ऐसा शेर, जिसको पढ्ते हुये ज़िन्दगी के कमज़ोर पलों में आपका मुर्झाया चेहरा मुस्कान से खिल उठता हो , ज़रा गौर फ़रमाइये और ध्यान से सुनिये।
मौजे दरिया देखकर कश्ती में घबरायेंगे सब, मेरा क्या है ,
मैं तो नाख़ुदा की कांख में घुस जाउंगा !!
इस शेर में कांख की जगह कुछ और है इस पर चर्चा फिर कभी, लेकिन यहां मौज़ू ये है कि, शायद इस शेर के जवाब, बहुत से शायरों ने अपने - अपने अंदाज़ में दिया है, यहाँ कुछ शेर लगता है कि इसी शेर के जवाब में ही लिखे गये हों उनकी बानगी तो देखिये …
अच्छा यकीं नहीं है तो कश्ती डुबो के देख ,
एक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम, ख़ुदा, भी है !! कतील शिफ़ाई !!
तुम ही तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया ,
बचा सको तो बचा लो , कि डूबता हूं मैं !! मजाज़ !!
गर डूबना ही अपना मुकद्दर है तो सुनों,
डूबेंगे हम ज़रूर , मगर नाख़ुदा के साथ !! कैफ़ी आज़मी !!
आने वाले किसी तूफ़ान का रोना लेकर ,
नाख़ुदा ने मुझे साहिल पर डुबोना चाहा !! हफ़ीज़ जलंधरी!!
न कर किसी पर भरोसा, के कश्तियाँ डूबे !
ख़ुदा के होते हुये, नाख़ुदा के होते हुये !! अहमद फ़राज़, !!
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख ,
ना करेंगे, ना किनारों की तमन्ना की है !! सलीक लखनवी !!
जब सफ़ीना मौज से टकरा गया ,
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया !! फनी निजामी कानपुरी !!
नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है,
तो फिर डूब जाओ ,ख़ुदा ख़ुदा न करो !! सुदर्शन फ़ाकिर !!
किनारों से मुझे ऐ नाख़ुदा दूर ही रखना !
वहां लेकर चलो, तूफ़ां जहां से उठने वाला है !! अली अहमद जलीली !!
एहसान नाखुदा का उठाए मेरी बला !
कश्ती खुदा पे छोड़ दूं लगर को तोड़ दूं !! ज़ौक !!
# नाख़ुदा = खिवैया
2 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
वाह सभी एक से बढ़ कर एक
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