tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post6149542032460981648..comments2023-10-29T13:05:28.570+05:30Comments on ठुमरी: याद रखना ज़रूरी हैVIMAL VERMAhttp://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-16904852131496884112007-07-15T20:12:00.000+05:302007-07-15T20:12:00.000+05:30संजयजी आपके विचार को पढ कर और भी अच्छा लगा, हम आगे...संजयजी आपके विचार को पढ कर और भी अच्छा लगा, हम आगे भी एक दूसरे को समझने की कोशिश करते रहेंगे और यूनुसजी,आप मेरे लिये नये नही हैं, आपके विचार और आपकी पसंद से मै वाकिफ़ हूं, आप दोनों का शुक्रिया.VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-38441844612747324092007-07-15T13:00:00.000+05:302007-07-15T13:00:00.000+05:30विमल जी नीचे कुछ लिंक दे रहा हूं पढियेगा । इसमें भ...विमल जी नीचे कुछ लिंक दे रहा हूं पढियेगा । इसमें भी इसी मुद्दे पर बात की गई है । गुलाम अली तो पिछले हफ्ते मुंबई आये थे, क्या मजमा जुटा था उन्हें सुनने के लिए । अफ़सोस कि मेहदी हसन साहब लकवे की वजह से अब नहीं गा सकते । <BR/>http://radiovani.blogspot.com/2007/06/00.html<BR/>http://radiovani.blogspot.com/2007/06/blog-post_11.html<BR/>http://radiovani.blogspot.com/2007/06/blog-post_1506.htmlYunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-13118434319987082442007-07-15T12:44:00.000+05:302007-07-15T12:44:00.000+05:30विमल भाई...बाज़ार का कुचक्र संगीत , तहज़ीब और हमारी ...विमल भाई...बाज़ार का कुचक्र संगीत , तहज़ीब और हमारी विरासत को लील कर ही छोडे़गा.जब तक नई पीढ़ी नुकसान का अहसास होगा तब तक तो सब कुछ समाप्त हो चुका होगा. आपको , हमको , हम सबको मिलकर अपनी नई पीढी़ से खूब बतियाना चाहिये अपने अतीत के बारे में.वे तो पकड़ में नहीं आने वाले लेकिन हमें उन्हे प्यार से इस ओर लाना होगा. मुझे थोड़ी बहुत जो भी समझ कविता,संगीत,साहित्य की मिली उसमें माता-पिता और दादाजी मी महत्व्पूर्ण भूमिका रही.हमारे आपके घरों में गाने बजाने के कितने सुरीले सिलसिले थे और शायद इसीलिये विपरीत समय में भी हम मनुष्य बने रहे.संगीत की ख़राबी और गुणी कलाकारों के विस्मरण हमें भी कटघरे में लेते हैं. हम अपनी अगली पीढी़ को वैसा क्वालिटी टाइम कहाँ दे पा रहे हैं जो हमारे अभिभावकों ने हमें दिया...बिगडे़ सुर हैं घर के...ज़माने की क्या बात करें.मै वर्ल्ड-स्पेस पर शास्त्रीय संगीत सुनता हूं / विविध भारती सुनता हूं लेकिन तब तक ही यह संभव हो पाता है जब तक बेटा-बेटी स्कूल में हैं...उनके आते ही.रेडियो मिर्ची,आइपाँड और वर्ल्ड स्पेस पर हिमेश भाई नमूदार हो जाते हैं ..मेंहदी हसन,मो.रफ़ी,जगजीत सिंह,ग़ुलाम अली और उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब सुबकते रहते हैं किसी कोने में और मै भी.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.com