कल तक जिन गीतों को मेरे पिता गुनगुनाते थे उनके बाद उन गीतों को हमने भी गाया गुनगुनाया .... अब हमारे बाद आने वाली पीढ़ी भी उन्हें गुनगुना और गा रही है,जब भी इन गीतों को पहले पहल गाया या सुना गया होगा सोचिये कैसा लगा होगा...आज गीत वही है समय और समाज बदल गया है,और गीतों के अर्थ भी बदल गये हैं,हम बाल दिवस मनाते हैं.... सरकार डाक टिकट छापती है....कुछ समारोह हो जाते है आज के दिन, पर बच्चों का बचपन और उनकी हंसी थोड़ी जुदा होती जा रही है..बच्चा का समय से पहले बडा़ होते जाना ...बच्चों के भारी बस्ते अभी भी भारी है....बच्चों की एक बड़ी आबादी आज भी होटलों,स्टेशनों,अनाथालयों और सड़को पर ठोकरें खाती फिर रही है..क्या उन्हें पता है हमारे यहां बच्चों से सम्बन्धित योजनाएं सिर्फ़ कागज़ पर ही बन कर रह जाती है.....खैर लिखने को तो बहुत कुछ है पर इन सदाबहार गीतों को सुनिये और सोचिये हम कैसे हो गये हैं.....नन्हें मुन्हें बच्चों की मुट्ठी में आज सचमुच क्या है....... .सब सपना हो गया है..क्या?
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17 comments:
वाह...ये है ब्लागिंग का आनंद। मेरी पसंद का गीत और गान।
इसे गाया किसने और धुन किसने बनाई यह भी बताते तो बेहतर होता।
सवाल तो है ही कि "नन्हें मुन्हें बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ?"
सुन्दर गीत
रचना मर्मस्पर्शी है
यह पोस्ट तो अँगड़ाई है ,न?बधाई,
सप्रेम
इस तरह के गाने तो हर दौर के बच्चों को सुनना
चाहिए | पर आज कल ऐसे गाने न बजते हैं न बनते हैं
तो हम सुनाएँ कहाँ से वो सुने कहाँ से |
बधाई विमल जी
सराहनीय काम किया आपने
बहुत गीत प्रस्तुत . भावपूर्ण अभिव्यक्ति पढ़कर मुझे भी अपना बचपना याद आ गया . आभार .
मूट्ठी में सारा आकाश है. बस समय की मार से वह फिसलता जाता है.
Pyare lage ye geet.
Aur Vimal Bhai kaisi chal rahi hai zindagi ?
vimalji yeh gaae sunkar to sach me rongte khade ho jaate hain is tarah ke gaane aaj ke zamane me kahan aaj dekhiye is daur me jahan bachhon ko kal ka bhavishya sanjha jaata hai wahin aaj is mahangayi ke daur me bachhe bal mazduri kar rahe hain. vimal ji u r great
विमल जी ,हम सभी लोग अपने विचारों से यह सोचते हैं ,बच्चे सब अनाथ हो गए हैं
पर एसा नहीं है ....जब बहुत करीब से हम देखते हैं ,तब जा कर पता चलता है ....
उस परिवार की अपनी कहीं मजबूरी है ...अपने बच्चों से कहीं उनका बचपना lene का ...geet to bahut sundar hai
विमल जी, दो दिन देर से सही, पर आपको जन्म दिन की शुभकामनाएँ
आपको जीवन में मिलें इतनी खुशिया, कि रखने की जगह कम पड जाए।
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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
बच्चों को भी नहीं पता कि उनकी मुठ्ठी में क्या है. व्यवस्था ने उन्हें उस तरह की समझ नहीं दी.
अच्छे गीत सुनवाये आपने।
कृप्या आपका मोबाईल नंबर मेरे ईमेल पते पर भेजें मुंबई ब्लॉगर्स मीट के लिये मेरा ईमेल पता है
rastogi.v@gmail.com
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Shuruwaat Me Bachpan Ki Yaad Aa Gyi...
SACHIN KUMAR
नन्हें-मुन्हे बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है? हम बड़े-महान लोग इन बच्चों को क्या दे रहे है? इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
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