संगीत अकेलेपन का साथी है...और साथ साथ दोस्तों की महफ़िल में संगीत की बैठकी हो तो पूरा का पूरा हुजूम थिरक रहा होता है या अकेले हों तो भी संगीत आपका अच्छा साथी होता ही है,पर इधर बहुत दिनों से कुछ नया सुना भी नहीं है...और अब लगता है गुलाम अली,मेंहदी हसन,लता जी जगजीत सिंह, नैयरा नूर मुन्नी बेगम आदि जितना पहले हमारे करीब थे उतना ही करीब आज भी हैं,मौके बे मौके हम तो इन्हें सुन ही लेते है,अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो आज जो आवाज़ आप सुनेंगे वो आवाज़ अमानत अली खान साहब की है.....इसे सुने आपको भी अच्छा लगेगा...
अभी तो आपने इन्हें सुन लिया पर अगली बार आपको कुछ नई आवाज़ें जिन्हें मैं पसन्द करता हूं,वादा करता हूँ जल्दी ही आपको सुनवाउंगा...
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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4 comments:
अमानत अली साहब को सुनना अच्छा लगा ।
अमानत अली साहब और गुलाम अली जी की आवाज कानों में मधुरता घोलती है पर दुखद बात कि मैं सुन नहीं पा रहा हूँ।
vimal ji..do din pehley ye gazal upload ki mainey... post karney ke khayaal se :) ..bahut bahut pasandeeda ..shukriyaa..
रवायती अंदाज़ में ऐसी बात कहने वाले अब कहाँ.सुरों के सिलसिले की बड़ी अमानत है ये आवाज़.
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