
न जी भर के देखा न कुछ बात की....
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
5 comments:
ओह पिछले दिनो नीरज रोहिल्ला से चंदन दास के बारे में ही चर्चा चल रही थी । मैंने उसे बताया कि एक दिन विविध भारती की लॉबी में एक शख्स को बैठे देखा तो चेहरा पहचाना सा लगा । फिर किसी ने बताया कि ये चंदन दास हैं । बहुत पुराने दिन याद दिला दिये आपने ।
ohh kya gazal hai..mere pasandida gazal gayak ki pasandida gazal sunavane ka shukriya
बहुत खूब.. चंदन दास जी की ज्यादा गज़लें नहिं सुनी पर लगता है अब खोज खाज के सब सुननी होगी।
धन्यवाद विमलजी।
मेरी डॉयरी में ये ग़ज़ल अंकित है। और इसकी कैसेट भी है मेरे पास शुक्रिया इसे बहुत दिनों बाद सुनवाने के लिए।
बहुत आभार इतनी उम्दा गजल सुनवाने का. एक मित्र से एक बार सुनी थी-आज कुछ और ही आनन्द आया.
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