लम्बे समय के विराम के बाद ठुमरी पर कुछ सुनाने का मन है । दरअसल बहुत कुछ तो नहीं है मेरे पास सुनाने के लिये... पर अभी थोड़ी चटनी हो जाय ... पहले भी मैने कैरेबियन चटनी कुछ पोस्ट चढ़ाई थी और आज भी धमकता, अनोखा संगीत एक दम से मन पर छा सा जाता है ....बस यही सोचता हूं कि ढाई तीन सौ सालों पहले हमारे देश के कुछ हिस्सों से उठा कर ले जाय गये गुलाम मज़दूर अपने साथ लोक संगीत की विरासत अपने साथ ले गये थे, समय के साथ आज उसमें भी बहुत परिवर्तन हो चुकने के बावजूद आज भी उसे ज़िन्दा रखने की कोशिश हो रही है... कुछ तेज़ संगीत में त्रिनिडाड या कैरेबियन देशों में जा बसे भारतीयों ने अभी भी अपना अतीत अपने पास बचा रखा है.....जिसे यहां आज मैं आपको सुनाना चाहता हूं । राकेश यनकरण की आवाज़ में एक विवाह गीत का आनन्द लेते है।
त्रिनिडाड के चटनी किंग सैम बूडराम की इस आवाज़ का तो मैं कायल हूं ।
अभी बस इतना ही, अगली पोस्ट का करें इंतज़ार।
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Saturday, November 26, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
-
आज मैं अपने मित्र अजय कुमार की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ,और इस रचना को लिखते हुए अजय कहते है" विगत दिनों के आतंकी हमलों ने ऐसा कहने प...
-
पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
-
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...