पिछले दिनों मैं अपने बड़े भाई विनय के पास मऊ (उत्तर प्रदेश ) गया था,मऊ से भी बीस किलोमीटर दूर घोसी चीनी मिल है (जहां से कांग्रेस के कल्पनाथ राय सांसद हुआ करते थे) और दूर से ही चीनी मिल की महक ने अपनी दस्तक दे दी थी कि घोसी आने वाला है,वहां की खुशबू जब तक आप वहां रहेंगे आपकी नाक में अपनी जगह बना लेगी......वहां उस छोटे से शहर को कुहरे में लिपटे देखा तो आनन्द ही आ गया,थोड़ी ठंड भी थी .... वहां विनय भाई के खेतों में सरसों के पीले फूल लहलहा रहे थे आपको बुला रहे हों ....... भाई के खेतों के चावल ,सब्ज़ी और हरी मिर्च खाकर तो मैने तो मस्त ही होगया ,अपने खेतों में विनय ने राजमा भी लगा रखा था इनके पौधों को मैने पहली बार देखा था ....बस इतना किया कि मैंने राजमा के पौधों की तस्वीर ले ली ......खेतों में जो हरियाली थी उसे मैं अपने अन्दर महसूस कर रहा था, विनय भाई जैसे इन सब चीज़ों से बोर और हमारी मुम्बई की ज़िन्दगी से ज़्यादा प्रभावित लग रहे थे , उन्हें लग रहा था कि गुरू ज़्यादा हो गई तुम कुछ ज़्यादा ही तारीफ़ कर रहे हो.....खैर मैने कहा कि "पसन्द अपनी अपनी ख्याल अपना अपना" बहुत सी बातें हमारे बीच हुई उसका ज़िक्र बाद में, खास बात ये कि विनय भाई ने अपनी फ़र्माइश कर ही दी वो ठुमरी पर अपनी पसन्द की कुछ गज़लें सुनना चाहते थे वो भी मेंहदी हसन,गुलाम अली,नैय्यरा नूर,नुसरत साहब .... लिस्ट कुछ लम्बी ही थी... खैर विनय भाई की पसन्द की कुछ रचनाएं आज मैं पेश कर रहा हूँ ,तो उसकी पहली कड़ी में आज उस्ताद ग़ुलाम अली साहब की रचनाएं हैं ....जो विनय भाई के साथ साथ मुझे भी बेहद पसन्द हैं और आपको भी ज़रूर पसन्द आएंगी वैसे आपने इन रचनाओं को पहले भी सुन ही रखा होगा पर दुबारा सुनने पर भी आपको पसन्द आएगा....
और अब सुने ग़ुलाम अली साहब की गाई कुछ लोकप्रिय रचनाएं।
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Sunday, February 22, 2009
Saturday, February 7, 2009
हमरी अटरिया पे आजा रे संवरिया देखा देखी तनिक होई जाय......
भाई हमें तो शुजात हुसैन खां साहब का ये अंदाज़ बहुत पसन्द है, सितार पर जिस अंदाज़ से उनकी उंगलियाँ चलती है उससे अलग उनकी डूबी हुई आवाज़ भी कम नहीं है।आज आप सुनिये पर पता नहीं क्यौ एक बात जो दिल में है आज कह लेना चाहता हूँ, इतना नाम पं जसराज और पं भीमसेन जोशी जी का लिया जाता है पर पता नहीं क्यौं उन्हें मैं ठुमरी पर चढ़ा क्यौं नही पाया ......एक बात ज़रूर है कि शायद गायन में बहुत ज़्यादा शास्त्रीयता मुझे रास नहीं आती|
.मुझे पं जसराज जी और पं भीम सेन जोशी जी की आवाज़ पसन्द भी है पर आज तक एक पूरी रचना कभी मुझे भाई नहीं.....पं भीमसेन जी की आवाज़ जब से सुनी है तभी से उस आवाज़ के हम कायल हैं पं जसराज जी और पं भीमसेन जोशी दोनों को मैने सामने से कई बार सुना है, सुनने के बाद भी यही लगता है इनको लाईव सुनना ही सुखद है .....इन्हें सामने से सुनिये तो आप ये ज़रूर महसूस करेंगे कि न जाने कहां कहां से इनके स्वर निकलते हैं जो आम गायक के बस की बात भी नहीं है इन सब के बावजूद ऐसी कोई पूरी रचना जिसे मैं सुनने के लिये यहां वहा भटकूं बेकरार रहूँ ऐसा इनको लेकर कभी नहीं हुआ, शायद संगीत में बहुत ज़्यादा शास्त्रीयता मुझे रास नहीं आती शायद यही वजह है इन दोनों की आवाज़ के तो सभी कायल है पर इन दोनों की कोई यादगार रचना कोई गिना नहीं पाता..... कोई मुझे बताएगा इन दोनों की कोई बेहतरीन रचना जिसे एक बार सुन लें जिसका सुरूर हमेशा बना रहे... ऐसी कौन सी वजह है कि इनकी रचनाएं बहुत से लोकप्रिय ब्लॉग पर भी भी सुनाई नहीं देती .......
ये तो रही मन की बात। अब जिस रचना को आप सुनने जा रहे हैं इसे मैने बेग़म अख़्तर और कई आवाज़ों में सुना है पर आज आप शुजात साहब की आवाज़ में सुनेंगे तो आनंद आयेगा......आप लीजिये आनन्द.. दुबारा कुछ बेहतर मिला तो जल्दी ही मुलाक़ात होगी।
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