चटनी का रंग गज़ब का चढ़ा है,अपने मित्रों को पसन्द आया तो मेरा उत्साह भी दुगना हो गया है, अपनी महफ़िल में जब हम बैठका करते थे तो कुछ साथी नाक से सहगल का कोई गीत छेड़ देते हम उन पर खूब हंसते, पर उन गीतों को सुनते, क्या क्या गीत दिये कुन्दन लाल सहगलजी ने.... बुधराम की आवाज़ में सुनिये.. तो लगता है आज के समय में संगीत के धीम धड़ाक में सहगल साहब होते तो कुछ ऐसी ही धुन पर गा रहे होते... खैर मैं भी क्या लेकर बैठ गया.. सहगल साहब की बात बाद में करेंगे... अभी तो बुधराम की आवाज़ और कैरेबियन चटनी संगीत के जादू का मज़ा लीजिये । तो पेश हैं बुधराम के कुछ और गीत ।
दुलहा ब्याहे आए.. मोर मन लागा दुलहिनी से ....
घर घर बाजते बधईया ........
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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8 comments:
विमल भाई
सचमुच सहगल साहब जिन्दा होते इसी तरह गाते। बहुत बढ़िया गाने हैं यह भी। परन्तु भाग एक के सोनार तेरे सोना... और छट्ठी के दिन.... जैसा मजा नहीं आया।
फिर भी बुधराम जी के और गाने सुनवाने की फरमाईश करता हूँ।
धन्यवाद
विमल बाबू
गजबै है. आनंद में सराबोर कर दिया आपने, भौजइया बनावे हलवा सबसे अच्छा था लेकिन बाकी सब अच्छे हैं. इन गानों को सुनकर लगता है कि ऑर्गेनिक भारतीय संगीत, देसी संगीत सुनने के लिए अब कैरिबियन का सहारा लेना पड़ेगा, जहाँ भारतीय तरंग में बजते भारतीय साज हैं, और गायिकी में माटी की गंध है, सानू वाली बनावट नहीं है. मॉर्डन चटनी म्युज़िक में रॉक पॉप स्टाइल का संगीत सुनाई देता है, भारत में लोकसंगीत या तो बाज़ार के चक्कर के भोंडा हो चुका है या फिर उसमें भी लोकसंगीत के नाम पर ऑर्गेन और सिंथेसाइज़र, ड्रम,बॉन्गो बज रहे हैं. भारतीय इस अनमोल संगीत को बाँटने के लिए आपको बहुत पुन्न मिलेगा.
बहुत बढिया!बुधराम जी और अन्य कलाकारों के और लोकगीत सुनवाने की फरमाईश करता हूँ।
पहली धुन गारी की है जबकि दूसरी शायद सोहर की धुन है। गजबै है सुंदर है।
मजा आ गया भाई फिर से. जारी रखो सिरिज.
जबर्दस्त है । आपने बताया नहीं कहां से जुगाड़ा ये खजाना ।
सुनाते जाइए हम सुनने से नहीं बाज आएगे.....
kaaaaa sunaula bhaiya maja aa gail. auri sune ke man ba.
rajkumar
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