Wednesday, July 29, 2009

सच का सामना करने से क्या लोग डरने लगे हैं.....

पिछले दिनों "सच का सामना" को लेकर बहुत माहौल गरम है और गरम इस कदर है कि संसद को भी इसपर ध्यान देना पड़ा, अभी तक जितना मैने इस बारे में पढ़ा है सबने एकांगी पहलू पर ही ज़्यादा बात की गई है पर बैड्फ़ेथ पर जो विचार मैने पढ़े मुझे ऐसा लगता है कि इस लेख को पढ़ना ज़रूरी है और इसलिये भी पढ़ना ज़रूरी है कि ये व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि समग्रता में सामाजिक सच्चाई का भी सामना कराता है।

Sunday, July 19, 2009

याद पिया की आये..........वडाली बंधुओं की यादगार महफ़िल से कुछ मोती....

उस्ताद पूरन चन्द और प्यारे लाल वडाली बन्धुओं को बहुत तो सुना नहीं पर इन बन्धुओं का गायन वाकई अद्भुत है,काफ़ी समय हो गया "टाइम्स म्युज़िक" ने एक एल्बम रिलीज़ किया था "याद पिया की" उसमें बहुत सी रचना पंजाबी में थी, पंजाबी मैं थोड़ा बहुत समझ पाता हूँ,जैसे गायक के लिये गाने के साथ अगर ये पता हो कि वो क्या गा रहा है तब उस रचना की गुणवत्ता बढ़ जाती है वैसे ही सुनने वाला भी रचना को पूरी तरह से समझ रहा हो तो किसी भी रचना को सुनने का मज़ा ही कुछ और हो जाता है ।




पश्चिम गायकों के बहुत से कंसर्ट में मैने श्रोताओं को रोते हुए चीखते हुए उछलते कूदते देखा है पर हमारे यहां का समाज संगीत के मामले में थोड़ा अलग है शान्त शान्त से श्रोता थोड़ा झूमते हुए वाह वाह की मुद्रा में बैठे रहते है,और जहां आवश्यक्ता होती है वहां दाद देना भूलते नहीं,याद है जगजीत सिंह साहब का एक अलबम आया था.....जिसमें उन्होंने कुछ चुटकुले भी सुनाए थे और श्रोताओं की दाद का स्केल भी बहुत ऊपर था श्रोताओं के शोर में एक आवाज़ आयी "आहिस्ता आहिस्ता" और फिर जगजीत साहब ने "सरकती जाय है रूख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता" सुनाया था, जगजीत चित्रा का वो वाला एलबम ज़बरदस्त था उसी एलबम में हमने पहले पहल सुना था "दुनियाँ जिसे कहते है जादू का खिलौना है मिल जाय तो मिट्टी है खो जाय तो सोना है" आज बडाली बन्धुओं के स्वर में इस मोहक रचना को सुनकर वैसा ही आनन्द मिल रहा है।


कहते हैं पुराने और नये के बीच संघर्ष हमेशा से चलता आया है पुराना नये से कुछ सीख नहीं ले पाता तो धीरे धीरे पुराना हो ही जाता है,एक रचनाकार समय के साथ चलते हुए अपने आपको संवारता रहता है , धुन, वाद्य यंत्र सबमें तब्दीली लाता है तो वो रचनाकार समय के साथ थोड़ा ज़्यादा समय तक टिक के खड़ा हो पाता है ,नुसरत साहब इस बात को जानते थे इसीलिये विदेशियों के साथ उन्होंने बहुत से सफ़ल प्रयोग भी किये थे और शायद वडाली बन्धुओं ने भी इस बात को भांप लिया है और इस एलबम में वो तब्दीली साफ़ दीखती है , ज़रा आप भी देखिये खुली आवाज़ का जादू आपको झूमने पर मजबूर कर देगा।



वडाली बन्धुओं की ये रचना भी ज़रूर सुनें जो पहले से एकदम अलहदा है।



याद पिया की आये ये दु:ख सहा न जाय इस रचना को बहुत से गायकों की आवाज़ में मैने सुना है पर उस्ताद मुबारक अली खान साहब की गायकी को सुनकर आज मैने इसे भी आपके सुनिये लिये चुना है तो इन्हें भी सुनिये और बताईये कैसा लगा?

Get this widget | Track details | eSnips Social DNA

Saturday, July 11, 2009

एक कजरी पं.छन्नूलाल मिश्र जी की आवाज़ में ....

लोग ना जाने किन किन बहसों में लगे हैं, कभी इन बहसों का अन्त होने वाला भी नहीं है ,तो घड़ी भर जहां मन को सुकून मिले ऐसी विषम स्थितियों में कुछ अच्छा गीत संगीत सुनने से मन के अन्दर जो उर्जा मानव मन को मिलती है उसका कोई जोड़ नहीं है। रिमझिम बरसात की फुहार से अभी अभी रूबरू होकर घर में घुसा हूँ, दिन भर ऑफ़िस की गहमा गहमी,कहीं गुजरात में लोग मर रहे है,तो कहीं कोई आत्महत्या कर रहा है,कहीं लोग समलैंगिस्तान बनाने पर आमादा हैं तो बहुत से लोग इसके बरखिलाफ़ हैं।



फोटो गुगुल के सौजन्य से


कहीं मन की बेचैनी है जो खत्म होने का नाम नहीं लेती,बहुत दिनों से कुछ ठुमरी पर चढ़ाया ही नहीं था और ऐसा भी नहीं कि लोग ठुमरी पर कुछ ताज़ा सुनने के लिये बेकरार हों, इधर लाईफ़लॉगर की वजह से पुरानी पोस्ट जो लाईफ़ लॉगर के प्लेयर पर चढ़ाया था उसकी बत्ती लाईफ़लॉगर वालों ने गुल कर दी है ये बात अभी मुझे बहुत परेशान कर रहीं है,काफ़ी सारी मेहनत अब लाईफ़लॉगर की वजह से कुर्बान हो गई मुझे इसका मलाल तो हमेशा रहेगा।

चलिये इस रिमझिम भरे मौसम में कुछ हो जाय, पता है यहां मुम्बई में मौसम के बदलते देर नहीं लगती, कहते हैं मौसमी फल खाना शरीर के लिये लाभप्रद होता है,वैसे "मौसमी रचना भी अगर दिल से सुनी जाय तो मन में सकारात्मक विचार पैदा होता है" ये बात किसी ने कहा है या नहीं पर आज मैं कह दे रहा हूँ, तो अब बहुत ज़्यादा भांजने के बजाय मुद्दे पर आते हैं और पं. छ्न्नूलाल मिश्र जी की मखमली आवाज़ का लुत्फ़ लेते हुए एक कजरी सुनते है। यहां भी क्लिक करके पंडित छन्नूलाल जी की गायकी का लुत्फ़ लिया जा सकता है


आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...