Saturday, May 23, 2009

हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो


आज भोजपुरी फिल्म का स्तर वाकई बहुत गिर गया है पर जब भोजपुरी फिल्म की शुरुआत हुई थी तब ऐसी स्थिति नहीं थी जो आज है, साठ के दशक में भोजपुरी में बनी पहली फिल्म "
"गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो"
में कम से कम सामाजिक सरोकार तो दिखता था पर ये ज़रुर है कि कुछ अच्छी भोजपूरी फ़िल्म बनने की जो शुरुआत हुई थी जैसे "लागी नाही छूटे रामा" या "बिदेसिया" जैसी फ़िल्मों के बाद फ़िल्मों का स्तर निम्न स्तर का होता चला गया,उन पुरानी फ़िल्मों के गीतों को सुनना आज भी एक सुखद एहसास दे जाता है, आज भोजपूरी फिल्म का जो हाल है किसी से छुपा नहीं है, मनोज तिवारी जब फ़िल्म के हीरो नहीं बने थे तब का उनका गाया लोकगीत "असिये से कईके बी ए लईका हमार कम्पटीशन देता" पसन्द आया था ,पर आज भी इन पुरानों गीतों में अपनी की सी महक है जो भुलाए नहीं भूलती शुरुआती दौर ही मील का पत्थर सबित होगा ये किसी ने सोचा नहीं था,

आज वो गीत मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ," हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो.... ये गीत लता जी और उषा मंगेशकर की आवाज़ में है मधुर गीत शैलेन्द्र के लिखे हैं और संगीत चित्रगुप्त का है।

फ़िल्म है "गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो" ।

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Saturday, May 9, 2009

नये ब्लॉगिये का स्वागत करें......

भाई, मेरे मित्र अखिलेश धर हैं, बहुत दिनों से सोचते सोचते आखिरकार उन्होंने अपना ब्लॉग BADFAITH के नाम से शुरु किया है,अभी उन्होंने अपनी लिखी एक कविता पोस्ट की है। उम्मीद है कि अपने ब्लॉग के माध्यम से वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपने दार्शनिक विचार ले जा पायेंगे,भाई हम तो स्वागत करे ही रहे हैं आप भी उनका उत्साह ज़रूर बढ़ाएं।

नय्यरा नूर की गाई कुछ बेहतरीन रचनाएं......



गज़ल, कव्वाली,सूफ़ी रचनाएं सब बीते दिनों की बात हो गई हो जैसे,हम जैसे लोग आज भी गज़लों को सुनते हैं, गुनगुनाते हैं, मौका मिले तो गाते हैं,पर आज की पीढ़ी को तो ये सब स्लो स्लो सा लगता है,और हम हैं कि ग़ज़लों के मायने समझते हुए बड़े तल्लीन भाव से सुनते हैं,गज़ल गायकी के पंडित जगजीत सिंह, उस्ताद ग़ुलाम अली, गुरुवर मेहदी हसन,नुसरत साहब आदि आदि ने जो बीसियों साल पहले गाकर छोड़ दिया हमारी भी दुनियां उन्हीं के आस पास सिमट कर रह गई है,नये के नाम पर फ़्यूज़न ही है जिसे हम पूरी तरह स्वीकार भी नहीं कर पाये,प्रयोग तो होते रहेंगे और हम हमेशा की तरह कचरे से मोती तलाशते रहेंगे, आज कुछ यूं हुआ कि नय्यरा नूर को सुन रहा था," ऐ ज़ज़बाए दिल गर मैं चाहूँ,हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाय" इतनी सधी और मीठी आवाज़ को बार बार सुनने को जी करता है,तो सोचा कुछ और भी रचनाएं नय्यरा जी की तलाशते है और इकट्ठा अलग अलग रचनाओं का आनन्द लिया जाय, और क़ामयाबी मिल ही गई, नय्यरा नूर की भीनी- भीनी आवाज़ आप जब सुन रहे हों तो क्या मजाल कि बीच में छोड़ कर उठ जाँय,,एक अजीब सी खनक लिये नय्यरा नूर की आवाज़ आपको भीतर तक हरियाली में डुबो देती है,तो मुलाहिज़ा फ़रमाएं, और नय्यरा नूर की छह रचनाओं का एक एक कर आनन्द लें।

नय्यरा नूर के बारे में और जानना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं

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Sunday, May 3, 2009

सचिन दा की आवाज़ आज भी हमारे इर्द-गिर्द गूंजती है.........


चिन देव बर्मन बेहतरीन संगीतकार तो थे ही पर उससे भी बेहतर उन्होंने अपनी आवाज़ का खूबसूरती से प्रयोग किया था,उनके गाये सभी गीत सीधे आपके दिल से तादात्म्य स्थापित कर लेते थे, दादा की आवाज़ में गज़ब की कशिश थी जिसे बीस तीस पचास साल भी आप भुला नहीं सकते ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं ,तो कुछ रचनाएँ इधर उधर से इकट्ठा की हैं मैंने,इनमें से कुछ गीतों कों तो कभी कदास रेडियो टीवी पर सुन तो लेते हैं पर यहाँ आप पूरे सुकून से सुन सकते है। सचिन देव बर्मन के बारे में कुछ ज़्यादा जानना चाहते है तो यहाँ क्लिक करके जान सकते है।

यहाँ सचिन दा की गाई रचनाएँ हैं जो गाइड,अराधना,बन्दिनी,सुजाता,तलाश और ज़िन्दगी-ज़िन्दगी फ़िल्म से है।

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आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...