Sunday, November 4, 2007

आपने अब तक लिया नहीं, करेबियन चटनी का स्वाद !!!!

तो अभी चटनी का सुरूर थमा नहीं है, अभी तक आपने बुधरामजी की चटनी का स्वाद लिया, पर हमारे मित्र अखिलेशधर जी को लगता है कि.... इसमें चटनी ही नहीं अचार भी है साथ ही साथ मिट्टी की हांडी में बनी दाल का सोंधा पन भी है...हां परोसने के तरीके में क्रॉकरी और स्टेन्लेस( संगीत) का बखूबी इस्तेमाल है, बेवतन लोगों में रचा बचा अस्तित्वबोध नये बिम्बों के साथ आधुनिक होता हुआ भी कहीं अतीत की यात्रा करता है। कहीं का होना या कहीं से होने के क्या मायने हैं इस संगीत से अयां हो रहा है।

तो अनामदासजी की ने कुछ इस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया दी...गजबै है. आनंद में सराबोर कर दिया आपने, भौजइया बनावे हलवा सबसे अच्छा था लेकिन बाकी सब अच्छे हैं. इन गानों को सुनकर लगता है कि ऑर्गेनिक भारतीय संगीत, देसी संगीत सुनने के लिए अब कैरिबियन का सहारा लेना पड़ेगा, जहाँ भारतीय तरंग में बजते भारतीय साज हैं, और गायिकी में माटी की गंध है, सानू वाली बनावट नहीं है. मॉर्डन चटनी म्युज़िक में रॉक पॉप स्टाइल का संगीत सुनाई देता है, भारत में लोकसंगीत या तो बाज़ार के चक्कर के भोंडा हो चुका है या फिर उसमें भी लोकसंगीत के नाम पर ऑर्गेन और सिंथेसाइज़र, ड्रम,बॉन्गो बज रहे हैं. भारतीय इस अनमोल संगीत को बाँटने के लिए आपको बहुत पुन्न मिलेगा.

आखिर हम अभिभूत क्यों हैं ? क्या इसलिये कि जो यहां ज़िन्दा नहीं हैं उनमें यहां( देसीपन) वहां ज़िन्दा है और जो यहां ज़िन्दा हैं उनमें उनमें यहां मुर्दा हैं, एन्थ्रोपोलिजिस्ट के लिये शायद ये विषय ज़्यादा रुचिकर हो पर हमारे लिये तो यही सुखद है कि हम यहां भी है और वहां भी हैं, तो मुलाहिज़ा फ़रमाइये और आप भी गुनगुनाइये.... और सुनिये मौली रामचरन और रसिका डिन्डियाल को स्वाद लें चटनी का । ये जो पहला वा गीत है उसे गाया है मौली रामचरन ने और बोल हैं..अरे मन बैठे कर लो विचार......
और ये दूसरा वाला भी कम मस्त नही है इसे गया है रसिका डिन्डियाल ने जिन्हे वहां लोग रानी के नाम से भी पुकारते हैं
बोल हैं ... कोई नैना से नैना मिलाये चला जाय...

6 comments:

इरफ़ान said...

भाई आप तो गजब कर रहे हैं.आपसे मुझे शिक्षा लेनी लेनी चाहिये.आप लिखते भी कितना अच्छा है.आपके भीतर लेखक जग नहीं सकता था अगर यह ब्लॉग न होता. जय ब्लॉग.जय बोर्ची.आप के गानों ने तो मस्त कर दिया. तलाश जारी रखिये. आजकल यही मेरा रेडियो है, यही म्यूज़िक सिस्टम है और यही पास टाइम.कोई नैना से नैना मिलाए चला जाय...कोई नैना.आज मैं भीख मांगने वालों का ऐसा ही ऒर्गेनिक म्यूज़िक सुन रहा था.मेरी आत्मा को यही संगीत बचता है.मस्त है गुरू.

VIMAL VERMA said...

भाई इरफ़ान आपका उत्साह देखे बनता है.. भाई मैं क्या हूं ,प्रमोद जी ने तानो को सुन सुन कर तंग आ गया था.. अब बात तो साथी ये थी कि आखिर नाम ठुमरी रखके कितना ठुमरी गा सकते हैं , अभी भी ठुमरी का चरित्र धीरे धीरे बन रहा है, मुझे भी समझ में नही आ रहा ये सब हो क्या रहा है.. मैं हमेशा लिखने से भागता था पर आज वाकई ये कहूं कि ब्लॉग की वजह से अपने अन्दर के बदलाव को देख पा रहे हैं... साथियो के अनुभव हमारे सामने है हम अपनी पसन्द और नापसन्द में बहुत लोगो की भागीदारी हम देखते है ऐसे भी लोग हमारे सम्पर्क में है जिनसे हम पहले मिले भी नही हैं और ना ही जानते है, पर वे सारे लोग एक दूसरे से कितने आत्मीय है ये ब्लॉग से जुडे अपने साथियों की वजह से हो पा रहा है... वैसे इरफ़ान जी एक बात बताउं मै लिखना चाहता हूं बड़ा ही उच्च स्तरीय पर जब निकल कर आता है तो बड़ा साधारण लगता है मुझे अपना लिखा लिखा कभी पसन्द नही आया.. कुछ ऐसी चीज़े जब मुझे मिल जाती हैं कि लगता है सबको बताना चाहिये और मेरा लेखन उसी के इर्द गिर्द ही रहता है.... जब आप सब दाद दे रहे होते हैं तो बड़ा अजीब सा लगता है ...वैसे कुछ और भी करेबियन माल पडा है धीरे धीरे ठुमरी पर डालुंगा आप इन्तज़ार कीजियेगा.. जो भी ठुमरी पर आते है उसे पढते है मेरे लिये बड़ी बात है शुक्रिया

इरफ़ान said...

That's like real Vimal.

इरफ़ान said...

एक प्रयोग किया गया. सोनार तेरी सोना...को दो सल से लेकर १३ साल के बच्चों को सुनाया गया. पाया गया कि बच्चे अपने खेल के समय में भी इसे गुनगुना रहे थे. अब यह स्ट्डी का विषय हो सकता है कि हिमेश जैसों का इतना ट्रेंडी म्यूज़िक होते हुए भी यह चटनी म्यूज़िक जादू क्यो जगाता है.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सभी गीत सुन कर, बहुत आनन्द आया !
-- लावण्या

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति !

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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