Saturday, December 18, 2010

आरिफ़ लोहार की जुगनी

पाक़िस्तान के आरिफ़ लोहार एक शानदार लोक गायक है, लाज़मी है उनको सबने सुना हो, और आज ठुमरी पर उनकी मंडली द्वारा गाया ये लोकगीत जिसमें थोड़ी पश्चिम की झलक है फिर भी कर्णप्रिय तो है, आज सुनने का मूड ज़्यादा है वैसे भी मेरी लिखने की आदत नहीं तो कोक स्टुडियो के इस कार्यक्रम की झलक यहां देखते हैं और सुनते है आरिफ़ लोहार की जुगनी ।


5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बहुत सुंदर. लेकिन मूल जुगनी तो आरिफ़ के पिता आलम लोहार ने गाई है...आरिफ़ ने पिता से विरसे में पाया है संगीत

Manish Kumar said...

मेरा पसंदीदा जुगनी गीत है ये । सुन कर मन में एक अलग सी गंगा बहने लगती है। अभी हाल ही में मैंने इसके बोलों के साथ आलम जुगनी संगीत (अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ :आरिफ़ लोहार का शानदार 'जुगनी' लोकगीत) की विस्तार से यहाँ चर्चा की थी।

Creative Manch said...

आप का ब्लॉग संगीत की खूबसूरत दुनिया में ले जाता है.
प्रस्तुत ठुमरी मुझे भी बेहद पसंद है .
आभार.
'सी.एम.ऑडियो क्विज़'
रविवार प्रातः 10 बजे

सागर said...

आज दिन भर की यह मेरी एकमात्र उपलब्धि रही.. और अब सारी शिकायत जाती रही .,

Anonymous said...

बहुत सुन्दर.

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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