न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
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पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
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रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
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पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
3 comments:
हाँ, मैं इन सबसे बेजार हूँ.
और आप कबसे इन मसलों को सोच सोच दुबले होने लगे? सौरभ की शर्ट आपको कबसे और क्यों परेशान करने लगी? कब से साबुन-तेल बेचने वाले हरकारों का आराम आपकी नींद हराम करने लगा? और क्यों?
बाज़ार एक नशा है और आप इस नशे के आदी हो चुके हैं मैं ये मानने को अब भी तैयार नहीं हूँ. मैं ये मानने को अब भी तैयार नहीं हूँ कि आपकी चिंता का विषय सचिन खरबपति तेंडुलकर या सौरभ साबुन-तेलवाला गांगुली हो सकता है.
लॉर्ड्स में जो कुछ न होना था उसे बारिश ने कर दिखाया. भारत शिखंडी की तरह बारीश की बूँदों के पीछे छिपकर मर्दानगी दिखा गया, ख़ुश हो लिया. मगर आप क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनते हैं मित्र !
आपसे गाली खाने का इंतज़ाम तो मैने पहले ही कर लिया है और अब दरअसर पेट में साँप भी है. तो आप समझ भी सकते हैं. इसलिए इस प्रतिक्रिया को अपने क्रिकेट प्रेमी ब्लागियों को बढ़ाइए और होने दीजिए एक बहस कि क्या क्रिकेट से बढ़कर भी कुछ और चु**पा हो सकता है.
क्या कहते हैं हुजूर?
आपकी सेवा और समझदारी कम से कम क्रिकेट पर तो एकदम खरी खरी है पर क्रिकेट भी धीरे धीरे १०-२० ओवर का सिमट के रह जाना है और इसका भी एक दिन हाकी जैसा हाल होना है..और जहां तक बाज़ार की बात है तो बाज़ार हर जगह घुस रहा है, तो कब तक उससे भागता फिरेगा आदमी. इसका विकल्प क्या है अगर हाकी जैसा खेल भी बाज़ार के अभाव मे दम तोड़ देता है तो हम और आप जैसे लोग बोलने के अलावा कर भी क्या सकते हैं!!!!
तुरंत प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
आप समझ लीजिए कि ब्लॉग की दुनिया में मेरी और मेरे जैसे अनाम, बेनाम और बदमान लोगों की एक ठोस भूमिका है. मेरा मिशन है कि स्थापित ब्लॉगरों को इग्नोर किया जाए और मैं पूरी शिद्दत से अपनी इस भूमिका को निभा रहा हूँ.
बस मेरा अंदाज इतना ही तीखा और तल्ख रहेगा. वरना तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी पीठ खुजाऊँ का कोई मतलब है?
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