आज कुछ अलग सा सुनाने को मन है,एक समय था जब जनवादी गीतों को गाने वाले ग्रुप बहुत थे,अगर वो कभी कैसेट या सीडी निकाल भी लेते तो सही तरह से डिस्ट्रीब्यूट कर नहीं पाते थे..और ज़्यादा लोग उसे सुन भी नहीं पाते थे।जब इलाहाबाद में था तब हमने बिगुल नाम से जनवादी गीतों का कैसेट रिलीज़ किया था पर आज वो हमारे पास नहीं है शायद इरफ़ानजी के पास हो कह नहीं सकता,उन गीतों की मिक्सिंग अच्छी नहीं हो पाई थी,शायद इसलिये भी उसे हम सहेज के रख नहीं पाये हों कारण चाहे जो हो,पर जनगीतों में बहुत से प्रयास अतीत में हुए तो हैं पर लोगों के सामने सही तरह से नहीं आ पाये हैं, पंजाब गुरूशरण सिंह के ग्रुप का जो भी गीत सुना मैने मैं तो मुरीद हो गया उनका....गज़ब का कोरस और खुली आवाज़ एक दम मन तक पहुँचते थे वो गीत, पर कैसेट कभी मिला नहीं.....किसी के पास हो तो हमें बताए ,पटना हिरावल के साथियों ने भी बहुत से गीत गाये हैं पर उन्हें भी बहुत से लोगों ने सुना नहीं है।दिल्ली में हमने एक्ट वन के बैनर तले एक कैसेट निकाला था "हमारे दौर में" उसका इन्ट्रो नसीरूद्दीन साहब ने किया था,संगीत पियूष मिश्रा ने दिया था वो कैसेट भी कहीं धूल खा रहा होगा...पर प्रयास बहुत अच्छा था।
अभी पिछले दिनों समकालीन जनमत पर मैने कुछ गीत सुने सुनकर लगा कि अभी भी कुछ लोग तो हैं जो अपने आस पास की दुनियाँ कैसी है चेताते रहते हैं,,मुक्तिबोध का "अंधेरे में " और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का "कुत्ते" मैने सुना सुनकर , मैने झटपट छाप लिया अपने मोबाइल में मैने डाउनलोड करके बहुतों को सुनाया, "अंधेरे में " को सुनकर मेरा ये हाल था कि मैं गेटवे ऑफ़ इंडिया की प्रोटेस्ट गेदरिंग में शामिल हुआ,कुछ दिनों पहले मेरे मित्र उदय जिनके साथ मैने लम्बे समय तक रंगकर्म किया था उनके साथ अंकुर भी था जिसे मैने गोद में खिलाया भी है अब बड़ा हो गया है,ग्रैफ़िक आर्टिस्ट बन गया है,उनको देखकर मेरा उत्साह जागा और मैने उन गीतों को उन्हे सुनवाया आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब मुझे ये पता चला कि इन गीतों में कला कम्यून के अंकुर, बंटू और उनक्ले साथियों ने आवाज़ दी है,जिन्हें मैं एक अरसे से जानता था,और ये बात मुझे पता नहीं थी अंकुर से पता चला कि इन रचनाओं की धुन संतोष झा ने दी है, तो आज आप जिस रचना को सुनने जा रहे हैं संगीत संतोष झा ने दिया है..ये रचना फ़ैज़ साहब की है।
कुत्ते
ये गलियों के आवारह बेकार कुत्ते
के बख्शा गया जिनको ज़ौक़-ऐ-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया उन का
जहाँ भर की दुत्कार उन की कमाई ।
न आराम शब् को न राहत सबेरे,
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो एक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले
ये मज़लूम मख्लूक़ गर सर उठाएँ
तो इंसान सब सरकशी भूल जाए
ये चाहें तो दुनिया को अपना बनालें
ये आक़ाओं की हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इन को अहसास-ऐ-ज़िल्लत दिखा दे
कोई इन की सोई हुई दुम हिला दे.
galiyon ke awaara kutte.mp3 - Ankur and mandali.....music by santosh jha
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Thursday, December 25, 2008
Wednesday, December 24, 2008
१०८ है चैनल, फिर दिल बहलते क्यौं नहीं?
ये रचना नेट के माध्यम से मुझ तक पहुँची थी...मेरे मित्र अजय कुमार ने कुछ शब्दों में हेर फेर भी किया है..फिर भी कुछ कमियाँ ज़रूर हैं,ये किसकी रचना है मुझे मालूम नहीं। अब आप ही पढ़ें और बताएं कैसी है?

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है?
पहली बारिश में लेट होने की फ़िकर है
भूल गये बारिश में भीगकर टहलना क्या है?
सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फ़ुर्सत कहाँ है
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यौं नहीं?
१०८ है चैनल फिर दिल बहलते क्यौं नहीं?
इनटरनेट की दुनियाँ के तो टच में हैं,
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं
मोबाईल, लैन्डलाईन,सब की भरमार है,
लेकिन जिगरी दोस्त के दिलों तक पहुँचते क्यौ नहीं?
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?
सुबह- सुबह धूप में नहाये ये याद है
तो दोस्त शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है?

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है?
पहली बारिश में लेट होने की फ़िकर है
भूल गये बारिश में भीगकर टहलना क्या है?
सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फ़ुर्सत कहाँ है
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यौं नहीं?
१०८ है चैनल फिर दिल बहलते क्यौं नहीं?
इनटरनेट की दुनियाँ के तो टच में हैं,
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं
मोबाईल, लैन्डलाईन,सब की भरमार है,
लेकिन जिगरी दोस्त के दिलों तक पहुँचते क्यौ नहीं?
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?
सुबह- सुबह धूप में नहाये ये याद है
तो दोस्त शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है?
Monday, December 22, 2008
अपने प्रियतम शहर इलाहाबाद की एक खूबसूरत सुबह.......भाग -2
आपकी बधाईयाँ मिंकी तक पहुंच चुकी हैं,कुछ तस्वीरें मिंकी के पास और थीं कुछ तस्वीरें जो मेरे मन को भा गई तो आप भी देखिये क्या नज़ारा है, पिछले पोस्ट में आपके उत्साह को देखते हुए मैं आपको एक बार फिर से संगम से रूबरू करवा रहा हूँ,वैसे सीगल ने तो संगम पर अपना कब्ज़ा जमा रखा है वो तो इन तस्वीरों को देखकर पता ही चल रहा है....पर सुबहे प्रयाग का जवाब नहीं!ये तो आप ज़रुर कह ही उठेंगे....

Sunday, December 21, 2008
अपने प्रियतम शहर इलाहाबाद की एक खूबसूरत सुबह......
अब साल २००८ अलविदा कहने को है....नये साल का आगमन होने को है...२००९ सबके लिये खुशियाँ लेकर आये अपनी तो यही चाहत है......अभी कुछ तस्वीरें इलाहाबाद की देखकर मन फ़्लैशबैक में डूब गया...इलाहाबाद से दूर रहकर इन तस्वीरों को देखना मेरे लिये एक सुखद एहसास है...कुछ गीत संगीत सुनवाना चाहता था पर आज इन तस्वीरों से काम चलाना होगा मेरा प्रियतम शहर इलाहाबाद आज मुझे बहुत याद आ रहा है.....बहुत कुछ दिया है इस शहर ने ऐसे भी मैं इसे याद करना चाहता हूँ.......इन तस्वीरों को मेरी भांजी मिंकी ने अपने कैमरे में कैद किया । तस्वीरें इलाहाबाद संगम की हैं....





href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3GC18jINDv_qomzlZ-b2xAB4lDDcDd0Bu9SZGVdXprL0gqTr_AaSo1rD1APbFcuylb18FHOeSUBBek3ZNwe5KySWA3AF2QKJ47sa7bFVgL0OmElQBaZowroAxJNBjhaYYGVOYPSNDKHg/s1600-h/IMG_0654.JPG">
href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3GC18jINDv_qomzlZ-b2xAB4lDDcDd0Bu9SZGVdXprL0gqTr_AaSo1rD1APbFcuylb18FHOeSUBBek3ZNwe5KySWA3AF2QKJ47sa7bFVgL0OmElQBaZowroAxJNBjhaYYGVOYPSNDKHg/s1600-h/IMG_0654.JPG">
Thursday, December 4, 2008
बच्चों को सिखाना !
आज मैं अपने मित्र अजय कुमार की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ,और इस रचना को लिखते हुए अजय कहते है" विगत दिनों के आतंकी हमलों ने ऐसा कहने पर मजबूर कर दिया इसलिये मैं बुज़ुर्गों,बच्चों, और अभिभावकों से माफ़ी चाहता हूँ"
अब अपने नन्हें-बच्चों को पाठ विनम्रता का न पढ़ाना !
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य -अहिंसा नहीं सिखाना !!
जब नेता हों चोर -उचक्के ऐसे मंज़र रोज़ ही होंगे,
अपनों में गद्दार छुपे हों दिल पर खंज़र रोज़ ही होंगे !
रोज़ ही होगा देश में मातम,ख़ूँ के समन्दर रोज़ ही होंगे
चोट लगे तो रोने देना ,गोद में लेकर मत बहलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
झूठ बोलना,फूट डालना,जगह जगह दंगे करवाना !
उसे पढ़ाना पाठ घृणा का ,सिखलाना नफ़रत फ़ैलाना !!
सिखलाना कटु शब्द बोलना ,मजहब की दीवार बनाना !
नहीं प्यार की थपकी देना,लोरी गाकर नहीं सुलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
कर डाले जो देश का सौदा,ऐसा सौदेबाज़ बनाना !
धर्म की ख़ातिर कत्ल करा दे,धर्म का धंधेबाज़ बनाना !!
उसका कोमल ह्रदय कुचलकर,पत्थर दिल यमराज बनाना !
लाकर मत गुब्बारे देना,हाथी बनकर नहीं घुमाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
ना भागे तितली के पीछे, किसी पार्क में नहीं घुमाना !
नहीं खेलने जाने देना ,उसे खिलौने नहीं दिलाना !!
मीठी बातें कभी न करना, परीकथाएं नहीं सुनाना !
ख़ूँन के मंज़र जब दिख जाएं,आँख हाथ से नहीं दबाना !!
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
अजय कुमार
अब अपने नन्हें-बच्चों को पाठ विनम्रता का न पढ़ाना !
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य -अहिंसा नहीं सिखाना !!
जब नेता हों चोर -उचक्के ऐसे मंज़र रोज़ ही होंगे,
अपनों में गद्दार छुपे हों दिल पर खंज़र रोज़ ही होंगे !
रोज़ ही होगा देश में मातम,ख़ूँ के समन्दर रोज़ ही होंगे
चोट लगे तो रोने देना ,गोद में लेकर मत बहलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
झूठ बोलना,फूट डालना,जगह जगह दंगे करवाना !
उसे पढ़ाना पाठ घृणा का ,सिखलाना नफ़रत फ़ैलाना !!
सिखलाना कटु शब्द बोलना ,मजहब की दीवार बनाना !
नहीं प्यार की थपकी देना,लोरी गाकर नहीं सुलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
कर डाले जो देश का सौदा,ऐसा सौदेबाज़ बनाना !
धर्म की ख़ातिर कत्ल करा दे,धर्म का धंधेबाज़ बनाना !!
उसका कोमल ह्रदय कुचलकर,पत्थर दिल यमराज बनाना !
लाकर मत गुब्बारे देना,हाथी बनकर नहीं घुमाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
ना भागे तितली के पीछे, किसी पार्क में नहीं घुमाना !
नहीं खेलने जाने देना ,उसे खिलौने नहीं दिलाना !!
मीठी बातें कभी न करना, परीकथाएं नहीं सुनाना !
ख़ूँन के मंज़र जब दिख जाएं,आँख हाथ से नहीं दबाना !!
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
अजय कुमार
Subscribe to:
Posts (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...

-
रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
-
आज एक बहुत ही पुराना कोई गाना सुन रहा था वो गीत १९५० के आसपास का लिखा हुआ था ..जब भी...
-
अभी जुमा जुमा कुछ ही दिन हुए हैं, आई आई टी के एक कमरे में हमारी मुलाकात हुई थी, मैं बात कर रहा हूं,उस यादगार शाम की जब थॊड़े से चिट्ठाकारों ...