Wednesday, October 28, 2009

हम नामवर न हुए तो का ! हमको ना बुलाओगे ?

बड़ी भिन्नाट हो रही है, बड़े समय बाद अपने बिलागवतन में लोग इलाहाबाद के मीट का चूरमा बना रहे हैं , अफ़सोस त ई है कि हमहुं को वहां ना बुलाके इसके संयोजक लोगो ने बहुतै गलत काम किया और उस पर ये कि नामवर लोग वहां इकट्ठा थे उनमें एक ठो नामवर पर इतना समय और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं कि सब मनई का पढ़ पढ़ के ऐसा लग रहा है कि हम संगम नहा लिये, ई सबको नहीं बुझाता है कि नामवर के बहाने लोग अपना अपना तीर छोड़ रहे है, क्या ब्लॉगजगत में सबको बुलाना सम्भव है..कुछ तो लोग छूट जाते तो इस तरह की बहस तो कुछ भी कर लो, उठनी ही थी...जो उठ रही है और आगे भी उठेगी इसे कोई रोक सकता है?

जिस बात की चर्चा सुरेश चिपलुनकर बाबू ने छेड़ी थी उ मुद्दा रह गया पीछे अरे वही वामपंथ और हिन्दूपंथ और मुद्दा बन गया नामवर, अरे कोई बताएगा कि कि हिन्दू हितों पर लिखने वाले लोगों को क्यौं नहीं बुलाया गया? ई सब छोड़िये अब यही बता दीजिये हमको उस सम्मेलन में क्यौं नहीं बुलाया गया कोई मेरे बारे मे बोलेगा?

नामवर जी ने अगर कभी कचरा कह भी दिया तो कोई ये भी बताए कि क्या ब्लॉग में सब सुगन्धित साहित्य ही रचा जा रहा है कौन तय करेगा कि सुगन्धित क्या है? और कचरा क्या है? और जो व्यक्ति एक दिन कचरा कहता है और वही आदमी कचरे के शीर्ष में आसन करना चाहता है तो इसमें बुराई क्या है?

चिट्ठा शब्द के बारे में अगर नामवर बोल दें कि यह शब्द हमारा दिया है तो उनके कहने से क्या उनका हो जाएगा? और अगर अपने किताब में इसका श्रेय ले लें तो क्या उनको कोई रोक पायेगा?

अरे सब चिट्ठाकार इलाहाबाद में भेंट मुलाकात किये एक दूसरे को आमने सामने ज़िन्दा देखा ये क्या कम है, और जब ब्लॉगवतन के लोग एक जगह इकट्ठा हो जाँय तो क्या बात होती है क्या ये भी किसी को बताना पड़ेगा?

15 comments:

अजय कुमार said...

बहुत सही बात है , हमरी खोपडिया में दो लाइन का कविता फंसा है ,निकाल
रहा हूँ ---
सब लोग मिले बैठे ,बस इतना ही तो सच है
अब काहे की किचकिच है औ काहे का मचमच है |

Ashok Kumar pandey said...

नामवर से बेहतर के मिली भैइया?

अरे उ बड हंव्…अऊर बहुते विद्वान त लोग तनी उनके सुनबो करे…कचकच मचमच छोडि के

BAD FAITH said...

अब यही बता दीजिये हमको उस सम्मेलन में क्यौं नहीं बुलाया गया कोई मेरे बारे मे बोलेगा? असली मुद्दा तो यही है भाई.

मनीषा पांडे said...

एकदम्‍मे सही फरमाया। हिंदी ब्‍लॉग का कपार फुड़व्‍वल में बिलकुल मार्के की बात कहे हैं आप।

मनोज कुमार said...

बहुत सही बात है

अजय कुमार झा said...

एकदम ठीक बात कबे से सोचे थे कि एक दिन हम लोग नामवर जी के साथ साथ गंगा में डुबकी लगाएंगे, मुदा ई हसरत भी पूरा नहीं हुआ,
दिल्ली मे यमुना जी के लिए पहले ही सरकार मना कर रही है.....हे नर्मदा वालों कहां हो ....भैय्या जबल पुर.....

Arun Arora said...

dada kove thumari nahi sun sakjate . kav kav karane vale me koyal ki kook kaha .... kovo ko bhaddi lagati na :)

भंगार said...

विमल जी ,आप ने जो कहा बहुत सही लिखा '
सच बात के लिए ...अपनी सोच समझ बिल्कुल
आजाद कर देनी चाहिए ....वरना लोगों का क्या
वो तो बड़े से बड़े सोच -समझ को झूठा कर दे ...
लिखने के लिए धन्यवाद ......

विवेक सिंह said...

hello ajay ji thanx for visting my blog
vaise mere reading list me blog nahi pde hai fr bhi mai blogs pdtha hu
aur jo accha lgta hai usko sarahta
hu
a

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

बहुतै सही फ़रमाये हो भैय्या जी। हम भी इसी मत के हैं। अरे खुसी का म‍उका था सबको शाबासी देना चाहिये था कि चलो कुछ लोग चिट्ठाकारी में भी रष्ट्रीय स्तर की परिचर्चा करा रहे हैं लेकिन नहीं कुछ लोगन कामै है नुक्स निकालना। इलाहाबाद से हम आपको बहुत-बहुत आभार भेज रहे हैं।

jyotin kumar said...

चिपलूनकर जी की ये पोस्ट जल्दबाजी में लिखी लगती है. जैसे बीवी ने कान भरे और मियां ताल ठोकने लगे.

jyotin kumar said...
This comment has been removed by the author.
हरकीरत ' हीर' said...

सही कहा आपने जिन्दा देखना बहुत बड़ी बात हैं ....!!

Unknown said...

गजब लिखला गुरू....

Vishwa said...

few people eat banaana and few eat brass, but i eat only bloody grass

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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