ये रचना नेट के माध्यम से मुझ तक पहुँची थी...मेरे मित्र अजय कुमार ने कुछ शब्दों में हेर फेर भी किया है..फिर भी कुछ कमियाँ ज़रूर हैं,ये किसकी रचना है मुझे मालूम नहीं। अब आप ही पढ़ें और बताएं कैसी है?
शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है?
पहली बारिश में लेट होने की फ़िकर है
भूल गये बारिश में भीगकर टहलना क्या है?
सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फ़ुर्सत कहाँ है
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यौं नहीं?
१०८ है चैनल फिर दिल बहलते क्यौं नहीं?
इनटरनेट की दुनियाँ के तो टच में हैं,
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं
मोबाईल, लैन्डलाईन,सब की भरमार है,
लेकिन जिगरी दोस्त के दिलों तक पहुँचते क्यौ नहीं?
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?
सुबह- सुबह धूप में नहाये ये याद है
तो दोस्त शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है?
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
-
पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
-
रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
-
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
9 comments:
आज की भागमभाग भरी दुनियाँ का सही चित्रण है.
मालिक ! दिल बहलने की बात की, कि दहलने की ?
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है?
बिल्कुल सही कहा।
जी यह मुन्नाभाई MBBS फ़िल्म से ली गई है |
पढ़वाने के लिए शुक्रिया |
मैं तो समझ रहा था कि शायद मेरे किसी अनाम मित्र ने लिखा है..खैर शुक्रिया जानकारी देने के लिये..और हमारे कुटिया में आने के लिये।
क्योकिं ये दिल मागें मोर!!
कमियों की बात छोड़िए, रचना बहुत सुंदर है.
bahut sundar sachhi bbaat kahi hai waqt nahi.
ये आज की जीवन शैली का वर्णन है.हमेश कुछ और पाने की कोशिश में अपने सुनहरे अतीत में उप्लाभ्दियो को छोड़ देते है.
sandeep dubey
Post a Comment