Thursday, August 23, 2007

काहे की मुक्ति...

मुक्ति....मुक्ति.....मुक्ति...आखिर आदमी मुक्ति क्यों पाना चाहता है, किस चीज़ से मुक्त होना चाहता है.... शरीर से, समाज से, या इस पूरे ब्रम्हांड से... जब उसे पता ही नहीं कि कहां से आया है और जाना किधर है.. तो मुक्ति पाकर वो सिर्फ़ इस संसार से मुक्त होना चाहता अगरचे ये कहा जाय तो जीवन के इस झमेले से भागना चाहता है.. जहां नित नये रेले पेले में अपनी ज़िन्दगी गर्त में जाते देखता रहता है... पर अभी भी सही इलाज़ नही ढूढ पाया है. पर मेरा उद्देश्य यहां किसी मुक्ति की सुक्ति ढूढना कतई नही है, क्योंकि मेरे लिये भी ये सारी चीज़ें मगज में खाली पीली बूम मारने जैसा ही है...

अरे, आप इस दुनिया को समझना चाहते हैं तो पता नहीं कितने जन्म लें फिर भी समझ पाना मुश्किल ही है.. अगर आप समझ भी गये तो हमारा क्या भला होने वाला है? अपने उमर के आखिरी पल में आपको सत मिल भी गया तो किसी को क्या लेना देना......अब मेरे लिये भी इस विषय पर ज्ञान देना भारी पड़ रहा है.... असल में मेरा ये विषय भी तो नहीं है.... असल में मुझे पता भी नही कि किस क्षेत्र में मैं अच्छा दखल रखता हूं.. जीवन से मुझे क्या चाहिये बस ये.... कि मेरे पास सारी ऐशोआराम की चीज़ें हों..सिर पर कोई ज़िम्मेदारी न हो..बात करने के लिये ढेर सारे दोस्त हों..तो शायद ये दुनियां मुझे भी सुन्दर लगने लगे...मैं यहां से जाना ही ना चाहूं और रही बात मुक्ति की तो उसकी इच्छा भी न रहे... अरे, कुछ बात बन भी रही है कि मैं ऐसे ही लिखे जा रहा हूं?....

मन अजबजा गया हो तो इस पेज के सबसे नीचे मुक्ति को चट्काइये देखिये मुक्ति नाम की छोटी सी फ़िल्म जिसे बनाया है साथी गजराज ने..देख कर मन भारी हो जाय या आप खुल कर समाज पर हंसिये और सोचकर बताइये कि आखिर इन सब चीज़ो से मुक्ति मिलेगी की नही?.. या सब वैसे ही चलता रहेगा...

5 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सत्य वचन.

ajai said...

Mukti samaaj se bhaag kar nahi milegi.kuchch swarthi log jimmedari se bhagne ko mukt hona mante hai.purani jimmedari ka nirwaah karke nayi jimmedari lena to jeevan ka maza hai.jyada maza chahiye to patni se panga lete rahiye.Gajraj ji ne fim me sawal chhoda hai-beta tu ya to pyar se mukt ho le ya parivaar se." 2 line pesh hai-
Duniya me hum aaye hai to jeena hi padega.
Jeevan hai agar zahar to peena hi padega.

अनिल रघुराज said...

सारी ऐशोआराम की चीज़ें हों..सिर पर कोई ज़िम्मेदारी न हो..बात करने के लिये ढेर सारे दोस्त हों...
ऐसा हो जाए तो वाकई मज़ा आ जाए।

Udan Tashtari said...

एकदम सही कहा.

Third Eye said...

गुरू ये उड़नतश्तरी क्या चीज़ है. जहाँ देखो वहाँ नज़र आ जाती (जाता) है. फ़ोटो देख के लगता है अच्छा भला इंसान ... लेकिन काम सिर्फ़ प्रतिक्रिया देना... गज्जब लोग हैं भई.

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