संजय ने एक बार बताया कि उन्होने सपना देखा कि वो एक बहुत बड़े मैदान में अकेले खड़ा है और पूरे मैदान में दूर दूर तक कूड़ा ही कूड़ा फैला हुआ है, कहीं कहीं तो कूड़े का पहाड़ सा बना है...इसी दौरान वो देखता है एक महिला अपने बड़े से दल बल के साथ उसी की तरफ़ चली आ रही है,पास आने पे वो इस चेहरे को पहचानने की कोशिश करता है और पास आने पर उस चेहरे को देख कर चौंक उठता है अरे ये तो इंदिरा गाँधी हैं!
इस बीच इंदिरा गाँधी हाथ में एक बुके लिये हुए उनके पास आतीं हैं, पास से देखने पर पता चलता है इंदिरा जी के हाथ में जो बुके है वो कूड़े का बना है,इंदिराजी के चेहरे की तरफ़ देखता है पूछ बैठता है, आप और यहाँ? इंदिराजी संजय को देख कर मुस्कुराते हुए कहती हैं,"हाँ मैं राजीव गाँधी की मज़ार पर प्रार्थना करने आयी हूँ",मित्र कहते हैं "इन कूड़े के ढेर में उनका मज़ार कहाँ तलाशेंगी आप ?" मुझे पता है" वो देखो इंदिरा जी कहती हैं....संजय ने देखा एक जगह कूड़े का टीला बना हुआ है,इंदिराजी कहती हैं "इसी कूड़े के नीचे मेरा राजीव दफ़न है,मैं उसकी आत्मा की शान्ति के लिये ऊपर वाले से दुआ मांगती हूँ,औरचल कर उस कूड़े के टीले के नज़दीक जाती हैं और देखता है इंदिरा जी ने कूड़े का बुके उस कूड़े के टीलेनुमा स्थल पर चढ़ा कर प्रणाम किया,चारों तरफ़ फ़ैले कूड़े के संसार में इंदिराजी, कूड़े मे से रास्ता बनाती एक ओर चल देतीं हैं और टाटा करतीं नज़रों से ओझल हो जाती है। मित्र अब अपने को इस कूड़ारूपी इस संसार में अकेला पाता है तभी उसकी नींद टूट जाती है।
आखिर ऐसे सपने आते क्यौं हैं?इन सपनों का राज़ क्या है? क्या जिस समाज को हम बेहतर बनाने में लगे हैं क्या वो कूड़े में तब्दील होता जा रहा है?
4 comments:
आपने मेजर संजय के सपने की याद करके मुझे मजबूर किया कि मैं संजय की अद्भुत प्रतिभा(ओं) पर कुछ कहूँ. संजय हमारे उन साथियों में है जिन्हें समझना और जिनकी ज़िंदगी के मोडों का अंदाज़ा लगाना मेरे जैसे औसत लोगों के लिये मुश्किल और एक हद तक नामुमकिन है. वो एक मौलिक आदमी है और इन दिनों वक़्त की मार से टकरा रहा है. सुनाने बैठूँ तो एक हज़ार एक तजुर्बों से भरे क़िस्से सुनकर आपकी पौ फट जाएगी(इस मुहावरे का सृजन भी उसी का है). उम्मीद करता हूँ कि कोई ऐसा प्रसंग आएगा जब हम सब उसकी बातों से आपकी दुनिया का फ़लक विस्तृत बनाएंगे.
सखी, कूड़ा खोजन हम चलीं, रहीं कूड़ा में हेराय ?
संजय का यह सपना खुद में एक असाधारण कहानी है। कुछ बातें सपनों की भी होती रहनी चाहिए।
सपना बेजोड़ है क्योंकि संजय बेजोड़ हैं.. बाकी जो इरफ़ान ने कहा वो सौ टके सच है..और बस बात इतनी है कि 'सफलता' हर प्रतिभा का आकलन नहीं कर सकती..
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