न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Monday, March 3, 2008
कौवा बोला काँव- काँव
अस्सी के दशक में हमने नाटककार मणिमधुकर का लिखा एक नाटक किया था, जिसका
नाम था.... रस गंधर्व, अब तो इस नाटक की स्मृतियाँ ही शेष रह गई हैं, फिर भी इस नाटक से
जुड़ी कुछ पंक्तियाँ आज भी मुझे कुछ कुछ याद हैं.......... जो भी याद आ रहा है लिखने की कोशिश कर रहा हूँ
अब अगर कुछ अधूरा रह गया हो जो मुझे लगता है, तो भूल चूक लेनी देनी मानकर पूरा भी कर दीजियेगा,
इतने सालों बाद भी ये पंक्तियाँ भूले भटके मेरे जेहन में आती जाती रहती हैं तो आज मैने सोचा ठुमरी पर डाल ही दूँ . जिन्हें ये अधूरा लग रहा हो वो इसको पूरा भी सकते हैं,
कौवा बोला काँव-काँव
आला झाला
देश निकाला
एक थी जिद्दी
सुन्दर बाला
सबका चित्त
चंचल कर डाला
गई ढूंढने मोती माला
किंतु मिला
लोहे का भाला
परनाले में फ़ंस गया पांव
कौवा बोला काँव-काँव
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तीन तिलंगे
तीन तिलंगे
लगे नहाने हर हर गंगे
उड़ गई धोती
रह गये नंगे
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
-
पिछले दिनों मै मुक्तिबोध की कविताएं पढ़ रहा था और संयोग देखिये वही कविता कुछ अलग अंदाज़ में कुछ मित्रों ने गाया है और आज मेरे पास मौजूद है,अप...
-
रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
-
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...
14 comments:
उम्दा माल है, विमल भाई. ऐसे ही थोड़े हम ठुमरी के फ़ैन हैं. बने रहें. कबाड़ख़ाने पे आमद कब हो रही है जनाब की?
हरदम माला
जपता साला
लाल है टोपी
जूता काला
बदबू आती
बहता नाला
छुटभैयों ने
बहुत सम्भाला
लेकिन फिर भी
डाल ही बैठा
कीचड़ में वह पाँव रे
कौवा बोला काँव रे
जहाँ भी देखो
वहीं गिरेगा
बरबादी से
नहीं बचेगा
तू तू मैं मैं
करते करते
खुशहाली से
डरते डरते
उसने फिर
भाषण दे डाला
उसे मिलेगा
देश निकाला
भाग के जा तू गाँव रे
कौवा बोला काँव रे
अरे काकेश भाई आपने तो लाइन से लाइन मिला दी है..क्या बात है !अशोक भाई कुछ पका रहा हूँ..पकते ही आऊंगा...
देखो, कौवों की बात आई तो काकेश मियां की कल्पनाशीलता क्या क्लासिकी ऊंचाइयां उड़ने लगी.. में भी कुछ कावं-कावं बक सकता हूं, मगर फिर तुम थू-थू, ठावं-ठावं करने लगे तो?
वाह जी वाह - क्या बात है - अनमोल पंक्तियाँ और बेजोड़ तुक मेल - क्रिया प्रतिक्रिया का ऐसा ज़ोरदार संगम - क्या बात है - मज़ा आ गया - सादर - मनीष
उड़ गई धोती, रह गई नंगे...
बड़ी सामयिक बात निकलकर आई है।
विमल भाई । बोलने में कोई पैसे लग रहे थे । हंय । चलिए इसे अपनी इश्टायल में पढ़ दीजिए । हम इंतज़ार कर रहे हैं । इत्ती सुंदर पेशकश को यूं पढ़ने से सुनने की तलब बढ़ गयी है । वो भी इसलिए क्योंकि हमने आपको सुना समझा है ।
kya baat hai, maja aa gaya. Kriya aur pratikriya dono hi jabardast.
Ur gayi dhoti
reh gaye nange
Tippaniyon ke liye
sabhi bheek mange
आपकी कलम को पूरा करें यह हूनर हममें कहाँ हजूर!!!
विमल भाई , कई सालों बाद ये पंक्तियां पढ़ीं। आपके ज़ेहन में तो ये थीं,हम तो भूल ही चुके थे। और काकेश भाई ने भी क्या खूब साथ दिया है। आनंद रहा। शुक्रिया ।
ye to ji 'samayiki' ya 'samayik varta' jaisi koi cheez ho gayi! apki ada humko aur azeez ho gayi!!
lovely sketch of Kavva!
ऐसे नहीं गुरुजी! जरा सा गाया जाये इसे. :)
हर हर गंगे सब हैं नंगे
यह भी जोड़ लें विमल जी
Post a Comment