न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Wednesday, June 25, 2008
नसीरुद्दीन शाह साहब का ये जलवा देखा है आपने?
नसीरूद्दीन शाह के अभिनय के बारे में कहा जाय तो किसी भी चरित्र को वो पर्दे पर निभाएं उनके अभिनय में गज़ब की गहराई होती है...अलग अलग भुमिका करने में नसीर साहब का जवाब नहीं........जिस भी चरित्र को निभाते हैं उसमें इतना धंस जाते हैं कि लगता ही नहीं कि वो अभिनय कर रहे हैं.......समझ में नहीं आता कि फ़िल्म के साथ साथ नाटक के लिये भी समय कैसे निकाल लेते हैं....नसीर साहब ने एक से एक चरित्रों को अपने अभिनय से यादगार बना दिया ....बेहतरीन अभिनय तो अनेकों फ़िल्म में उन्होंने की है अब गिनाने लग जाय तो पोस्ट थोड़ी लम्बी हो जाएगी..जो मैं चाहता नहीं....आज उनके अभिनय की मिसाल देखना हो तो ज़रा इस वीडियो को देखिये ये पाकिस्तानी फ़िल्म खु़दा के लिये का एक टुकड़ा है अभी इस विवाद में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहता कि नसीरूद्दीन शाह,पंकज कपूर,ओम पुरी जैसे अभिनेताओं को बॉलीवुड में जितना सम्मान मिलना चाहिये था वो उन्हें नहीं मिला....इन पर कभी और .अभी नसीर साहब का जलवा देखिये उनके अभिनय का नज़ारा देखना है तो इस वीडियो क्लिप पर क्लिक करके आप देख सकते हैं.......
Thursday, June 12, 2008
ये टैंगरिन ठुमरी क्या है?
आज कल रीमिक्स का ज़माना है,किसी गाने की चर्चा हुई नहीं की बाज़ार में उसका रीमिक्स ज़रूर उतर आयेगा,पर ठुमरी का रीमिक्स ? अब भाई प्रयोग का तो कोई अन्त नहीं है,प्रयोग की कोई सीमा भी तो नहीं है,पर मैने भी जब ये रचना सुनी तो धुन तो अच्छी थी..पर कुछ अखर भी रहा था कुछ और नाम भी दिया जा सकता था खैर इस प्रयोग को अंजाम दिया प्रेम जोशुआ साहब के साथ साथ मनीश ने, जो फ़्यूज़न जैसा कुछ कुछ बजाते रहते हैं, इनकी रचना किशन - कन्हईया की भक्ति पर ही आधारित रहतीं हैं, जिसमें भारतीय और पश्चिमी वाद्ययंन्त्रों का इस्तेमाल रहता है,पर कोई ऐसी रचना जिससे आत्मविभोर हो जाँय, ऐसा इनसे तो सुना नहीं,पर यहाँ उनकी टेंगरीन ठुमरी नामक रचना खास आपके लिये लाया हूँ.... सुनिये और बताईये कि ये क्या है? इस रचना के बारे में जो अंग्रेज़ी में शीर्षक दिया गया है वो कुछ ऐसा है( Maneesh-de-moo- tangerine-thumri-orange-turban-remix).तो अब आपके सामने पेश है ऑरेन्ज -टर्बन रीमिक्स...........टैंगरिन ठुमरी अब आप इसे सुनिये और सुनकर बताइये कैसा लग रहा है, वैसे जहाँ तक मेरी राय है तो इस रचना को ठुमरी से जोड़ने की कोशिश करेंगे तो कन्फ़ूज़न होगा, तो इसे आप फ़्यूज़न मान कर सुने यही ठीक रहेगा....लोग कहते हैं संगीत में फ़्यूज़न के साथ कन्फ़्यूज़न का गहरा रिश्ता है.....
और नीचे के प्लेयर से दूसरा रीमिक्स भी आप सुनिये अभी कुछ समय पहले मैने कैरेबियन चटनी सुनाई थी...वो तो मूल थी,अब वहां पर भी चटनी का रीमिक्स बनता है ऐसे तो बहुत से रीमिक्स हैं, पर आज जो रीमिक्स आप सुनेंगे उसे गाया है चटनी गायक रिक्की जय ने.....त्रिनीदाद और आस पास के कैरेबियन संसार का पहचाना नाम है.तो सुनिये.....मोर तोर...मोर तोर....
boomp3.com
इस प्लेयर के साथ थॊड़ी समस्या है कई बार क्लिक करने पर बफ़र होने के बाद सुने तो बेहतर होगा
और नीचे के प्लेयर से दूसरा रीमिक्स भी आप सुनिये अभी कुछ समय पहले मैने कैरेबियन चटनी सुनाई थी...वो तो मूल थी,अब वहां पर भी चटनी का रीमिक्स बनता है ऐसे तो बहुत से रीमिक्स हैं, पर आज जो रीमिक्स आप सुनेंगे उसे गाया है चटनी गायक रिक्की जय ने.....त्रिनीदाद और आस पास के कैरेबियन संसार का पहचाना नाम है.तो सुनिये.....मोर तोर...मोर तोर....
boomp3.com
इस प्लेयर के साथ थॊड़ी समस्या है कई बार क्लिक करने पर बफ़र होने के बाद सुने तो बेहतर होगा
Monday, June 9, 2008
फिर दर्द उठा दिल में और आँख भी नम है.........
बहुत पहले जगजीत सिंह साहब ने अपने पसन्दीदा गज़ल गायकों को चुनकर एक कैसेट रिलीज़ किया था,किस नाम से ये अलबम था मुझे याद नहीं, वो अलबम तो समय के साथ पुराना पड़ गया पर आज लम्बे समय के बाद भी सुमीता चक्रवर्ती की आवाज़ ज़ेहन में अपनी जगह बराबर बनाए हुए है ,सुमिता की गायी ग़ज़ल "फिर दर्द उठा दिल में और आँख भी नम है.".......दर्द भरी मीठी सी आवाज़ में इस ग़ज़ल को सुनना वाकई एक अनुभव है.....इस ग़ज़ल के अलावा मैने सुमीता की आवाज़ में कोई दूसरी रचना कभी सुनी नहीं...अगर आपने सुना हो तो बताएं.....तो पेश है सुमीता की आवाज़ में एक ग़ज़ल, संगीतकार है जगजीत सिंह।
Subscribe to:
Posts (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
-
आज मैं अपने मित्र अजय कुमार की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ,और इस रचना को लिखते हुए अजय कहते है" विगत दिनों के आतंकी हमलों ने ऐसा कहने प...
-
पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
-
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...