Friday, December 14, 2018

जीवन के रंग को तलाशता एक नाटक " रंगरेज़ "


रंगरेज़ .....जी हां  ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित  नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहानी के बारे में एक निश्चय मन में ज़रूर  कर लिया था कि इस पर जब कभी समय मिला  तो नाटक ज़रूर  करेँगे ....मुम्बई में करीब सत्ताईस अट्ठाईस साल गुज़ारने के बाद उसका भी समय आ गया जब मनोज वर्मा ने पंकज त्यागी के साथ मिलकर करीब 4 महीने की थका देने वाली बहस, करीब बीसियों बार संपादन  करने के बाद नाटक प्रदर्शन के लिये तैयार था , फिर नाटक के कलाकारों  की तलाश शुरु हुई   ...ज़्यादातर ऐक्टर टेलिविज़न से जुड़े  थे, शूटिंग और ऑडिशन के बीच  रिहर्सल के लिये समय निकालना वाकई दुरुह काम था ...बहुत से  कलाकार  आये और  बीच- बीच में आते जाते रहे... एक समय तो ऐसा लगा कि मुम्बई में टीवी के ऐक्टरों के साथ काम करना जैसे तराज़ू में मेंढक तौलने जैसा ही है पर वीपरीत परिस्थितियों के बावजूद नाटक अंतत: तैयार हो ही गया 






मनोज वर्मा  के निर्देशन में इस नाटक में 6 कलाकार में दो ही कलाकार थे  जिन्हें रंगमंच का लंबा अनुभव था  ... मराठी रंगमंच की ख्यातिलब्ध उत्कर्षा नाईक जिन्होंने गुजराती व मराठी नाटकों के सैकड़ों नाटक के हज़ारों  प्रदर्शन कर चुकी टेलीविज़न धारावाहिकों में आज भी बहुत  लोकप्रिय हैं , पिछला नाटक उत्कर्षा ने आज से 25 साल पहले किया था प्रसिद्ध नाटय निर्देशक विजया मेहता के निर्देशन में नाटक “पुरुष” नाना पाटेकर के साथ अभिनय कर चुकी, जिसके  सैकड़ों प्रदर्शन का  चुकी है .... और अभिजीत लाहिरी मुम्बई  आने से पहले दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रेपर्टरी के मुख्य  अभिनेता रहे हैं सैकडों  नाटकों के हज़ारों प्रदर्शन का अनुभव था पर मुम्बई में पहली बार स्टेज पर पदार्पण कर रहे थे



नाटक की कहानी कुछ तरह है कि नाटक का नायक  यथास्थिति के खिलाफ़ बदलाव में विश्वास रखने वाला कवि-चित्रकार भास्कर (शार्दुल पंडित)अपने शहर की आपाधापी से ऊबकर पहाड़ों पर अपनी छुट्टियां बिताने के उद्देश्य से आया तो था पर वहां उसकी मुलाकात नायिका मीसू  से होती है और मीसू से मिलने के बाद उसे इस बात का एहसास होने लगता है कि उसके पास जितने रंग हैं वो काफी नहीं है । भास्कर की मुलाकात वहां मिसेज़ सिंह से होती है जिनका मानना है कि जीवन एक संगीत है उसका आनंद लो उसे समझने की कोशिश मत करो ,प्यास है तो पीयो , क्या करोगे ये जानकर कि प्यास का क्या अर्थ है और पानी का क्या अर्थ है अगर ढूंढने ल्गोगे त्प प्यास नार डालेगी ....सांस लेते हो तो ये नहीं सोचते कि सांस क्यों ले रहे हैं इसे गणित की तरह समझने की कोशिशमत करो ,जईवन कोई   व्यापार  नहीं है ये एक उत्सव है ...हां  जीने का अर्थ ज़रूर समझो । 



नायक भास्कर  एक व्यापारी मिस्टर ऑल्टर (अभिजीत लाहिरी) का मेहमान है और मिस्टर ऑल्टर अपनी सामाजिक हैसियत से बिंदास खुशदिल इंसान हैं और ऐसे बुद्धिजीवियों- कलाकारों की सोहबत में रहने का शौक भी रखते है ।
उसी शहर में पड़ोस में रहने वाली मिस उनियाल (परी गाला ) खानदानी अमीर परिवार  से जुड़ी हैं सामाजिक कार्यों  में हाथ बंटाती है । स्कूल में पढाती है और सारा समय सामाजिक कार्यों  में या अपने एनजीओ में लगाती हैं ।
 मिस उनियाल की छोटी बहन  मीसू  है जिसे प्रकृति से बहुत प्यार है, जीवन उसके लिये बहती नदी की अविरल धारा है , एक समय मीसू चित्रकार भास्कर की प्रेरणा बन जाती है और भास्कर मीसू के प्यार में पड़ जाता है । मिस उनियाल के विचार में कलाकार और कला का समाज के बदलाव में कोई कोई भूमिका नहीं होती और  भास्कर के बारे में भी मिस उनियाल की यही राय है .... । नाटक रंगरेज़ प्रेम ,विचार समाज और कला के अंतर्विरोध को उजागर करता है ।



नाटक में बीच बीच दर्शकों की तालियां बयान कर रही थीं कि नाटक अपने  अर्थपूर्ण संवाद और निर्देशन की वजह से दर्शकों के बीच  तादात्म्य बैठाने में सफ़ल रहा ।
 मिसेज़ सिंह की भूमिका में उत्कर्षा नाईक ने अपने किरदार साथ न्याय किया  उनके  अभिनय को लंबे समय तक याद किया जायेगा ....मिस्टर ऑल्टर की भूमिका में अभिजीत लाहिरी भी खूब जम रहे थे , नायक और नायिका की भूमिका में भास्कर ( शार्दुल पंडित) और मीसू ( चारू मेहरा ) सामान्य से लगे । मि उनियाल की भूमिका में (परी गाला) ने प्रभावित किया । प्रियदर्शन पाठक का संगीत कहीं कहीं कमज़ोर लगा  पर मनोज वर्मा के निर्देशन से आशा जगती है कि हिंदी रंगमंच पर मौलिक नाटक की प्रस्तुति का जोखिम मनोज डंके की चोट पर ले सकते हैं ...हम निर्देशक मनोज वर्मा से उम्मीद कर सकते हैं कि वो हिंदी में नाटक या हिंदी के नाटक या अनुदित नाटक की बहस में न  पड़्ते और नये या मौलिक नाटकके मंचन  का जोखिम  लेते रहेंगे ,  एम्ब्रोसिया थियेटर ग्रुप का यह प्रयास सराहनीय कहा जायेगा ।


आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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