Sunday, July 15, 2007

हैं कहां जितू भइया?

अच्‍छा हुआ मैंने मुम्‍बई-दिल्‍ली का टिकट नहीं बनवाया. बनवाया होता तब तो अच्‍छा बेवक़ूफ़ बनते! इतने महीनों से सुन रहे थे कि जतिन्‍दर चौधरी दिल्‍ली पहुंच रहे हैं. बता-बता के हमारा हाज़मा बिगाड़ा हुआ था. हर चौथे दिन सबको ख़बरदार करते रहते थे कि दिल्‍ली पहुंच रहा हूं, ई-मेल से तुम भी अपने आने की ख़बर कंर्फ़म कर दो. और हुआ ये कि सब दिल्‍ली पहुंच गए और सबको दिल्‍ली बुलानेवाले का ही पता नहीं? ये कोई बात हुई! आखिर जतिन्‍दर भइया दिल्‍ली पहुंचे क्‍यों नहीं? क्या उनको डर था कि उनकी फार्चुनर पर कोई खरोँच के अपना नाम लिख देगा? कि कहीं कानपुर में ज्‍यादा खाने से पेट खराब तो नहीं हो गया? कमाल दसहरी का था कि चौसे का? या हो सकता है इसके पीछे हाथ लंगड़े का हो. इस मौसम में लंगड़ा खाना वैसे भी ख़तरे से खाली नहीं. या ऐसा तो नहीं कि फार्चुनर का कागज़-पत्‍तर सही नहीं था और आपको बाघा बॉर्डर पे रोक लिया गया? भइया, कहीं आप अभी तलक बाघा बार्डर पे तो अटके हुए नहीं? एनडीटीवी में किसी को ख़बर कर दिये होते तो आज ये दुख का दिन नहीं देखना पड़ता. वैसे चलिए, कोशिश कीजिएगा कि बाघा में ही एक छोटी सी ब्‍लॉगर मीटिंग कै डालिए! कि कहीं ऐसा तो नहीं सबको दिल्‍ली पहुंचाते-पहुंचाते, रास्‍ता दिखाते आप खुदे दिल्‍ली का रास्‍ता भूल गए और दिल्‍ली आते-आते दिल्‍ली से आगे निकल गए? कहां पहुंचे हैं जितु भइया? जहां भी पहुंचे हैं जल्‍दी से ख़बर भिजवाइए क्‍योंकि हम आपसे सिर्फ़ एक ई-मेल की ही दूरी पे हैं. कि कहीं आपकी फॉर्चुनर कोई मार तो नहीं दिहिस! हमको तो इसीका बड़ा डर लग रहा है!

6 comments:

अभय तिवारी said...

अब जीतू को जहाँ जाना हो जायं.. हमें तो ये देख के आनन्द है कि इसी बहाने आप ने लिखना शुरु कर दिया.. मेरे शुभकामनाएं..

Jitendra Chaudhary said...

Chalo ji,
isi bahane aapne likhna to shuru kiya
likhe raho bindaas,

Humra ka batai, bauwa, hum to inhya Kanpuriye mein atak gayein, u ka ha ki humra bhateeji ka Transfer Certificate nikalwane mein, ooka headmaster panga kiye raha, bas usi se batiyawe khatir kanpur mein atag gaye, nahi to u sasura ek mahine baad milta, tab talak to hum Kuwait pahunch jaat.

Fortuner ki baat se hamko kanhi se kutch jalne ki badboo aa rahi hai, dekhna jara, chauke mein kutch banne to nahi rakha?

Mauj mein raho aur mauj lo, Isi Sidhant ke saath

-Jitu bhai (kanpuri)

अनिल रघुराज said...

विमल जी, गाड़ी बड़ी झक्कास अंदाज में स्टार्ट हुई है। बेलौस लिखते जाइये, आपकी जो शैली निखर कर सामने आएगी, वो उतनी ही जीवंत होगी, जितने आप खुद हैं।

VIMAL VERMA said...

धन्य हैं जीतू भाई, कम से कम सुध तो ली आपने,इसके लिये आप धन्यवाद के पत्र हैं आज थोड़ा चिकेन चढाये थे उसी का जला आपके नाक मे गया होगा. वैसे मेरे भाई ने क्रेन खरीदा है बड़ा वाला चढ़ा दें का, का सजेस्ट करते हैं आप? चाहे जो हो आपने दिल्ली न पहुंच कर मायूस तो किया ही है कम से कम आपकी प्राथमिकता का हमें पता तो चल गया. आगे से हम भी इसका ध्यान रखेंगे.आपकी शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!!

अनूप शुक्ल said...

सही है। लिखत रहो।

Udan Tashtari said...

बढ़िया है. अब लगातार जारी रहें. शुभकामनायें.

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

  पिछले दिनों  नई  उम्र के बच्चों के साथ  Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में  ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...