
पता नहीं क्या क्या करना चाहता हूँ, पर समस्या ये है की ऑफिस का भी काम इतना सर पर पड़ा रहता है की अपने काम से मुक्त होकर कुछ व्यक्तिगत चिन्तन जैसी बात तो सोचना भी मुश्किल सा हो गया है, आज बैठा था की अचानक अनिल सिह ( अपने एक हिन्दुस्तानी की डायरी वाले) याद आ गए उन्होंने अरसा पहले जब हम बलिया मे रहते थे,तब उन्होने एक लोकगीत "छाप के पेड़ छियुलिया, की पतबन गहबर हो" ये लोकगीत उन्होंने मेरे घर पर सुनाया था और इस गीत को सुनकर मेरी माँ के आँख में आँसू आ गए थे, काफ़ी देर तक तो माँ इस गीत को सुनकर कही, अपने में ही खो गईं थीं उनको देखकर लगा था की लोकगीतों में भी कितना दम है जब सम्प्रेषित करती है तो सीधे दिल से सम्वाद स्थापित करती है, हम भी जब किसी जलसे में समूह के साथ लोकगीत गाया करते थे, तो वो समां देखते ही बनता था ।

ये सोचकर भी की सैकड़ो साल से लोकगीतों की परम्परा, हमारे समाज में आज भी आख़िर जिंदा कैसे हैं? यही सोचकर आश्चर्य भी होता है , हाँ ये ज़रुर हुआ है की, शादी विवाह के मौकों पर गाँव जवार में जो लोकगीत गाए जाते थे, उनकी जगह फिल्मो की धुनों ने ले ली है, अब तो ये हाल है की भजन भी फिल्मी धुनों पर गाये जाते हैं, आज भी बहुत सी फ़िल्मो के गाने लोकधुन की वजह से ही हिट होते हैं, ये दिगर बात है कि लोकगीतों का स्थान हमारे यहां हमेशा महत्वपूर्ण होने के बावजूद, धीरे धीरे ख्त्म होता जा रहा है, अब नई पीढ़ी के लोग भी शादी विवाह के मौके पर फ़िल्मी धुनों का ही इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं, जिससे लोकगीतॊ को नुकसान ही पहुंचा है।
हमारे पुराने मित्र उदय ने पिछले दिनों एक फ़िल्म कस्तूरी बनाई थी, उस फ़िल्म मे एक ख़ास बात थी, कुछ ऐसे लोकगीत जो हम सुना करते थे बरसों पहले, उन लोकगीतों का इस्तेमाल उदय ने अपनी फ़िल्म कस्तूरी में किया, ये लोकगीत हमेशा लोकप्रिय रहे हैं, इस वक्त मैं आपके लिए दो गीत इसी फ़िल्म कस्तूरी चुनकर लाया हूँ, संगीत निर्देशन प्रियदर्शन का है, जिनकी ये पहली फ़िल्म थी । आप ज़रूर सुनें, पहला गीत है बाबा निमियां के पेड़ जिन काट्यु हो. बाबा निमिया चिरैय बसे......जिसे गाया है मराठी गायिका आरती अंकलीकर ने और दूसरा गीत है पछियुं अजोरिया ढुरुकि चली... ...आवाज़ है कविता कृष्णामूर्ती की,तो लीजिये पेश हैं यहां ये तो बता दूं कि ये दोनो गीत भी फ़िल्म से ही हैं, ज़रा आरती अंकलीकर की आवाज़ में इस लोकगीत को तो सुनिये.....
यहां आप कविता जी की आवाज़ में सुन सकते है... पश्चिम अंजोरिया ढुरुकि चली...