Saturday, March 7, 2009

रंगी सारी गुलाबी चुनरिया रे मोहे मारे नजरिया संवरिया रे ........

अब जाके लग रहा है कि होली आने को है,जब किसी छत से फेंका गया गुब्बारा जिसमें भरा था पानी.....मेरे सर को छू कर निकल गया तब मुझे लगा कि होली आ गई है....ऊपर देखा तो एक छत की मुंडेर पर इक बच्चा मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था जैसे.... बच गये बाबू .....खैर मैं तो थोड़ा आंख दिखाकर वहां से चलता बना ......पर जब मैं गया कबाड़खाने पर तो वहां का रंग देख कर मन मदमस्त हो गया,लावन्याजी ने तो होली को ही खंगाल दिया है ......और इधर अपने मित्र मयंकजी नये नये ब्लॉगजगत में आये हैं जो आजकल प्याज बहुत खा रहे हैं, भी ज़माने को अपना रंग दिखाने मशगूल हैं, तब मुझे भी लगा कि ठुमरी के लिये मैने भी कुछ रंग चुनके रखे थे जिसे शायद इसी मौक़े का इंतज़ार था, सुनिये और मदहोश हो जाने के लिये तैयार हो जाईये और होली के इस रंग का भी मज़ा लीजिये,इसका भी नशा भांग से कम नहीं है.....तो पिछले हफ़्ते छाया गांगुली जी की मदमाती आवाज़ ने महौल को जैसे छलका ही दिया था....तो आज सुना रहा हूँ आपको एक दादरा दो अलग अलग आवाज़ों में रंगी सारी गुलाबी चुनरिया रे मोहे मारे नजरिया संवरिया रे........ शोभा गुर्टू और उस्ताद शुजात हुसैन खां की लरज़ती आवाज़ में सुनिये ................आप सभी को रंग बिरंगी होली की शुभकामनाएं.


Monday, March 2, 2009

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की

एक और नये साथी ने आभासी दुनियाँ में कदम रखा है, ये हमारे बहुत ही पुराने मित्र हैं साथ साथ संगीत के साथ लिट्टी चोखा की बात जब आये तो चेहरा साथी का खिल खिल जाता है फिर अपने हाथों से बनाने का भी अच्छा शौक है इन्हें.... नाम है इनका मयंक राय और इन्होंने अपने ब्लॉग का नाम रखा है "क्या रंग है ज़माने का" तो मित्र का उत्साह बढ़ाएं.... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मयंक के पिटारे में जितना मसाला है उससे कभी आप निराश नहीं होंगे,मैने पिछली पोस्ट में लिखा था कि पता नहीं क्यौं पं भीम सेन जोशी और पं जसराजजी की आज तक कोई ऐसी रचना सुनने को नहीं मिली जो लम्बे समय तक याद रहे मिले सुर मेरा तुम्हारा जो गीत था जिसे दूरदर्शन पर हमने बहुत देखा था वो हमें बहुत पसन्द था तब भी और आज भी पसन्द है......और इसी पोस्ट के बाद मयंकजी ने इस बात को ध्यान में रखते हुए पं जसराज की यादगार रचना से अपने ब्लॉग की शुरूआत की है जो स्वागत योग्य है....मयंक जी हमारी शुभकामनाएं स्वीकार करें।और इसी बात पर मशहूर गायिका छाया गांगुली जी के मधुर स्वर में नज़ीर अकबराबादी की इस रचना का आनन्द लीजिये।

जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की

परियों के रंग दमकते हों
ख़ुम शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों

नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों

मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अँगिया पर तक के मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की

जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की


आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...