Sunday, September 21, 2008

उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं........

कभी कभी ऐसा होता है कि बहुत पहले कही गई बातों का अर्थ वाकई कई बरसों बाद समझ में आता है...अब ये बात उठेगी कि इसमें कौन सी नई बात है....तो वाकई कुछ भी नई बात तो है नहीं...पर जैसे एक कहानी थी खरगोश और शेर की जिस कहानी के अंत में उस चतुर खरगोश ने भयावह शेर को कूंए में झांकवा दिया था...और शेर ने जब कूंए में अपना ही अक्स देखा तो उसे लगा कि कोई मुझसे बड़ा राजा हो कैसे सकता है और शेर ने कूंए में छलांग मार दी और सभी खरगोश खुशी खुशी रहने लगे.......कुल मिलाकर हम कभी बहुत उदास हो जाते हैं तो कभी दिन बहुत अच्छा बीत जाता है...कभी कहीं बम फटता है कुछ लोगों की दुनियां तबाह हो जाती है ...फिर भी ये दुनियाँ है जो चलती रहती है..हम नहीं थे तो भी दुनियाँ चल रही थी आज भी हम रहें या ना रहे दुनियाँ चलती रहेगी.....

बस हम अपनी रहती ज़िन्दगी में थोड़ी बहुत कोशिश करते रहते हैं कि हमारे आस पास की दुनियाँ जैसे हम चाहते हैं वैसे ही हो... पर ऐसा होता कहां है....


शेख़ करता तो है मस्ज़िद में ख़ुदा को सज़दे

उसके सज़दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं..
.....असल में कहना तो बहुत चाहता हूँ पर बात निकलते निकले भटक सी जाती है....अपनी बातें फिर कभी कहने की कोशिश करुंगा अभी आप सुनिये जगजीत सिंह साहब से...उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं हर शबे ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं........

5 comments:

Udan Tashtari said...

आह!! आनन्द आ गया सुन कर!!

अमिताभ मीत said...

शुक्रिया विमल भाई .... सुबह सुबह मस्त कर दिया आप ने.

pallavi trivedi said...

मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़लों में से है ये...अच्छा लगा सुनकर

स्वप्नदर्शी said...

Vimalji, Thanks for this beautiful gazal and for sharing your thoughts. mere chaaro taraf failee hafraa=tafree thoda sukun punchaane ke liye.

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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