जवानी की सतरंगी छाँव, जवानी का जोश, जवानी-दीवानी ,ढलती जवानी, और जवानी के बारे मे ना जाने क्या लिखा जाता है, अब मै अपनी जवानी के बारे मे पुराना किस्सा ज़रुर सुनाना चाहता हूं ...मै भी इसे अपने पुराने दिन के रूप में ही याद करना चाहुंगा, जवानी के दिन के रूप मे नही, क्योकि अभी तो मै जवान हूं, तो इलाहाबाद के दिनो की बात है, रंगकर्म अपने उफ़ान पर था, नाटककार ब्रेख्त का नाटक इनफ़ॉरमर हम कर रहे थे, तब मै बाइस साल का रहा होउंगा, नाटक का एक पात्र मुझे भी निभाना था, निर्देशक थे तिगमांशु धूलिया.. तो निर्देशक ने बताया कि जो चरित्र आप निभा रहे है, उसकी उम्र लगभग पैंतालिस की है..तो मैने उस चरित्र के बारे सोचना शुरु किया, पैतालिस का आदमी कैसा होना चाहिये कैसा दिखना चाहिये....थोड़ा गाम्भीर्य धारण करना चाहिये और साथ साथ चाल भी धीमी होनी चाहिये.. बोलना भी बड़ा तौलकर....उसकी कनपटी के दोनो तरफ़ बाल सफेद होने चाहिये, वो तेज़ी जो जवानी मे रहती है वो तो बिल्कुल नही होनी चाहिए, पर आज मैं पैतालिस का हूं और आज लग रहा है, जो मैंने पहले इस उम्र के बारे में कल्पना की थी, वो ग़लत थी, क्योकि अभी भी मैं जवान हूं...हां इतना ज़रुर है, अपनी जवानी को बरकरार रखने के लिये बस इतना हुआ है कि बालों का रंग अब काला नहीं रह गया, उसमे भी लोरियल का इस्तेमाल हो रहा है...... जवानी बरकरार है, जब एक आध महीने में बालों का रंग थोड़ा धूमिल होने लगता है तो अपने कुछ खास लोग बोलने लग जाते है कि लगता है, लोरियल आंटी बहुत दिनो से आई नही हैं बुला लीजिये भाई और मै लोरियल आंटी को बुलाता हूं और फिर से पहले जैसा जवान हो जाता हूं
एक बार मै अपने ऑफ़िस की सीढियो से नीचे उतर रहा था तो मेरे एक सीनियर रास्ते में मिल गये, मैने क्या देखा, कि उनकी मूंछ के बाल उनके सर के बाल से कुछ ज़्यादा ही काला नज़र आ रहा था मैने इसका राज पूछा, तो उन्होने बताया कि मेरी मूंछ की उम्र सर के बालो से सोलह साल कम है, लेकिन ये बताना कि ये कमाल किसी रंग का है, इससे कन्नी काट गये, अरे कुछ तो ऐसे भी है सर के बाल सफ़ाचट्ट कर रखे है तो सफ़ेदी का सवाल ही नही उठता.. तो कहना ये चाहता हूं कि अभी भी मैं जवान हूं और इसी बात पर मल्लिका पुखराज की एक रचना याद आ रही है हालांकि इस रचना को मेरे पिता भी बहुत पसन्द करते थे और आज मै भी कह रहा हूं कि मुझे बेहद पसन्द है. धुन तो साधारण ही है. पर आवाज़ ऐसी की बार बार सुनने का मन करे , रचना है हफ़ीज़ जलंधरी की .... गाया है, मल्लिका पुखराज ने, तो मुलाहिज़ा फ़रमाइये:
अगर पुरानी तस्वीर देखने में परेशानी हो रही हो तो यहां पर आप इसे बखूबी सुन भी सकते है: .....
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Friday, October 12, 2007
अभी तो मैं जवान हूँ !!!
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14 comments:
धुन साधारण कहाँ है , मस्त है और मलिका पुखराज़ की आवाज़ तो क्या कहने । मेरे पसंदीदा गायिकाओं में से हैं ।
फोटो देखा तो पहचान लिया आपको. फिर हम बहुत खुश हुए आपको देखकर. जैसे पहले हुआ करते थे. ये वर्मा सफिक्स तो आपने दिल्ली में नहीं लगाया था. हम तो आपको ओनली विमल के ही नाम से जानते थे. अजगर अभी भी हंस रहा है..
विमल भाई
सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगा कि इतने बढ़िया चिठ्ठे को इतने दिनों तक देख नहीं पाया, आज यों ही मैं अपने नाम को गूगल में खोज रहा था तो आपका लिंक मिला। पता नहीं क्यों मेरे ध्यान में भी नहीं आया आज तक यह सुन्दर चिठ्ठा।
सबसे पहले मैंने अपने आराध्य मेहंदी हसन के वीडियो देखे बाकी के सारे लेख अब फुर्सत से पढूंगा।
मैने भी हिन्दी फिल्म संगीत पर ( खासकर पुराने और दुर्लभ गीतों पर) एक चिठ्ठा बनाया है, आप देखें और सुझाव दें।
धन्यवाद
गीतों की महफिल
॥दस्तक॥
आपके चिठ्ठे का लिंक गीतों की महफिल के साईडबार में जोड़ रहा हूँ उम्मीद है आपको कोई आपत्ति नही होगी।
गीतों की महफिल
शानदार प्रस्तुति है भाई……
बस, मन सिर्फ बुढ़ापे की खिड़की से न झांकने लग जाए…।
मलिका पुखराज की ये कालजयी रचना वाक़ई लाजवाब गुलूकारी का नमूना है विमल भाई.मुझे लगता है इस कंपोज़िशन को आसान इसलिये बनाया गया कि बुढ़ापे में भी आप अच्छा गा लेते हैं या गा सकते हैं इस बात का गुमान बना रहे.
क्या बात है प्रत्यक्षा जी, आपने लिखा धुन साधारण कहाँ है ? पर मेरे साधारण समझाने का अर्थ तो ये है की कोई भी रचना सुनने के बाद आप भी कोशिश करें और गा सके, इसमे कम से कम वो कसरत तो नही है, कोई भी गा सकता है, सागर भाई मुझे भी खुशी है की आपने सराहा और आप अपने चिट्ठे से जोड़े इसमे कैसा एतराज़? आपके चिट्ठे का भी लिंक मैं अपने यहाँ समय मिलते ही लगा दूंगा आपका बहुत बहुत शुक्रिया,और संजय पटेल जी आप जब भी लिखते है तो आपकी अदा बड़ी शायराना होती है यही अदा तो हमें अच्छी लगती है,और डिवाइन इण्डिया आपसे बस यही कि आप भी मेरे लिखे पर दाद देते है ये मेरे लिये बड़ी बात है क्योकि मै ही जानता हूं कि मै कितने पानी में हूं,और अजगर भाई, हा हा यहां मै भी हंस रहा हूं कि एक अजगर को क्या सम्बोधन करूं चलिये अजगर भाई कह लेता हूं तो आप भी मुझे जानते है ये जानकर मुझे खुशी हो रही है और ये भी बता दूं कि आपके लिखे का मैं भी प्रशंसक हूं अच्छा लगा आपका टिपियाना धन्यवाद आप सभी को !!!!
विमल भाई, कैसी बात करते हैं? इतने बेहतरीन गाने की पसंद तो असल जवान ही कर सकते हैं.
यूँ जवान तो आपकी तरह ही अभी मैं भी हूँ, मगर अपनी बात इतनी दमदारी से नहीं रख पाया, बस्स!! :)
आज सुन पाया हूँ..मेरे संग्रह में वैसे है यह..
विमलजी मैं गीत संगीत का अधिक जानकार नही हूँ ,बस कह सकता हूँ की इसे कोई भी व्यक्ति कभी भी आराम से गुनगुना सकता है- बदन या कपड़ों पर साबुन लगाते समय, सायिकल चलाते समय ,खेत मे काम करते समय और यहाँ तक की पान खाते समय भी !
विमलजी..बहुत बढिया काम कर रहे है अंग्रेज़ी में लिख के हिन्दी में भाव प्रकट कराना अपने आप में एक अजूबा है ....आप के बचपन और लड़कपन की बातें जानकर लगा अक्सर हम सभी होते अलग अलग है जीते जिन्दगी भी अलग है पर घटनाए अक्सर कुछ कुछ जानी -पहचानी सी लगाती हैं.
मैने इसका राज पूछा, तो उन्होने बताया कि मेरी मूंछ की उम्र सर के बालो से सोलह साल कम है,
हा हा हा..क्या बात है !
बहुत खूब गीत सुनाया आपने ! इसके बोल कहीं आपकी नज़र में हों तो बताइएगा.
aap to sachmuch lajabav hain.apne dhun ka maujuda tevar banay rakhen.
बहुत सुन्दर, मधुर।
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