न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Monday, January 28, 2008
मैं दूसरो को प्रभावित करने के लिये नहीं लिखता..
वैसे इससे इन्कार नहीं कि ब्लॉग के आने के बाद से ऐसे लोगों को भी कुछ लिखने का मौका मिल गया जिन्होने ज़िन्दगी में कल्पना भी नहीं की थी कि कुछ लिख भी पाएंगे, अब आपका अपना ब्लॉग हो आप ही को तय करना है फ़लाने विषय पर लिखें कि ना लिखें, तो बात ये भी है कि जब आप कुछ लिखते हैं तो कुछ मित्र आपके लिखे की तारीफ़ करते है और आप कुछ और उत्साहित होकर लिखते हैं....पता नहीं क्या लिखते हैं.... कुछ नहीं तो गीत गज़ल या फ़्यूज़न ही सुनवाते रहते हैं, लिखने के लिये अपने काम से अलग थोड़ा समय अलग से तो चाहिये होता है वो वाकई है नहीं पर एक बात ज़रूर है कि ब्लॉग से जुड़ने के बाद आपके दिमाग का एक हिस्सा कुछ लिखने के मुद्दे तलाशता रहता है...
मैं अपने बारे में सच्चाई से बताऊं तो जब बहुत डंडा करके अज़दक यानि प्रमोद जी ने अपना ब्लॉग बनाकर कुछ लिखने को कहा तो सही मानिये मेरा दिमाग तो जैसे कुंद सा हो गया और कुछ सूझ भी नहीं रहा था कि लिखें तो क्या लिखें? और ये भी कि कम से कम लोग आकर पढ़ें... ऐसा तो मैने सपने में भी नही सोचा था...कुछ दिन अपने ब्लॉग पर एक चित्र लगा कर छोड़ दिया पर टिप्पणी पाने के लिये मैं लिख भी नहीं रहा था......अरे संकट तो था कि लिखा क्या जाय
सोचा कि शुरू करूं अपनी चिन्ताओं से... पर मेरी चिन्ता सबकी चिन्ता से मेल खाए ये भी नहीं हो पा रहा था.....
मेरे पुराने मित्र है उनसे अगर पूछा जाय तो बीसियों चिन्ताएं गिना देते थे मैं दिगभ्रमित कुछ भी समझन नही आ रहा था जैसे किसी विद्वान साथी से पूछा आपकी चिन्ता क्या है... बोले...... अरे ग्लोबल वार्मिंग की चिन्ता है,देश में बढ़ रही साम्प्रदायिकता की चिन्ता है, भ्रूण हत्या हो रही है इसको कैसे रोका जाय पर मैं तो सोच रहा था कि मैं तो अपने निज से ऊपर उठ ही नहीं पा रहा....मेरी चिन्ता मेरी नौकरी... मेरी जवान होती बेटी.....मेरे घर का ई एम आई....नये काम का जुगाड़...बीमार माँ की तबियत, उसकी दवाएं... हम तो अपनी ही ज़िन्दगी की लय ठीक करने के जुगाड़ में लगे है... कभी कुछ कहानियाँ ही पढ़ी थी या अपने रंगकर्म वाले दिनो में जो थोड़ा बहुत पढ़ पाया था उसके बाद कुछ विशेष तो पढ़ा भी नहीं है, अगर एक ही दो लिखे पर लोग विद्वान समझने लगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी और ज़िन्दगी में ऐसा विशेष मौका जो हाथ लगा है ब्लॉग लिखने का तो इसका लाभ लेने से वंचित रह जाउंगा.
तो मैने सोचा,जो भी अपन गुरू के साथ गुज़री है उसी में मुद्दा तलाशा जाय .. मतलब जो मेरी पसन्द नापसन्द का मुद्दा हो उसे ही लिखा जाय
फिर देखा कि इस ब्लॉग से जुड़े बड़े नामचीन लोग अपनी बातें बड़ी कुशलता से लिख रहे हैं. कभी कभी तो लगता है जैसे मेरी ही बातों को कितनी अच्छे शब्दों के साथ लिखा है और वाह कहने लिये कीबोर्ड पर प्रशंसा में कुछ लिख भी दिया तो अपने मियां को तसल्ली हो गई.
पर इधर लोग ऐसे हो गये हैं कि तारीफ़ के दो शब्द उन्हें जँच नहीं रहे शिकायती लहज़े में कहते हैं लोग वाह वाह और साधुवाद... और क्या बात है..... ह्म्म्म्म्म्म....आदि लिख कर जान छुड़ा लेते हैं जबकि वो चाहते थे कि उनके लेख को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए गम्भीर टिप्पणी की जाय कि वो अपने लिखे को एक अंजाम तक ले जांय..... पर वो ये नहीं सोचते कि उनको पढ़ने वाला भी अपना ब्लॉग लिखता है..और जब मुद्दे पर किसी दूसरे के यहां ही लिख देगा तो वो अपने यहां क्या लिखेगा... हां अपने ब्लॉग पर भी तो कुछ ऐसा लिख नहीं रहा.....कुछ लोग अपने मुद्दे को लेकर मैदान में उतर जाते हैं पर हम जैसे लोग अपने ही मुद्दे में भी धमाचौकड़ी नही मचा पाते.
मैं सिर्फ़ ये जानता हूँ कि ब्लॉग से ये हुआ है कि मैं कम से कम अपने बारे में बता सकता हूँ कि कुछ कुछ अपने को जान पाया हूँ....मैं दूसरो को प्रभावित करने के लिये नहीं लिखता, जो लिखता हूँ अपने को और ज़्यादा जानने के लिये लिखता हूँ.. और यही सच्चाई भी है.
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11 comments:
ऐसा ब्लॉग लिखिए,मन का आपा खोए
औरों को शीतल करे,आपहु शीतल होय
विमल प्यारे, आप तो बस ....करके छोड़ दो, हम उसे भी पढ़ने को तैयार हैं, बल्कि पढ़ते ही हैं। आपका भेजा सुन नहीं पाते क्योंकि सुनने का कोई जुगाड़ अपने यहां नहीं है। बाकी अच्छा, बुरा, आह, वाह, साधुवाद वगैरह सब छोटी बातें हैं, उनका चक्कर छोड़िए। आपका छुआ हुआ कुछ नजरों के सामने से गुजरा, यह खुद में एक सुकून भरी चीज है। लिहाजा गांजे रहिए, जो भी दिल करे।
आप लिखिये तो सही हम जैसे कुछ लोग आपको पढ़ रहे हैं. वैसे आपकी अंतिम पंक्तियों में लगा जैसे आपने मेरे दिल की बात कह दी.खुद को जान ही तो रहे हैं ब्लॉग से.
विमल भाई,
हरेक के व्यक्तिगत अनुभवों का मोल होता है, ऐसे अनगिन व्यक्तिगत अनुभवों से मिल कर ही सामाजिक अनुभव बनते हैं, इसलिए अपने अनुभव ही लिखते रहिए, अपने रंगकर्म के दिनों के बारे में, अपनी चिंताओं के बारे में, अपनी पसंदगी-नापसंदगी के बारे में...
बाकी आप पाठकों पर छोड़ दीजिए, बस नियमित तौर पर लिखते रहिए...हम पढ़ रहे हैं :)
सर्चलाईट अपनी तरफ इतना क्यों मोंउ़ रहे हैं? कभी-कभार दूसरों पर भी डालें फोकस! तब शायद आपके अंदर का 'अंधेरा' दूर हो। होगा न ऐसी कामना के साथ।
अंतिम पैराग्राफ से पूर्ण सहमत!!!
जो मन आए लिखते रहिए!!
लिखते रहिये। हम है ना पढने के लिये ।
विमल जी, लिखना अपने को पढ़ना भी होता है। इसलिए अपने को पढ़ते रहते और लिखते जाइए बेधड़क। जितना अपने अंदर पैठेंगे, उतना ही बाहर की पैठ बनती जाएगी। जिस तरह निर्मल रहने के लिए पानी का बहना ज़रूरी है, उसी तरह लिखना भी ज़रूरी है।
Blog ki duniya me sab apas me Bhai Bhen hain/
Lekin Vimal ji hum to apke Fan hain !!
apke vali hi samasyaen yahan bhi hain, isiliye maine to koi blog hi nahi banaya,bus Irfan ke bulave pe pade hain Saste sher mein!Sher bhale sasta ho , ye SHAHAR qatai sasta na hai!
apne aas pas dekhiye. Gyanduttji to apni beti ke fancy hand bag ke uper hi ek post likh diye hain. panchami ke pas to usse bhi achchi kai cheezen hongi.
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