Saturday, July 31, 2010

मो: रफ़ी साहब को हमारी भी श्रद्धांजलि

आज के दौर में गायकों-गायिकाओं  की भरमार है, संगीत भी टनाटन है पर बहुत से गायकों की आवाज़, संगीत में दब सी गई है...जो जादू ६० और ७० के दशक में संगीत और गायक़ी ने बिखेरा  था वो आज कहीं ग़ुम सा हो गया है..शायद आज इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में  किसी के पास ठहर कर संगीत के बारे में सोचने का समय नहीं है....ऐसा भी नहीं है कि सब बुरी रचनाएं है पर ये तो ज़रूर है कि १०० में से ४ या ५ ही रचनाएं हमको प्रभावित कर पाती है पर उन गानों के बारे में सोचिये कि पिछले ५० सालों में भी कभी पुराना नहीं पड़ता...याद कीजिये कुमार शानू ने एक दिन में पच्चीस गानों की रिकार्डिंग की थी जो कहते है रेकॉर्ड माना जाता है...वहीं नौशाद साहब का कहना था " हम एक गाने पर पच्चीस दिन का समय लेते थे और आज एक दिन में पच्चीस गाने लोग रेकार्ड कर लेते हैं" खैर आज हम पीछे मुड़ के देखते हैं तो के एल सहगल,तलत महमूद, सी एच आत्मा, मुकेश, किशोर कुमार, मन्ना डे महेन्द्र कपूर,हेमन्त दा  सुरैया,कमल बारोट, गीता दत्त  लता मंगेशकर,आशा भोसले आदि की आवाज़ में बहुत से गीत तो ऐसे है जैसे लगता था कि इनके आलावा और किसी से गवाया जाता तो उतना मज़ा नहीं आता।
खैर ..........पता नहीं मैं क्या क्या लिखता जाउंगा और पोस्ट ख़ामख्वाह लम्बी होती जाएगी.....तो सीधे असली मुद्दे पर आते हैं ...    .  आज..... ३१ जुलाई है और आज के दिन रुहानी आवाज़ के जादूगर रफ़ी साहब की पुन्य तिथि पड़ती है ....आज संगीतकार मदन मोहन जी के वेबसाइट पर मो: रफ़ी साहब के दो अनरिलीज़्ड नगमें  रफ़ी साहब को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित किये गये है,उनमें एक के  बोल हैं "हर सपना इक दिन टूटे इस दुनियाँ में". संगीत मदन मोहन साहब का है |


और यहां बैजू बावरा फ़िल्म का वो गीत "ओ दुनियाँ के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले".....ये किसी स्टेज़ प्रोग्राम में रफ़ी साहब  का एकदम अनोखा अंदाज़ आप महसूस कर पायेंगे। रफ़ी साहब को हमार भी सलाम।


साहिर लुधियानवी की एक नज़्म " जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां है" फ़िल्म थी "प्यासा" सचिन देव बर्मन का संगीत और रफ़ी साहब की आवाज़ में ये दर्द को महसूस तो कीजिये सीधे दिल से बात करती है :



और चलते चलते कुछ यादगार गीत और नज़्म और उनके बारे में मेरे मित्र संजय पटेल जी के ब्लॉग पर जाना ना भूलें।

Thursday, July 15, 2010

आज १५ जुलाई प्रसिद्ध नाटककार बादल सरकार के जन्म दिन के बहाने

ठुमरी पर बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं गया, एक कारण व्यस्तता भी थी पर सिर्फ व्यस्ता ही नहीं थोड़ा मेरा आलसपन भी था या ऐसे भी सोचा जा सकता था की लिखने के लिए पर्याप्त "माल" नहीं मिल रहा  था, इतने  दिन वापस आने में लग गए वैसे आज सुप्रसिद्ध नाटककार  बादल सरकार की ८५ वीं जन्म तिथि है तो आज मुझे उन्हें नमन करने का मौक़ा मिल गया ...उनसे मेरा भावनात्मक रिश्ता जो रहा है, मेरे रंगमंच की शुरुआत बादल सरकार की वर्कशॉप से हुई थी......आज भी मेरी आंखों के आगे वो सारे दृश्य तैरते ही रहते हैं .....खैर बादल दा की पोस्ट के बहाने  कुछ बड़ी व्याख्या या विमल उवाच का कोई इरादा नहीं है मेरा,   हाँ इस बहाने मैं ज़िंदा हूँ इसकी तस्दीक करना चाहता हूँ | तो आज के दिन बादल दा को तहे दिल से जन्मदिन पर रंग जगत बादल दा के स्वस्थ और सुखी जीवन का आकांक्षी है | पिछले साल भी इसी दिन मैंने बादल दा कों याद करते हुए एक पोस्ट लिखी थी उसे भी यहाँ सहेज रहा हूँ और बादल दा पर अशोक भौमिक की किताब व्यक्ति और रंगमंच को भी देखते चलें ।

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...