
बचपन की सुहानी यादो की खुमारी अभी भी टूटी नही है..
जवानी की सतरगी छाव बलिया,आज़मगढ़, इलाहाबाद, और दिल्ली मे..
फिलहाल १२ साल से मुम्बई मे..
निजीचैनल के साथ रोजी-रोटी का नाता..
असल में जो पोस्ट पहले पहल ठुमरी के लिये लिखी गई थी वो दो साल से ठुमरी के एडिट वाले भाग में लम्बे समय से पड़ी थी,शायद इस पोस्ट की क़िस्मत में आज के दिन ही छपना लिखा था, वो पोस्ट मूल रूप से आपके सामने है।

अरे, क्या नहीं दिखा, भाई?... और क्यों नहीं दिखा? हम घास छील रहे हैं? कि आप गलत महफिल में चले आये हैं, बात क्या है? जो भी है अच्छा नहीं है...
"ठुमरी" नाम अपने अज़दक का दिया हुआ है, पहली पोस्ट छपने के बाद भी ठुमरी की दिशा तय नहीं हो पायी थी, बहुत सुविधाजनक तरीके़ से पहली ही पोस्ट में एक कुत्ते की तस्वीर लगा कर किसी तरह पोस्ट पूरी की गई,क्यौकि कुछ भी लिखने की अपनी स्थिति दूर दूर तक थी ही नहीं, खैर अज़दक महोदय को लगता था कि मैं लिख सकता हूँ? और मेरी स्थिति ऐसी कि ब्लॉग की दुनियाँ से अनजान,अन्य चिट्ठे पर जा जा कर टिप्पणी करता रहता और कुछ दिनों बाद मैने देखा कि टिप्पणी करते करते कुछ कुछ लिखने लग गया हूँ,और धीरे धीरे ये तय भी होता गया कि ठुमरी को अपनी पसन्दीदा संगीत रचनाओं और साथ साथ अपने मन में उमड़ते गुबारों का मंच बनाना है ,कितना सफल हुआ ये तो पता नहीं, पर खुद को कुछ कुछ जानने में अपनी ठुमरी ने बहुत मदद की है , साथ साथ उन्हें भी मैं धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने हिन्दी में लिखने वाले आसान औजार बनाए,जिसकी वजह से मेरे जैसे लोग भी हिन्दी में टूटा फूटा ही सही, लिखने लगे ,उन्हें भी मेरा सलाम पहुंचे जो गाहे बगाहे ठुमरी पर आकर अपनी टिप्पणियो से मेरा मनोबल हमेशा बढ़ाते रहे हैं। और उनको भी मेरा सलाम जिन्होंने ठुमरी को अपने चिट्ठे पर जगह दी है।
और इसी बात पर मुन्नी बेग़म की गायी हुई कुछ फड़कती हुई ग़ज़लो को सुनते हैं,जिन्हें किसी भी महफ़िल में आप भी गायें तो महफ़िल लूट सकते हैं।
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