Sunday, July 20, 2014

आपकी ख़िदमत में पेश हैं चंद शेर …तो अर्ज़ किया है …





ऐसा शेर, जिसको पढ्ते हुये ज़िन्दगी के कमज़ोर पलों में आपका मुर्झाया चेहरा मुस्कान से खिल उठता हो , ज़रा गौर फ़रमाइये और ध्यान से सुनिये।

  मौजे दरिया देखकर कश्ती में घबरायेंगे सब, मेरा क्या है , 
 मैं तो नाख़ुदा की कांख में घुस जाउंगा !! 

इस शेर में कांख की जगह कुछ और है इस पर चर्चा फिर कभी, लेकिन यहां मौज़ू ये है कि, शायद इस शेर के जवाब, बहुत से शायरों ने अपने - अपने अंदाज़ में दिया है, यहाँ कुछ शेर लगता है कि इसी शेर के जवाब में ही लिखे गये हों उनकी बानगी तो देखिये …

  अच्छा यकीं नहीं है तो कश्ती डुबो के देख , 
एक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम, ख़ुदा, भी है !! कतील शिफ़ाई !! 

तुम ही तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया , 
बचा सको तो बचा लो , कि डूबता हूं मैं !! मजाज़ !! 

गर डूबना ही अपना मुकद्दर है तो सुनों, 
 डूबेंगे हम ज़रूर , मगर नाख़ुदा के साथ !! कैफ़ी आज़मी !!  

 आने वाले किसी तूफ़ान का रोना लेकर ,
 नाख़ुदा ने मुझे साहिल पर डुबोना चाहा !! हफ़ीज़ जलंधरी!!

  न कर किसी पर भरोसा, के कश्तियाँ डूबे ! 
ख़ुदा के होते हुये, नाख़ुदा के होते हुये !! अहमद फ़राज़, !! 

नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख ,
 ना करेंगे, ना किनारों की तमन्ना की है !! सलीक लखनवी !! 

जब सफ़ीना मौज से टकरा गया ,
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया !! फनी निजामी कानपुरी !! 

नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है, 
तो फिर डूब जाओ ,ख़ुदा ख़ुदा न करो !! सुदर्शन फ़ाकिर !! 

किनारों से मुझे ऐ नाख़ुदा दूर ही रखना ! 
वहां लेकर चलो, तूफ़ां जहां से उठने वाला है !! अली अहमद जलीली !!

 हसान नाखुदा का उठाए मेरी बला ! 
 कश्ती खुदा पे छोड़ दूं लगर को तोड़ दूं !! ज़ौक !!

 # नाख़ुदा = खिवैया

Tuesday, February 4, 2014

बसंत ॠतु के आगमन पर

बसंत ॠतु  पर रचनाएं तो बहुत हैं पर आज की ताज़ा, नई युवा और दमदार आवाज़  को ढूंढना भी वाकई एक दुरूह कार्य है, पुरानी रेकार्डिंग में तो कुछ रचनाएं मिल तो जायेंगी,  भाई यूनुस जी के रेडियोवाणी  पर बहुत पहले  वारसी बधुओं की आवाज़ में इस रचना को सुना था और पिछले साल मैने इस रचना को सारा रज़ा ख़ान की आवाज़ में सुना था तब से इसी मौके की तलाश थी, 
पड़ोसी देश पाकिस्तान की सारा रज़ा ख़ान की मोहक आवाज़ में अमीर ख़ुसरो की इस रचना  का आप भी लुत्फ़ लें | 





फूल रही सरसों, सकल बन (सघन बन) फूल रही.... 
फूल रही सरसों, सकल बन (सघन बन) फूल रही.... 

अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार डार, 
और गोरी करत
सिंगार,लिनियां गढवा ले आईं करसों, 
सकल बन फूल रही... 

तरह तरह के फूल लगाए, ले गढवा हातन में आए । 
निजामुदीन के दरवाजे पर, आवन कह गए आशिक रंग, 
और बीत गए बरसों । 
सकल बन फूल रही सरसों ।






आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...