न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Monday, December 31, 2007
जैसा मेरा गुज़रे, वैसा ही आपका भी गुज़रे॥ नया साल !!
ठुमरी पर आने जाने वाले हीत- मीत को ......... नव वर्ष की शुभकामनाएं ! ! !
दो पसन्दीदा गीत है मेरे, आज सुनियेगा दोनो किशोरदा ने गायें हैं, सुनने के बाद प्रतिक्रिया अवश्य दें
पहला गीत "आ चल के तुझे .........
और ये गीत सवेरे का सूरज तुम्हारे लिये है..
Sunday, December 30, 2007
एक ठुमरी........बाजुबंद खुल खुल जाय !!!
प्रमोद इरफ़ान,अनिल,अभय का शुक्रिया कि उनकी वजह से चिट्ठाजगत,नारद, ब्लॉगवाणी से जुड़ने का मौका मिला , सबके ब्लॉग पर जाकर उनके विचार पढ़ना और उनपर टिप्पणी करना और अपने भी टिप्पणी को छ्पे हुए देखना अद्भुत लगता था, , , मेरे लिये तो साल की उपलब्धि अगर कहा जाय तो तो ब्लॉग से जुड़ना ही है,बहुत सारे ब्लॉग जो मेरे ज़िन्दगी के हिस्सा बन गये हैं उन्हें सलाम !!
अज़दक का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिसने मुझे ठेल ठेल कर लिखने को प्रेरित किया और प्रतिक्रिया स्वरूप ठुमरी का जन्म हुआ !!! और बाते बाद में!
कुछ सुनाना चाहता हूं,प्यार से सुनिये
तो आज मेरी पसन्द की ठुमरी आपके सामने है सुनिये और आनन्द लीजिये !!!
आज जो आपको सुना रहा हूं बाजुबन्द खुल खुल जाय जिसे कभी बड़े गुलाम अली खान साहब ने सबसे पहले गाया था वैसे जितने भी शास्त्रीय गायक हैं वो इसे गा चुके है पर आज आपके सामने है आबिदा परवीन
और यही ठुमरी कुछ अलग ढंग से जगजीत सिंह ने भी गायी है उसे भी सुनें
Saturday, December 22, 2007
हीर सुनने का मन है?
यहां प्लेयर के बांयी ओर दो बार क्लिक करके सुना जा सकता है।
Saturday, December 15, 2007
एक संवाद !!!
अन्दर कमरे में एक विद्यार्थी किताब बांच रहा है !
एक और बालक है जो बैठा बैठा भावशून्य है ! दिन का समय है !
देखकर लग रहा है कि हॉस्टल से कब के निकल चुके हैं दोनों !
अब भविष्य की किसी बड़ी तैयारी में लगे है !
तभी दोनों की तंद्रा टूटती है !
सामने एक आदमी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर बोलने लगा !
सुन लो तुम दोनों, दो साल से तुम लोग से किराया बढाने को कह रहा हूं !
और तुम इस बात को गम्भीरता से ले नही रहे !
अब ये समझ लो ये महीना तुम्हारे लिये आखिरी है!
बिना बढा किराया दिये तुमको मै रहने नही दूंगा !
थोड़ी देर तक कमरे में सन्नाटा फिर
एक आवाज़ उभरती है !
सुनो मेरे बाप से बोलो कि वो तुम्हारा ही नही
मेरा भी पैसा !
यहां किताब के लिये तो पैसे हैं नहीं
इनको भी चाहिये !
सुनो अब दुबारा मत आना पैसे मांगने
क्योकि अगर रिज़ल्ट सही नही आया
तो हम तुम्हारा रिज़्ल्ट तो निकाल ही !
मालिक मकान अभी आंखे दिखा ही रहा था
कि एक विद्यार्थी कमरे से निकला !
उसके एक हाथ में एक चाकू था
और दूसरे हाथ में कलम
ज़ोर से बोला !
दोनो में से तुम क्या चाहते हो बोलो
मलिक मकान तेज़ी देख सकपका गया
उसने कलम की तरफ़ इशारा किया
और कहा कलम !
और तेज़ी से बाहर की तरफ़ जाने लगा
जाते जाते उसने कहा
हम समझ गये तुम क्या चाहते हो !
और वहां से चलता बना
दोनो लड़के मुस्कुराये !
और एक ने कहा
जो शब्द नही कर पाये
उसे हथियार ने कर दिया
शब्द हथियार कब बनेंगे !!!
उस्ताद राशिद खान को सुनते हुए !!
आज भी आपको राशिद साहब की वो रचनाएं सुनने को मिलेंगी जिसे सुनने बाद भी कम से कम बोल तो आपकी जुबान पर होंगे ही.
शास्त्रीय संगीत के बारे में आम धारणा बन गई है कि बड़ा बोझिल होता है, झेल होता है, अरे इस पर तो एक चुट्कुला भी आम है कि एक जगह बढिया संगीत का जलसा हो रहा था एक शास्त्रीय गायक अपनी तान छेड़े हुआ था,
जिस सुर में वो गायक गा रहा था वो करूण रस ही था शायद ,तभी एक व्यक्ति ने देखा कि उसके बगल वाला व्यक्ति रो रहा है उसकी आंख से आंसू धीरे धिरे झर रहे हैं, उसे आश्चर्य हुआ क्योकि
वो अपने आपको शास्त्रीय संगीत का बड़ा मर्मग्य समझ कर ही रस ले रहा था उसे इस बात पर आश्चर्य हो रहा था जिन सुरों को वो समझता है पर उसके दिल में उस तरह तो नहीं उतर रही पर ये व्यक्ति गायक की तान पर आंसू बहा रहा है, ज़रूर कोई बड़ा पंडित है कोतुहल वश पूछ बैठा ' लगता है गायक के सुर ने आपके मर्म को छू लिया है आप शास्त्रीयता में वैसे ही इतने गहरे धंसे हुए च्यक्तित्व लगते है क्या मुझे भी समझाएंगे किस बात पर आपके आंसू निकल रहे है' तो सामने वाले व्यक्ति ने कहा कि 'वो बात नही है जहां मै बैठा हूं वहां पैर हिलाने की जगह नही है पैर की तकलीफ़ बढ गई है इसी से रोना आ रहा है', पर यहां मेरी मंशा रुलाने की कतई नही है
आज आप सुनिये राशिद खान की आवाज़ का जादू, आपको सुनाउं इसका मौका आज जाकर मिला है !!
पहला गीत फ़िल्म जब वी मेट से है !
ये दूसरी रचना नैना पिया से है
और ये तो आप सुन ही ले फिर बात करें
Monday, December 10, 2007
बंद हैं तो और भी खोजेंगे हम,रास्ते हैं कम नहीं तादाद में !!
ये गीत आपको नज़र कर रहा हूं,इसे सम्भवत: लिखा था देवेन्द्र कुमार आर्य ने और इस गीत की धुन भी अच्छी बन पड़ी थी, संगीत और कोरस के साथ गाने का मज़ा ही कुछ और था,इसे लम्बे समय तक दस्ता इलाहाबाद के साथी गाते रहे थे,हमारे लोकप्रिय गीतों मे ये गीत भी शामिल था, पता नहीं और कहां लोग इसे गाते हैं, गीत करीब बीस साल पुराना है, अब ही पढ़ कर बताएं कि ये गीत कितना प्रासांगिक है,विनीता और अंकुर की वजह से ये गीत मुझे मिल पाया जिसकी तलाश मुझे काफ़ी दिनो से थी !!
इधर इरफ़ान ने भी इलाहाबाद को कुछ अलग ढंग से याद किया है उसे भी देख सकते हैं !! तो पेश है ये लोकप्रिय गीत !!
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में-२
आग हो दिल में अगर मिल जायेगा
हस्तरेखाओं में खोया रास्ता
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में-२
मुठ्ठियों की शक्ल में उठने लगे
हाथ जो उठते थे कल फरीयाद में
पहले तो चिनगारियां दिखती थी अब
हर तरफ़ है आग का इक सिलसिला
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में-२
टूटती टकराहटों के बीच से
इक अकेली गूंज है ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी है आग फूलों में छिपी
ज़िन्दगी है सांस मिट्टी में दबी
बन्द हैं तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नहीं तादाद में
बनके खुशबू फूल की महकेंगे वे
जो किरण बन मिल गये हैं खाक में
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...

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रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
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पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
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