एक कमरा छोटा सा !
अन्दर कमरे में एक विद्यार्थी किताब बांच रहा है !
एक और बालक है जो बैठा बैठा भावशून्य है ! दिन का समय है !
देखकर लग रहा है कि हॉस्टल से कब के निकल चुके हैं दोनों !
अब भविष्य की किसी बड़ी तैयारी में लगे है !
तभी दोनों की तंद्रा टूटती है !
सामने एक आदमी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर बोलने लगा !
सुन लो तुम दोनों, दो साल से तुम लोग से किराया बढाने को कह रहा हूं !
और तुम इस बात को गम्भीरता से ले नही रहे !
अब ये समझ लो ये महीना तुम्हारे लिये आखिरी है!
बिना बढा किराया दिये तुमको मै रहने नही दूंगा !
थोड़ी देर तक कमरे में सन्नाटा फिर
एक आवाज़ उभरती है !
सुनो मेरे बाप से बोलो कि वो तुम्हारा ही नही
मेरा भी पैसा !
यहां किताब के लिये तो पैसे हैं नहीं
इनको भी चाहिये !
सुनो अब दुबारा मत आना पैसे मांगने
क्योकि अगर रिज़ल्ट सही नही आया
तो हम तुम्हारा रिज़्ल्ट तो निकाल ही !
मालिक मकान अभी आंखे दिखा ही रहा था
कि एक विद्यार्थी कमरे से निकला !
उसके एक हाथ में एक चाकू था
और दूसरे हाथ में कलम
ज़ोर से बोला !
दोनो में से तुम क्या चाहते हो बोलो
मलिक मकान तेज़ी देख सकपका गया
उसने कलम की तरफ़ इशारा किया
और कहा कलम !
और तेज़ी से बाहर की तरफ़ जाने लगा
जाते जाते उसने कहा
हम समझ गये तुम क्या चाहते हो !
और वहां से चलता बना
दोनो लड़के मुस्कुराये !
और एक ने कहा
जो शब्द नही कर पाये
उसे हथियार ने कर दिया
शब्द हथियार कब बनेंगे !!!
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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11 comments:
अरे सर, आप तो कवि भी हैं! वो भी प्रतिबद्ध जनशिल्प के कवि हैं! क्या बात है!
अविनाश प्रतिक्रिया के शुक्रिया,ये तो पहली कविता है,खामियां तो लाज़मी है,और कोशिश करूंगा !!
कहीं आपबीती को ही शब्दों के भवंर में उतार कर जगबीती तो नहीं बना दिया बन्धु?
राजीवजी,विचार आते कहां से हैं?मंगलग्रह से तो आयेंगे नही,शुक्रिया जो आप टुमरी पर दिखे,
आपका यह पहलू भी खूब है। अगली कविता का इन्तजार रहेगा।
विमल जी, कविता के भाव अच्छे हैं, शिल्प के बारे में कुछ इसलिए नहीं कहूंगा कि इतनी समझ नहीं है।
वैसे शब्दों को हथियार बनाने की बात आपने कही है, मैंने अपने ब्लॉग पर अपने एक मित्र की एक अनगढ़ -सी, छोटी कविता पोस्ट की थीं। वो सर्जक के नाम से लिखते हैं, इसे भी देखिएगा
http://shabdonkiduniya.blogspot.com/2007/01/shabd-hathiyar-hain.html
विमल भाई.... आपकी इस प्रतिभा का तो अंदाजा ही नही था. क्या बयान है मियां. कमाल है. आशा है इसे आगे भी बढायेंगे.
सच कहूँ तो पढ़ते वक्त मुझे कविता नहीं बल्कि किसी नाटक का प्लॉट लग रहा था. कमेंट्स के बाद ही समझ पाया कि ये कविता थी. :(
आपका यह पहलू भी खूब है। अगली कविता का इन्तजार रहेगा।
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