tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post2319046271633165317..comments2023-10-29T13:05:28.570+05:30Comments on ठुमरी: उनके लिये जिन्हें दुनियाँ पागल समझती है !!!VIMAL VERMAhttp://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-79099730684514769672008-01-20T16:49:00.000+05:302008-01-20T16:49:00.000+05:30ज्यादा समझ तो नहीं पाया गीत को लेकिन मजा आया सुनने...ज्यादा समझ तो नहीं पाया गीत को लेकिन मजा आया सुनने में. रही बात पागलपन की तो वो तो हम हैं ही!Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-20275100089994137242008-01-15T11:51:00.000+05:302008-01-15T11:51:00.000+05:30विमल जी क्या बात है लगता है अभी सब कुछ मारा नही है...विमल जी क्या बात है लगता है अभी सब कुछ मारा नही है जान बाकी है वह कविता तो याद होगी <BR/><BR/>... नही कुछ सोचने और नही कुछ बोलने से आदमी मर जाता है ....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07713657523946639395noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-380740846700821992008-01-13T21:19:00.000+05:302008-01-13T21:19:00.000+05:30पता नहीं, मेरा पिछला कमेंट आप तक पहुंचा या नहीं। प...पता नहीं, मेरा पिछला कमेंट आप तक पहुंचा या नहीं। पर जो आप इस ब्लाग के जरिये काम कर रहे हैं, उसे जारी रखें। बेहद शानदार है। आपसे मिलने चाहूंगा। बतियाना चाहूंगा।<BR/>यशवंतयशवंत सिंह yashwant singhhttps://www.blogger.com/profile/08380746966346687770noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-33551755319035187332008-01-13T11:46:00.000+05:302008-01-13T11:46:00.000+05:30पागलों के प्रति मेरा आकर्षण कभी कम नहीं हो पाएगा. ...पागलों के प्रति मेरा आकर्षण कभी कम नहीं हो पाएगा. मुझे हैरत होती है कि जो पोस्ट मेरे मन में पल रही होती है उसे आप जारी कर देते हैं, फिर ख़ुशी ये होती है कि इतने बरस बीत जाने पर भी हमारे आपके विचार कितने मिलते जुलते हैं!<BR/><BR/>आजकल दिल्ली का हर रास्ता प्रगति मैदान को जा रहा है. या यह कहना ठीक होगा कि हर आदमी नैनो देखना चाह रहा है. ऐसे में कल जब मैं आइटीपीओ के सामनेवाली रेडलाइट पर खडा था, एक अधेड आदमी आया. वह सडक पार कर रहा था और आइटीपीओ के सामने लगे रंग बिरंगे झंडों को देख कर ठिठक गया था. उसके पास पुरानी पतलून से सिला कपदे का एक थैला था जिसमें कपडे के दो हत्थे लगे होते हैं. थैला भरा हुआ था, उसकी चप्पलें कह रही थीं कि लंबी पैदल यात्रा करता हुआ वहाँ पहुंचा है. खिचडी बालों और एक पुराने स्वेटर से वह किसी अनथक चिंता में डूबा लगता था. उसने मुझसे आइटीपीओ की तरफ उंगली करके पूछा-"मनमोहन सिंह यहाँ रहता है?"<BR/>मैंने इनकार किया. मनमोहन सिंह का घर बताने से पहले मैंने उससे पूछा "क्या हुआ?" बोला "कुछ नहीं, यह अचार देना था." उसने थैले को हिलाते हुए कहा.<BR/><BR/>रही बात सुमन चट्टोपाध्याय (चटर्जी) की, मैंने अपने ब्लॉग की पहली पोस्ट उनकी चिंता में लिखी थी जिसके जवाब में प्रियंकर ने उनकी कुशलक्षेम भेजी थी. पिछ्ली बार जब मैं कलकत्ता गया था तो उनका तत्कालीन नया रिलीज़ टेप ख़रीदते हुए मैने शॉपकीपर से पूछा कि सुमन आजकल सुनाई नहीं देते. तो उसने बडी नफरत से बताया था कि सुमन ने सबीना यास्मीन नाम की बंग्लादेशी औरत से शादी करके धर्म भ्रष्ट कर लिया है और अब वो पतित हो गया है.<BR/><BR/>मेरा खयाल है यह बात 2000 की होगी. इन आठ बरसों में सुमन ने बंगाल की "धर्मनिरपेक्षता" को अपील करता हुआ अपना नाम कबीर बना लिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं. मैं सुमन की संगीत यात्रा का समीपी गवाह हूं और जिस परिणति को वे प्राप्त हो रहे हैं उसे देखते हुए अशोक पांडे की भाषा में यही कहा जास सकता है कि इस देश पर टट्टी करो.इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.com