अभी जुमा जुमा कुछ ही दिन हुए हैं, आई आई टी के एक कमरे में हमारी मुलाकात हुई थी, मैं बात कर रहा हूं,उस यादगार शाम की जब थॊड़े से चिट्ठाकारों का मिलन हुआ था, मिलना सुखद था, अनीता जी और अभय ने इस पर विस्तार से लिखा है, मैं भी लिखने की सोच रहा था, पर ना मैं अभय की तरह लिख सकता हूं, और ना अनीताजी की तरह, तो लिखने की योजना मैने टाल दी, पर कुछ बात जो मेरे मन मे आईं उस मिलन के बाद उसे लिखने की कोशिश कर रहा हूं
बचपन में पेनफ़्रेन्डशिप का शौक था, हालांकि इसमें भी उतना नही धंसे जितना ब्लॉग में धंस चुके हैं,लेकिन उन पेनफ़्रेन्डशिप के ज़माने में किसी मगज़ीन में ऐसे पते नोट करने का शौक ज़रूर था जिनकी उम्र और शौक मुझसे मिलते जुलते थे, पर कभी ऐसे सम्बन्ध बन नही पाये उसकी कोई याद भी बची नहीं है, मै दूसरी बार किसी ब्लॉगर मीट का हिस्सा बना, कौतुहल तो था अनजान लोगों को जानने का, यहां अनजान शब्द थोड़ा ठीक नहीं लग रहा क्योकि हम तो उनके विचार उनके ब्लॉग को पढ़ कर जान ही लेते हैं,फिर भी जिनसे कभी नही मिला उनसे मुलाकात और उनके मुंह से अपना नाम सुनना या सबके प्रति उनकी आत्मीयता देखकर मन प्रसन्न तो होता ही है,
उन तमाम लोगों को जो ठुमरी पर आते हैं, अपनी टिप्पणियां देते है,शुभकामनाएं देते हैं ,सुझाव आदि देते हैं जिनसे मै कभी मिला भी नहीं और उन सबकी ऐसी अत्मीयता का मैं कायल हूं, उन सभी के लिये मन्ना डे का ये गीत समर्पित करना चाहता हूं, पर गीत सुनने से पहले मुझे फ़िराक साहब का ये शेर याद आ रहा है....
पाल ले एक रोग नादां
ज़िन्दगी के वास्ते
सिर्फ़ सेहत के सहारे
ज़िन्दगी कटती नहीं
उस पल को याद करते हुए ये मन्ना दा का गीत पेश है किसने लिखा और किसने दिया संगीत ये मैं जानता नहीं पर ये अवश्य जानता हूं कि ये दोनो गीत सभी चिट्ठाकारों को समर्पित है सुने और आनन्द लें ।
पहला गीत है पल भर की पहचान .......
और दूसरा गीत ये आवारा रातें दोनो गीत मन्ना दा ने गाये हैं।
बचपन में पेनफ़्रेन्डशिप का शौक था, हालांकि इसमें भी उतना नही धंसे जितना ब्लॉग में धंस चुके हैं,लेकिन उन पेनफ़्रेन्डशिप के ज़माने में किसी मगज़ीन में ऐसे पते नोट करने का शौक ज़रूर था जिनकी उम्र और शौक मुझसे मिलते जुलते थे, पर कभी ऐसे सम्बन्ध बन नही पाये उसकी कोई याद भी बची नहीं है, मै दूसरी बार किसी ब्लॉगर मीट का हिस्सा बना, कौतुहल तो था अनजान लोगों को जानने का, यहां अनजान शब्द थोड़ा ठीक नहीं लग रहा क्योकि हम तो उनके विचार उनके ब्लॉग को पढ़ कर जान ही लेते हैं,फिर भी जिनसे कभी नही मिला उनसे मुलाकात और उनके मुंह से अपना नाम सुनना या सबके प्रति उनकी आत्मीयता देखकर मन प्रसन्न तो होता ही है,
उन तमाम लोगों को जो ठुमरी पर आते हैं, अपनी टिप्पणियां देते है,शुभकामनाएं देते हैं ,सुझाव आदि देते हैं जिनसे मै कभी मिला भी नहीं और उन सबकी ऐसी अत्मीयता का मैं कायल हूं, उन सभी के लिये मन्ना डे का ये गीत समर्पित करना चाहता हूं, पर गीत सुनने से पहले मुझे फ़िराक साहब का ये शेर याद आ रहा है....
पाल ले एक रोग नादां
ज़िन्दगी के वास्ते
सिर्फ़ सेहत के सहारे
ज़िन्दगी कटती नहीं
उस पल को याद करते हुए ये मन्ना दा का गीत पेश है किसने लिखा और किसने दिया संगीत ये मैं जानता नहीं पर ये अवश्य जानता हूं कि ये दोनो गीत सभी चिट्ठाकारों को समर्पित है सुने और आनन्द लें ।
पहला गीत है पल भर की पहचान .......
और दूसरा गीत ये आवारा रातें दोनो गीत मन्ना दा ने गाये हैं।