इस गज़ल को सुनता हूँ तो बहुत सी पुरानी यादों मे खो सा जाता हूँ, अहमद हुसैन मोहम्मद हसैन साहब की जोड़ी कमाल है, गायकी में गज़ब की हारमनी पैदा करते हैं,दोनों की आवाज़ का सुरूर ही कुछ ऐसा है कि इनकी कुछ गज़लों को बार बार सुनने का मन करेगा... आज सुनिये इनकी गायी ग़ज़ल,ये उन ग़ज़लों में शामिल है जिन्हें मैने पहली बार रेडियो पर सुना था....तो पेश है गज़ल मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा
बच्चों को संगीत की बारीकियाँ बताते एहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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10 comments:
विमल भाई, इधर आना पहली बार हुआ. और सुब्हानअल्लाह क्या आना हुआ. इरफ़ान भाई से आपका नाम और तारीफ सुनी थी. अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन साहब को सुना.. नायाब पेशकश है. भाई बहुत खूब!
मेरी पसंदीदा चीज़ सुनवाने का शुक्रिया। गुरुबंधुओं को नमन् । कैसे, ये तब बताएंगे जब हम अपना बकलमखुद लिखेंगे।
क्या बात है-आनन्द आ गया. बहुत खूब सुनवाया है.
अहमद हुसैन मोहम्मद हसैन साहब की ये गज़ल बहुत सुरीली लगी -शुक्रिया सुनवाने के लिये!
मज़ा आ गया. बहुत दिनों से नहीं सुना था ..... वाह ! शुक्रिया भाई.
वाह ! बड़े दिनों बाद सुना...
क्या कहने सर.....आनन्द पाया
This GHAZAL is my all time favourite.
बहुत दिनों से सोच रहा था इस ग़ज़ल को पेश करूँ , पर चलिए आज आपने ये काम कर दिखाया। मुझे लगता है कि जिंदगी में पहली दस ग़जलें जो हाईस्कूल के जमाने में सुनी थीं उनमें से ये एक थी और इसे सुनने के बाद हुसैन बंधुओं की हर ग़ज़ल का विविध भारती के रंग तरंग कार्यक्रम में इंतजार किया करते थे।
भाई विमल,
किसी ख़ास मक़सद से ठुमरी और दादरा पर सामग्री ढूंढ रहा था, ढूंढते ढूंढते आपके ठिकाने तक आ पहुंचा। और पहुंचा तो मिली वो ग़ज़ल जो बरसों पुरानी कैसेट के बच्चों की सीडीज़ के पीछे कहीं खो जाने और कैसेट प्लेयर के आईसीयू में पहुंच जाने के कारण चाहकर भी अरसे से नहीं सुन पाया।
जय हो!
- पंकज शुक्ल
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