आज मैं अपने मित्र अजय कुमार की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ,और इस रचना को लिखते हुए अजय कहते है" विगत दिनों के आतंकी हमलों ने ऐसा कहने पर मजबूर कर दिया इसलिये मैं बुज़ुर्गों,बच्चों, और अभिभावकों से माफ़ी चाहता हूँ"
अब अपने नन्हें-बच्चों को पाठ विनम्रता का न पढ़ाना !
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य -अहिंसा नहीं सिखाना !!
जब नेता हों चोर -उचक्के ऐसे मंज़र रोज़ ही होंगे,
अपनों में गद्दार छुपे हों दिल पर खंज़र रोज़ ही होंगे !
रोज़ ही होगा देश में मातम,ख़ूँ के समन्दर रोज़ ही होंगे
चोट लगे तो रोने देना ,गोद में लेकर मत बहलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
झूठ बोलना,फूट डालना,जगह जगह दंगे करवाना !
उसे पढ़ाना पाठ घृणा का ,सिखलाना नफ़रत फ़ैलाना !!
सिखलाना कटु शब्द बोलना ,मजहब की दीवार बनाना !
नहीं प्यार की थपकी देना,लोरी गाकर नहीं सुलाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य - अहिंसा नहीं सिखाना
कर डाले जो देश का सौदा,ऐसा सौदेबाज़ बनाना !
धर्म की ख़ातिर कत्ल करा दे,धर्म का धंधेबाज़ बनाना !!
उसका कोमल ह्रदय कुचलकर,पत्थर दिल यमराज बनाना !
लाकर मत गुब्बारे देना,हाथी बनकर नहीं घुमाना !!
आने वाले कल की खा़तिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
ना भागे तितली के पीछे, किसी पार्क में नहीं घुमाना !
नहीं खेलने जाने देना ,उसे खिलौने नहीं दिलाना !!
मीठी बातें कभी न करना, परीकथाएं नहीं सुनाना !
ख़ूँन के मंज़र जब दिख जाएं,आँख हाथ से नहीं दबाना !!
आने वाले कल की ख़ातिर सत्य अहिंसा नहीं सिखाना
अजय कुमार
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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4 comments:
कैसे सिखाऊ ये सब..
मीठी बातें कभी न करना, परीकथाएं नहीं सुनाना !
ख़ूँन के मंज़र जब दिख जाएं,आँख हाथ से नहीं दबाना !!
" इस कविता में आपका आक्रोश साफ़ नजर आ रहा है.... मगर कैसे ये सब ......"
अद्भुत व्यंग्य.
kya karen nirasha main aise hi vichar man main aate hain.
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