाई थी, रचना अधूरी थी तो अपने मित्र पंकज ने पूरी रचना मेरे पास भेजी मैने उसे हूबहू चढ़ा दी ये सोचते हुए कि कम से कम वो रचना अंतर्जाल पर तो हमेशा रहेगी ही, खैर कुछ टिप्पणिया भी आईं उनमें से एक टिप्पणी मानसी की भी थी "ये पोस्ट तो अच्छी है पर ये क्या हो रहा है ठुमरी में? हम क्वालिटी गीत संगीत की आशा ले कर आये थे" तब मुझे वाकई लगा कि मानसी ग़लत तो कह नहीं रहीं पर क्या करें इधर कुछ नया भी सुनने को मिला नहीं और मेरी कोशिश भी यही रहती है कि वही रचना ठुमरी पर चढ़ाई जाय जिसे लोगों ने कम सुना हो और कम से कम वो रचना स्तरीय तो हो ही, तो उसी कड़ी में आज किरण आहलूवालिया की आवाज़ में कुछ रचनाएं आपके लिये लेकर आया हूँ, किरण आहलूवालिया के बारे में सिर्फ़ इतना कि आवाज़ और लय तो खूब है उनके पास पर उनके शब्द अगर कहा जाय तो मोती जैसे नहीं हैं, या कहा जाय बहुत साफ़ शब्द कानों को सुनाई नहीं देते, फिर भी किरण को सुनना सुखद है तो आप भी सुनें....


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6 comments:

Udan Tashtari said...

वाकई शब्द क्लियर नहीं हैं पर फिर भी बैकग्राऊन्ड में सुनना सुखद है.

Alpana Verma said...

Chitra singh ki yaad dila gayee inki awaaz.
abhaar

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति धन्यवाद्

अजय कुमार said...

kamaal ki cheej lekar aate hain aap

Neeraj Rohilla said...

गीतों के आरम्भ के कुछ पलों में सारंगी से जो मूड बनता है वो बरकरार नहीं रह पाता। पार्श्वसंगीत गीतों के भावों से गुंध नहीं पाता तो कहीं कमजोर अशारों के चलते गीत प्रभावी नहीं बन पाता।

लेकिन इसके बावजूद किरन की आवाज फ़्रेश महसूस होती है। शायद किसी अच्छे शायर के कलाम पेश करें तो अपनी पहचान छोड सकें।

बहरहाल, पेश करने के लिये आपको बधाई।

भंगार said...

विमल जी ,आप द्वारा चढी ठुमरी
सुनी ,यह काम आप बहुत अच्छा कर रहें है

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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