Tuesday, February 4, 2014

बसंत ॠतु के आगमन पर

बसंत ॠतु  पर रचनाएं तो बहुत हैं पर आज की ताज़ा, नई युवा और दमदार आवाज़  को ढूंढना भी वाकई एक दुरूह कार्य है, पुरानी रेकार्डिंग में तो कुछ रचनाएं मिल तो जायेंगी,  भाई यूनुस जी के रेडियोवाणी  पर बहुत पहले  वारसी बधुओं की आवाज़ में इस रचना को सुना था और पिछले साल मैने इस रचना को सारा रज़ा ख़ान की आवाज़ में सुना था तब से इसी मौके की तलाश थी, 
पड़ोसी देश पाकिस्तान की सारा रज़ा ख़ान की मोहक आवाज़ में अमीर ख़ुसरो की इस रचना  का आप भी लुत्फ़ लें | 





फूल रही सरसों, सकल बन (सघन बन) फूल रही.... 
फूल रही सरसों, सकल बन (सघन बन) फूल रही.... 

अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार डार, 
और गोरी करत
सिंगार,लिनियां गढवा ले आईं करसों, 
सकल बन फूल रही... 

तरह तरह के फूल लगाए, ले गढवा हातन में आए । 
निजामुदीन के दरवाजे पर, आवन कह गए आशिक रंग, 
और बीत गए बरसों । 
सकल बन फूल रही सरसों ।






4 comments:

jyotin kumar said...

इससे बढ़िया वसंत ऋतु का स्वागत नहीं हो सकता। कला, गीत, संगीत, सौंदर्य व वासंती माहौल का अद्भुत संगम.......ये भी सरस्वती आराधना का एक रूप है। वैसे वाणी जयराम का गाया .... "बोले रे पपीहरा … से काफी मिलता हुआ गाना है।

jyotin kumar said...

सारा रज़ा खान तो आपके इंडो-पाक प्रोग्राम 'सुर-क्षेत्र' की पाकिस्तानी पार्टिसिपेंट भी थी? "तरह- तरह के फ़ूल मंगाए" …… में तरह-तरह के उच्चारण में कान्वेंट स्कूल का असर दिख रहा था :-)

Anu Anoop said...

बेहद सुन्दर!
शत शत नमन :)

Anonymous said...

I?m not sure where you?re getting your info, but great topic.
I needs to spend some time learning much more or understanding more.

Thanks for magnificent info I was looking for this information for my
mission.

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...