न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Saturday, July 14, 2007
छन्नूलाल मिश्र को सुनने का मतलब
आवाज़, मिठास, कर्णप्रियता... और सबसे बड़ी जो बात है वो ये कि स्पीकर के सभी रंध्रों से वह आवाज़ निकलती है. वाह, वाह! ऐसा संगीत कि सुनकर हय, दिल बाग़-बाग़ हो जाए... जिसे सुनकर स्वर की वह उठान, वह तरावट याद रहे.. और देर तक मन में धीमे-धीमे बजता रहे. बजते समय ही नहीं... बंद हो चुकने के बाद भी वह संगीत जज़्ब दीवारों से छन-छनकर हवा में फैली रहती है... मन को नहलाती रहती है. आपने सुना है कि नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना सुनते रहते हैं और छन्नूलाल मिश्र को अब तक नहीं सुने? तकनीकी जानकारी हमारी कम है नहीं तो अभी ही आपको अपने ब्लॉग की मार्फ़त सुनवा देते. ख़ैर, बाद में फिर कभी... तब तक आप अपनी तरफ़ से बतायें अच्छा और सुनने को क्या-क्या है...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
-
पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
-
रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
-
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
10 comments:
वाह विमल भाई वाह.. ऐसे ही लिखिए.. शानदार.
पंडित जी ठुमरी सुनाते ही नहीं समझाते भी हैं. जिसकी आज बहुत जरूरत है.
अच्छा हुआ जो आपने जिक्र किया । छन्नूलाल जी का गाया अलबम कबीर मेरे पास है, ये वो रचनाएं हैं जो उन्होंने देवी फाउंडेशन के लिए गायी थीं । कॉपीराइट के झंझट ना होते तो हम आज ही इन्हें आपको ही नहीं सबको सुनवा देते । पर चूंकि आप मुंबई में ही हैं, तो किसी दिन महफिल जमाकर छन्नूलाल जी को सुना जायेगा । वैसे हम जानना चाहते हैं कि आपके संग्रह में छन्नूलाल जी की कौन कौन सी सीडी हैं ।
भाई अभयजी,संजयजी,और यूनुस भाई, आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया.ऐसे ही आप सबका साथ मिले यही कामना है मेरी.
विमल भाई...छन्नूलालजी पर आपने शब्दांकन कर बड़ा पुण्य का काम किया.मुझे दो बार इन्दौर की तक़रीबन साठ साल पुरानी शास्त्रीय संगीत की मेज़बान संस्था अभिनव कला समाज के मंच पर बतौर एंकर पर्सन प्रस्तुत करने का सौभाग्य मिला है.मेरा मानना है कि विदूषी गिरजा देवी के बाद बनारसी रंग की ठुमरियों को जिस घनीभूत अनुभूति के साथ पं.मिश्र गा रहे हैं वह विलक्षण है.ये समय का बोलबाला है कि वह अपने हिसाब से कलाकार के यश-अपयश का मानदंण्ड तय करता है.मै एक ऐसी सूची बनाने में मसरूफ़ हूँ जिसमें मै भारतीय संगीत के unsung heros को दर्ज़ कर रहा हूं..जब भी संयोग मिला मेरे ब्लाग पर उसे जारी करूंगा.बहरहाल छन्नूलालजी वे गुणी कलाकार हैं जिन्हे रागदारी के सुघड़ कलेवर रचने में महारथ हासिल है.वे अत्यंत सरलमना व्यक्ति हैं और ज़माने के गिमिक्स से बेख़बर..उनके पुत्र श्री रामकुमार मिश्र भी लाजवाब तबला वादक हैं और आज के व्यस्ततम कलाकारों में से एक हैं और अपने पिता की तरह संकोची और काम से काम रखने वाले कलाकार.लेकिन आप,मै और युनूस भाई जैसे कई गुण-ग्राहक हैं जो छन्नुलालजी की कला के क़ायल हैं.
धन्यवाद संजय पटेलजी, आपने अच्छी जानकारी दी छन्नूलाल मिश्रजी के बारे में.वास्तव में मुझे इतनी जानकारी नहीं थी, शुक्रिया
विमल जी मैंने इंटरनेट से खोजकर पंडित छन्नूलाल मिश्र की दो रचनाएं सबेरे सबरे अपने चिट्ठे पर चढ़ाई हैं और छन्नूलाल मिश्र जी के जिक्र के साथ आपकी इस पोस्ट के अंश लेने की हिमाक़त भी की है । देखिएगा ।
वाह ! ये हुई कुछ बात । संजय जी ने जिस गीत के बारे में कहा है ,मुझे भी याद आ गया , शायद "हार्मनी इन वारानसी " प्रोग्राम था । टीवी पर देखा था और अपने ब्लॉग पर लिखा था । एक भजन और था ' हे शिवशंकर औघडदानी " ।
क्या बात हॆ विमल जी मॆदान मे आ गये आप भी
लिखना बहुत कुछ चाहता हू पर हिन्दी टाइप करने की परेशानी हॆ. लेकिन
हारिये न हिम्म्त बिसारिये न काज
छ्न्नूलालजी को सुन कर यही लगता हॆ
BHAI vimalji
Pt.Channulalji ke bare me mujhe adhik jankaari to nahi hai,phir bhi
main itna jaroor kahunga ki unko sunna Peepal ke chhaon me baithne jaisa hai.Yunusji ke madhyam se ye ehsaas mila ,aap bhi jaroor suniye unke blog par jakar.
Post a Comment