Sunday, March 9, 2008

सब हसरतों का खू़न किये जा रहा हूँ मैं..कव्वाली रिज़वान-मुअज़्ज़म की


नुसरत साहब को सुनना वैसे भी सुखद रहता है...पर अभी इरफ़ान की टूटी बिखरी में सुना तो मुझसे भी रहा नही गया,आज नुसरत साहब को सुन कर रिज़वान मुअज़्ज़म की कव्वाली आपको सुनाने का मन है,रिज़वान-मुअज़्ज़म नुसरत साहब के भतीजे हैं,कहते हैं कि नुसरत साहब की विरासत को सम्हालते हुए इन्हें कामयाबी भी खूब मिली है..बहुत से शो इन लोगों ने पाकिस्तान से बाहर भी किये है, रिज़वान- मुअज़्ज़म के बारे में इतना ही कि नुसरत साहब के जाने के बाद उनकी परम्परा को बड़ी सफ़लता से आगे बढ़ा रहे हैं,इनकी कव्वाली दमदार हैं अंदाज़ के क्या कहने, पर आप भी सुने और आप खुद ही फ़ैसला करें,अगर आप खरीदने के उत्सुक हैं तो यहाँ पर क्लिक कर के जानकारी ले सकते हैं.तो पेश है उनके एलबम डे ऑफ़ कलर्स से दो चुनी हुई कव्वालियाँ..पिछले दिनों यूनुस जी ने मखदूम पर विशेष पोस्ट चढ़ाई थी उसे भी सुने..

मोरे मख़दूम बाजे मधुर बंसुरी.....



सब हसरतों का खून किये जा रहा हूँ मैं....

5 comments:

इरफ़ान said...

कमाल है गुरुदेव.

बोधिसत्व said...

नुसरत का ताप यहाँ कहाँ है भाई....

Udan Tashtari said...

बेहतरीन ...उम्दा..भाई!!

अमिताभ मीत said...

वाह सर जी. फिट हो गया हूँ. सारा जहाँ मस्त हो गया है.
"सब हसरतों का खून किये जा रहा हूँ मैं....
ऐ इश्क तेरा साथ दिए जा रहा हूँ मैं .."
का बात है सर. गजब चीज सुना दिए हैं. अच्छा रुकिये हम भी एक ठो बढ़िया क़व्वाली सुनाता हूँ. CD खोजने दीजिये.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सुन कर आनंद आ गया. लेकिन भाई! मजा तब आए जब आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं इसे अपने कम्प्यूटर पर डाऊनलोड भी कर सकूं. ताकि बार-बार सुनाने के लिए इंटरनेट न चलाना पड़े.

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