न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Sunday, September 16, 2012
कैरेबियन चटनी( Caribbean chutney) और भारतीय लोकगीत (Indian folk song)
Thursday, June 14, 2012
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ... मेंहदी हसन/ अहमद फ़राज़
दिल्ली के एक अपार्टमेंट में रंग-ए-महफ़िल सजी हुई है,ये मंज़र मुम्बई, इलाहाबाद या किसी भी शहर का हो सकता है | जाड़े का दिन है,बाहर कुहासा घिर आया है, रात का समा है, महफ़िल,कव्वाली से लेकर फिल्मी गानों से तर है, कभी मुन्नी बेगम तो कभी फ़रीदा खानम, कभी किशोर कुमार तो कभी रफ़ी,इधर हारमोनियम पर उंगलिया फिर -फिर रही थी और उधर लोग बाग झूम -झूम से रहे हैं ,गुनगुना रहे हैं, साथ साथ सुरों के साथ ताल मेल बिठाने में में लगे हैं, कुछ सुर में हैं तो कुछ बेसुरे,जितने भी लोग बैठे हैं इस महफ़िल में, सब अलहदा अपनी अपनी दुनिया में डूब उतरा रहे हैं, रात गहरी और गहरी होती जा रही है, खिड़की के बाहर काले आसमान पर नीले रंग ने अपनी दस्तक देनी शुरु कर दी है ,गज़लों को सुन सुन कर कुछ तो वहीं ढेर से हो चुके हैं ……अधनींदी अलसाई सी महफ़िल |
ऐसे में एक तीखी लड़खड़ाती सी आवाज़ उभरती है "भाई रंजिश ही सही याद है? अगर सुना सको तो ये तुम्हारा एहसान होगा मुझपर" और फिर क्या था गायक, हारमोनियम पर रखी डायरी के पन्नों को फ़ड़फ़ड़ाना शुरु कर देता है और तभी भीगी भीगी सी आवाज़ में "रजिश ही सही ……आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ " शुरु हो जाता है "समा धीरे धीरे फिर से बंधने सा लग जाता है – मुरीद, प्यार में पटकी खाए मजनूं के अंदाज़ में आह आह और वाह वाह से कर उठते हैं, कुछ तो प्यार की कल्पनाओं में खो जाते हैं और महफ़िल फिर से जवान हो जाती है, ऐसा लगने लगता है कि ये गज़ल उन्हीं को देखकर शायर ने लिखी हो |
“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ”
गज़ल मेंहदी साहब की महकती जादुई आवाज़ में है, इस गज़ल की लम्बाई कोई 28 मिनट की है,तो पेश ए खिदमत है मेंहदी साहब के तिलस्म का जादू शायर हैं अहमद फ़राज़ |
|| मेंहदी साहब को हमारी तरफ़ से विनम्र श्रद्धांजलि ||
ये ऑडियो गुड्डा नवीन वर्मा के सौजन्य से प्राप्त हुआ है तो गुड्डा को शुक्रिया !!
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