न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Monday, March 2, 2009
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
एक और नये साथी ने आभासी दुनियाँ में कदम रखा है, ये हमारे बहुत ही पुराने मित्र हैं साथ साथ संगीत के साथ लिट्टी चोखा की बात जब आये तो चेहरा साथी का खिल खिल जाता है फिर अपने हाथों से बनाने का भी अच्छा शौक है इन्हें.... नाम है इनका मयंक राय और इन्होंने अपने ब्लॉग का नाम रखा है "क्या रंग है ज़माने का" तो मित्र का उत्साह बढ़ाएं.... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मयंक के पिटारे में जितना मसाला है उससे कभी आप निराश नहीं होंगे,मैने पिछली पोस्ट में लिखा था कि पता नहीं क्यौं पं भीम सेन जोशी और पं जसराजजी की आज तक कोई ऐसी रचना सुनने को नहीं मिली जो लम्बे समय तक याद रहे मिले सुर मेरा तुम्हारा जो गीत था जिसे दूरदर्शन पर हमने बहुत देखा था वो हमें बहुत पसन्द था तब भी और आज भी पसन्द है......और इसी पोस्ट के बादमयंकजीने इस बात को ध्यान में रखते हुए पं जसराज की यादगार रचना से अपने ब्लॉग की शुरूआत की है जो स्वागत योग्य है....मयंक जी हमारी शुभकामनाएं स्वीकार करें।और इसी बातपर मशहूर गायिका छाया गांगुली जी के मधुर स्वर में नज़ीर अकबराबादी की इस रचना का आनन्द लीजिये।
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों ख़ुम शीशे जाम छलकते हों महबूब नशे में छकते हों जब फागुन रंग झमकते हों
नाच रंगीली परियों का कुछ भीगी तानें होली की कुछ तबले खड़कें रंग भरे कुछ घुँघरू ताल छनकते हों जब फागुन रंग झमकते हों
मुँह लाल गुलाबी आँखें हों और हाथों में पिचकारी हो उस रंग भरी पिचकारी को अँगिया पर तक के मारी हो सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की
5 comments:
वाह भैया ... मस्त किये हैं ..... ई वाला तो गजब्बै है .... बहुत दिन से नहीं सुने थे. अभी लगातार १०-१२ बार सुनेंगे ..... "जब फागुन रंग झमकते हों ......"
गज़ब है ये ... जब सुनो /जितना सुनो कम है .
bahut baDiya, Nazir kee ye rachnaa sunwaane ke liye.
मयंक को मेरी शुभकामनायें!
मस्त है
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