tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post9056151127219144210..comments2023-10-29T13:05:28.570+05:30Comments on ठुमरी: क्या लोकगीत अब लुप्त हो जायेंगे ?VIMAL VERMAhttp://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-21809248955540264322007-11-04T00:12:00.000+05:302007-11-04T00:12:00.000+05:30pyare bhai,hindi mey type naa kerpane per bhee aap...pyare bhai,hindi mey type naa kerpane per bhee aapkalekh itna shaandar aur imotional nikla ke likhna para hee.<BR/>Im old friend of dear ANILwhom u have mentioned in your chittha. pl. let me know on my e.mailadd. whenever u write and remeber such nice ,old vanishing memories of the days gone by.<BR/>Iam working as an asstt.professor hindi in m.p. govt.at rewa district and use to write poems. with thanks and love bhoopendraडॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07345306084462566690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-69266186678966559172007-10-25T10:36:00.000+05:302007-10-25T10:36:00.000+05:30विमल भाई यह पोस्ट मैं लिखना चाहता था आपने लिखकर मे...विमल भाई यह पोस्ट मैं लिखना चाहता था आपने लिखकर मेरा काम आसान कर दिया.अपने और इधर उधर मित्रो के चिट्ठों पर मैने ्जो लोकगीत पोस्ट किये हैं उन्हें आपकी भावनाओं से बल मिलेगा.इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-17384383367704878192007-10-24T12:52:00.000+05:302007-10-24T12:52:00.000+05:30आशीष जी, वास्तव मे मैं आज़मगढ, बलिया, बस्ती, देवरिय...आशीष जी, वास्तव मे मैं आज़मगढ, बलिया, बस्ती, देवरिया, गोरखपुर में अपने पिताजी की वजह से था. पिता की नौकरी थी जिसकी वजह से हमने भी इन इलाको का स्वाद खूब जम के लिया.क्योकि पूरा बचपन इन्ही इलाको मे गुज़रा इसलिये मै इन सभी जगहो अपना ही मानता हूं,VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-73892247136917744852007-10-24T12:19:00.000+05:302007-10-24T12:19:00.000+05:30विमल जी आप आजमगढ़ में कहाँ से हैं??विमल जी आप आजमगढ़ में कहाँ से हैं??Ashish Maharishihttps://www.blogger.com/profile/04428886830356538829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-88469985623681780472007-10-18T12:33:00.000+05:302007-10-18T12:33:00.000+05:30मेरा तो मन होने लगा कि मैं गांव जाऊं, भिखारी की बा...मेरा तो मन होने लगा कि मैं गांव जाऊं, भिखारी की बांसुरी, गेंदन का बिरहा और शाम को भजनमंडली के सुर सुनूं। दरअसल, लोकगीत-संगीत सबके होते हैं, उन पर किसी घराने या उस्ताद की बपौती नहीं होती और न हीं वे किसी व्यक्ति के निज से निकले होते हैं। उनमें होता है सामूिहक जीवन नदी की तरह, युगों की कहानी, जीवन का स्पंदन और सबको समाहित करने का स्थाई गुण। आज भी लोकसंगीत जिंदा है और आगे भी रहेगा सिर्फ हम आप उससे कट गए हैं और फिल्मों के जरिए उसे याद करने के अलावा कोई और रास्ता हमारे पास नहीं है।खुशhttps://www.blogger.com/profile/09698946914339210633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-11138089488685686802007-10-14T19:05:00.000+05:302007-10-14T19:05:00.000+05:30ह्रदय में उतर जाने वाली लोक-संवेदनाओं का बहुत सुन...ह्रदय में उतर जाने वाली लोक-संवेदनाओं का बहुत सुन्दर चित्रण ..!रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-34000724926731955782007-10-13T20:14:00.000+05:302007-10-13T20:14:00.000+05:30बंधु कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ और ऐसा लग ...बंधु कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ और ऐसा लग रहा है की बहुत कुछ छूट गया है. बहुत कुछ देख नही पाया. विमल भाई मेरा मनाना है की अब आपने अपनी ज़मीन तलाश ली है. फसल लहलहायेगी और पेड़ फलों से लद जायेंगे.Rajesh Joshihttps://www.blogger.com/profile/00229556478300789066noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-44409599290600639722007-10-11T21:06:00.000+05:302007-10-11T21:06:00.000+05:30गाड़ी लौटेगी फिर स्टेशन पर. यही इतिहास रहा है और यह...गाड़ी लौटेगी फिर स्टेशन पर. यही इतिहास रहा है और यही परंपरा.<BR/><BR/>-आनन्द आ गया दोनों गीतों को सुन कर. निमिया वाला किसी से गोरखपुर की भोजपुरी में दूसरी ही धुन में सुना था-यही तो खूबी है लोकगीतों की.<BR/><BR/>बहुत आभार इन्हें सुनवाने का.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-30531307895877150132007-10-11T20:20:00.000+05:302007-10-11T20:20:00.000+05:30विमल जी, लोकगीतों को अगर लोक ही बहिष्कृत कर रहा है...विमल जी, लोकगीतों को अगर लोक ही बहिष्कृत कर रहा है तो कैसे बचे रहेंगे वो। हां, बदले हुए रूप में ज़रूर वो कायम रहेंगे जैसे परंपरा मिटती भी है तो नए में विलीन होकर। लोकगीत नए कलेवर में जिंदा रहेंगे। पुराना रूप धीरे-धीरे संग्रहालय की वस्तु बन जाएगा। मुझे को यही लगता है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-6543964669844147162007-10-11T16:39:00.000+05:302007-10-11T16:39:00.000+05:30आपकी चिंता जायज है.....पर जब तक लोक रहेगा लोकगीत भ...आपकी चिंता जायज है.....पर जब तक लोक रहेगा लोकगीत भी रहेंगे।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-9884166574015691362007-10-11T16:31:00.000+05:302007-10-11T16:31:00.000+05:30विमलजी मेरा मानना है कि जब उन्नीस सौ चालीस -पचास ...विमलजी <BR/>मेरा मानना है कि जब उन्नीस सौ चालीस -पचास के दशक के फिल्मी गीतों को आज भी लोग इतना पसन्द करते हैं तो लोक गीतों को पसन्द करने वाले लोग भी कम नहीं है। सो कम से कम वे तो लोकगीतों को लुप्त नहीं होने देंगे। और कई युवा कलाकार भी हर राज्य में अपनी अपनी बोली के लोकगीतों को जिन्दा रखे हुए हैं। <BR/>यानि मेरा मानना है लोकगीत बिल्कुल लुप्त तो नहीं होंगे पर नये गीत लिखे शायद कम जायें, बस उन्हीं पुराने गीतों का संगीत बदल बदल कर कलाकार गाते जायें। रिमिक्स की तरह। <BR/>और हाँ... साथ में इन गीतों के बोल लिख दिये होते तो मजा दुगुना हो जाता।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-86711008899858233832007-10-11T16:11:00.000+05:302007-10-11T16:11:00.000+05:30विमलभाईआकाशवाणी के क्षेत्रीय केंद्र लोकगीत को सहेज...विमलभाई<BR/>आकाशवाणी के क्षेत्रीय केंद्र लोकगीत को सहेजने का बड़ा काम किया करते थे. यदि मैं अपने शहर इन्दौर के मालवा हाउस की बात करूँ तो याद आते हैं ऐसे ऐसे नाम कि जिनके गीत और जिनके नाम याद कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन रॆडियो जैसी संस्था जिस बुरे दौर से गुज़र रही है वह जग-ज़ाहिर है. मेरे पूज्य पिता श्री नरहरि पटेल मालवी लोक संस्कृति के वरिष्ठ कलाकर्मी रहे हैं तो उनसे कई चीज़ें मुझ तक तो आ पहुँची लेकिन मेरे बाद की पीढ़ी का हाल बेहाल है.मालवा के लोक संगीत की ताक़त का जादू देखिये ; कुमार गंधर्व जैसी शास्त्रीय संगीत का सर्जक इन गीतों को गाकर अमर हो गया. उन्होंने कुछ तो देखा होगा इन दमकते मोतियों में ...लेकिन हमारी लोक-संवेदनाओं की थाती ख़त्म हो रही है विमल भाई.दिल पर पत्थर रखने के अलावा कर भी क्या सकते हैं.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2382589589569560500.post-4362889333493148192007-10-11T15:44:00.000+05:302007-10-11T15:44:00.000+05:30हाल ही में एक अरसे बाद नैनीताल गया था. वहां युगमंच...हाल ही में एक अरसे बाद नैनीताल गया था. वहां युगमंच के साथियों ने कुमाऊं लोक नृत्यों पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई हैं. लोकनृत्यों के साथ लोकगीतों का आना स्वाभाविक है. आपकी बातें पढ़कर मुझे कुमाऊंनी लोकगीत याद हो आए.Bhupenhttps://www.blogger.com/profile/05878017724167078478noreply@blogger.com