Friday, November 30, 2007

पल भर की पहचान !!

अभी जुमा जुमा कुछ ही दिन हुए हैं, आई आई टी के एक कमरे में हमारी मुलाकात हुई थी, मैं बात कर रहा हूं,उस यादगार शाम की जब थॊड़े से चिट्ठाकारों का मिलन हुआ था, मिलना सुखद था, अनीता जी और अभय ने इस पर विस्तार से लिखा है, मैं भी लिखने की सोच रहा था, पर ना मैं अभय की तरह लिख सकता हूं, और ना अनीताजी की तरह, तो लिखने की योजना मैने टाल दी, पर कुछ बात जो मेरे मन मे आईं उस मिलन के बाद उसे लिखने की कोशिश कर रहा हूं

बचपन में पेनफ़्रेन्डशिप का शौक था, हालांकि इसमें भी उतना नही धंसे जितना ब्लॉग में धंस चुके हैं,लेकिन उन पेनफ़्रेन्डशिप के ज़माने में किसी मगज़ीन में ऐसे पते नोट करने का शौक ज़रूर था जिनकी उम्र और शौक मुझसे मिलते जुलते थे, पर कभी ऐसे सम्बन्ध बन नही पाये उसकी कोई याद भी बची नहीं है, मै दूसरी बार किसी ब्लॉगर मीट का हिस्सा बना, कौतुहल तो था अनजान लोगों को जानने का, यहां अनजान शब्द थोड़ा ठीक नहीं लग रहा क्योकि हम तो उनके विचार उनके ब्लॉग को पढ़ कर जान ही लेते हैं,फिर भी जिनसे कभी नही मिला उनसे मुलाकात और उनके मुंह से अपना नाम सुनना या सबके प्रति उनकी आत्मीयता देखकर मन प्रसन्न तो होता ही है,

उन तमाम लोगों को जो ठुमरी पर आते हैं, अपनी टिप्पणियां देते है,शुभकामनाएं देते हैं ,सुझाव आदि देते हैं जिनसे मै कभी मिला भी नहीं और उन सबकी ऐसी अत्मीयता का मैं कायल हूं, उन सभी के लिये मन्ना डे का ये गीत समर्पित करना चाहता हूं, पर गीत सुनने से पहले मुझे फ़िराक साहब का ये शेर याद आ रहा है....

पाल ले एक रोग नादां

ज़िन्दगी के वास्ते

सिर्फ़ सेहत के सहारे

ज़िन्दगी कटती नहीं

उस पल को याद करते हुए ये मन्ना दा का गीत पेश है किसने लिखा और किसने दिया संगीत ये मैं जानता नहीं पर ये अवश्य जानता हूं कि ये दोनो गीत सभी चिट्ठाकारों को समर्पित है सुने और आनन्द लें ।


पहला गीत है पल भर की पहचान .......

और दूसरा गीत ये आवारा रातें दोनो गीत मन्ना दा ने गाये हैं।

18 comments:

काकेश said...

चलिये इसी बहाने आप कुछ लोगों से मिले तो सही. वैसे पैन फ्रैंड बनाने का शौक मुझे भी रहा. कुछ थे भी पर फिर ना जाने सब कुछ छूट सा गया.

काकेश said...

एक बात और आपने अपने ब्लॉग में मेरे पुराने ब्लॉग का लिंक लगाया है ...उसके लिये धन्यवाद...हो सके तो मेरे नये ब्लॉग का लिंक दे दें. लिंक है

http://kakesh.com

कभी कभी आते भी रहें.

Yunus Khan said...

भई विमल जी मजा आ गया । मन्‍नाडे का गाया ये गीत मेरा पसंदीदा गीत है । और इस मुद्दे पर पूरी तरह से फिट बैठता है । मजा आ गया ।
लेकिन ज्‍यादा मजा उस पर आया था जब रास्‍ते भर आप गा रहे थे----जब आपकी प्‍लेट खाली हो तो क्‍या करोगे

VIMAL VERMA said...

यूनुसजी, आप भी जब तारीफ़ करते हैं तो कुछ ज़्यादा ही हो जाती है, अपनी तारीफ़ सुनकर मेरे कान की लौ गर्म हो जाती है, मुझे पता है कि है कि मेरी आवाज़ कैसी है.. अगर अच्छी होती तो मैं अपनी आवाज़ का इस्तेमाल अपने चिट्ठे पर ज़रूर करता रहता, पर तरीफ़ कौन नहीं सुनना चाहता है उसके लिये शुक्रिया और काकेश जी आपने जो कहा है उसे मैने कर दिया है,याद दिलाने के लिये शुक्रिया ।

Kavita Vachaknavee said...

पल भर की पहचान को कैसे सुनें? वह तो यहाँ उपलब्ध ही दिखाई नहीं दे रहा!


~कविता वाचक्नवी(http://360.yahoo.com/kvachaknavee)

VIMAL VERMA said...

कविता जी गाना सुनने के लिये आपके पास फ़्लैश प्लेयर का होना ज़रूरी है अगर किसी तरह की समस्या आ रही हो तो blogbuddhi.blogspot.com से आपको सहायता मिल सकती है।

अभय तिवारी said...

आप क्का अन्दाज़े बयां और गीत दोनों पसन्द आए..

Sanjeet Tripathi said...

अभय जी की ही बात को दोहराना चाहूंगा!!

अफ़लातून said...

निराश किया । आपकी आवाज़ सुननी थी , मिले मन्ना डे ।

अजित वडनेरकर said...

ये अंदाज़ हमें भी पसंद आया।

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत बढिया रहा , मजा आ गया मन्ना डे को सुनकर ,अंदाज़ पसंद आया !

Manish Kumar said...

वाह भाई मज़ा आ गया ये पल भर की पहचान सुन कर...बहुत खूब
रही पत्रमित्रता की बात तो आपने इसकी याद दिला कर छात्र जीवन का एक हिस्सा याद दिला दिया जिससे कुछ बहुत मज़ेदार वाकये जुड़े हैं।

Anita kumar said...

विमल जी इस ब्लोगरस मीट का एक फ़ायदा ये हुआ कि हम एक दूसरे को जान गये, वर्ना थे तो हम पड़ौसी पर फ़िर भी अजनबी। आप से जब मिली तो आप इतना धीमे स्वर में बात कर रहे थे कि लगा नहीं यही स्वर गाते समय इतने बुलंद हो जायेगें। बहुत ही सुरीली आवाज है आप की। मैने आप के गाये गीत आज 4 बार सुने। तकनीकी ज्ञान न होने की वजह से लोड नहीं कर सकी वर्ना सब को सुनाने का मन है।
आप का ई-मेल पता नही मिला आप के ब्लोग पर इस लिए यहां लिख रही हूं। मन्ना डे का गाना इस समय नहीं सुन सकती, कल सुनुगी, लेकिन अगर युनुस जी कह रहे है कि एकदम फ़िट बैठता है तो सही ही होगा, मन्ना डे मेरा भी पसंदीदा गायक है।
पेन फ़्रेंड तो हमने बचपन में नहीं बनाये पर दोस्तों की दरकार तो हम सभी को है।
मिलते रहियेगा जब भी इस तरफ़ आ रहे हों और बतियाइयेगा।

Anita kumar said...

आशा करती हूं कि अब आप की दोस्तों की लिस्ट में हमारा भी नाम दीखेगा

Vikash said...

दोनों गाने अच्छे लगे. :) मजा आ गया. लेकिन लाइव की तो बात ही कुछ और थी. :)

आभा said...

विमल भाई
कैरेबियन चटनी से लेकर आज तक के सारे गाने सुनकर बहुत आनन्द आया।
अब तो रोज ठुमरी का फेरा लगाना पड़ेगा।
दिन भर के गुनगुनाने और ठुमकने का मसाला दे दिया आपने। आभार
देर से ही सही जन्मदिन की बधाईस्वीकार करें।

इरफ़ान said...

दूसरा गीत मधुकर राजस्थानी का लिखा है, जिनके कई ग़ैर फिल्मी गीत मन्ना डे ने गाये और पहला गीत शायद योगेश का लिखा है. मन्ना डे कहते हैं कि हम लोग फिल्मों के गाने गा-गाकर जब बोर हो जाते हैं तो ग़ैर फिल्मी गाने गाकर आनंद मिलता है.

आवारा रातों को मैं भी कभी जारी करता लेकिन आपने मेरे मन की बात कर दी. बधाई.

Rajesh Joshi said...

विमल भाई, आपने क्या गाने लगाए -- दिल बाग़ बाग़ हो गया और फिर उन्ही पुराने दिनों की ओर खींच ने गया. खा कहें भाई. एक लंबा उच्छ्वास !!! राजेश जोशी

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