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न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Thursday, January 1, 2009
स्वानन्द किरकिरे के इन गीतों से इस साल का आगाज़ करते हैं.....
भाई नया साल सबको मुबारक हो,बीते सालों की गलतियाँ फिर ना दोहराएं बस यही अपनी चाहत है, आज इस सुनहरे मौक़े दमदार आवाज़ के धनी स्वानन्द किरकिरे की आवाज़ से आगाज़ करते हैं,स्वानन्द किरकिरे की गायकी का अपना अलग अन्दाज़ है, कुल छ: गीत जो मुझे बेहतरीन लगे वो आपकी ख़िदमत में पेश हैं....
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7 comments:
विमल भाई , ऐसे ही साल भर सुनाइए । शुभ नव वर्ष ।
सप्रेम,
अफ़लातून
वाह अजीब इत्तेफ़ाक है, नये गीतों में ये सभी मेरे पसन्दीदा हैं । बावरा मन देखने चला एक सपना के तो क्या कहने ।
खोया खोया चाँद जब मैने पहली बार सुना था, तब से ही बहुत पसंद आती है ये आवाज और गीत। एक बार और सुनवाने के लिये शुक्रिया
शुक्रिया विमल भाई....
स्वानंद की आवाज़ और शैली मुझे भी पसंद है। खासतौर पर खोया खोया चांद ....वाला गीत...बेटे ने पूछा था आपको क्यों पसंद है....मेरा जवाब था कि मुझे इस गीत के जरिये 89-90 के नुक्कड़ नाटकों के दिन याद आ जाते हैं...कुछ कुछ रंगमंचीय-जनवादी गीतों जैसी धुन है इसकी। स्वानंद की आवाज़ में भी वही सहजता है। सही कह रहा हूं न ?
विमल भाई,
स्वानंद के चमत्कारों से एन एस डी के दिनों में आए दिन रूबरू होते थे. उन चमत्कारों की गुणवत्ता में बॉलीवुड की धूल नहीं जम पायी, देखकर अच्छा लगता है...
गीत सभी बेहद अच्छे हैं.
और नए साल की शुभकामनाएं!!!
वाह विमल बाबु बहुत खूब
मज़ा आगया
साल का आग़ाज़ यूं हो तो हर दिन नया साल होये ठुमरी पर.
थैंक्यू विमल भाई!
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